अमेरिका से सीधे वे सेंट्रल विस्टा पहुंचे। यह आकस्मिक मुआयना था। पर जनता के धन से बन रहे इस सेंट्रल विस्टा की फ़ोटो तो सरकार ने प्रतिबंधित कर रखी है।
वहां कोई पत्रकार नही जा सकता और न ही कोई उस परियोजना की प्रगति की खबर जनता को बता सकता है। ऐसा भी नहीं है कि इस परियोजना का प्रमुख ही कोई प्रेस कांफ्रेंस कर के जनता को प्रगति से अवगत कराए।
यह सरकार का एक नया गवर्नेंस आर्डर है। टैक्स हमारा और हमी उस परियोजना की प्रगति जानने से महरूम कर दिए गए। चंदा तमाम सरकारी कर्मचारियों से जबरन उगाह लिया गया, पर ‘पीएम केयर्स, तो निजी फ़ंड है। उसके बारे मे कोई जानकारी हम नहीं देंगे।’ जब फ़ंड ही निजी है तो जबरन चंदा, बजट से ही क्यों उठा लिया गया ?.
मित्र धूमिल की एक कविता याद आती है।
जनता, अपने देश की जनता,एक भेड़ है, जो दूसरों की ठंड के लिये, पीठ पर ऊन की फसल ढोती है। आपत्ति, कैमरे, फ़ोटो, और इस आकस्मिक मुआयने पर नहीं है, आपत्ति जनता के जानने के अधिकार को बाधित या नियंत्रित करने पर है। जो सेंट्रल विस्टा, पीएम केयर्स, इलेक्टोरल बांड में जानबूझकर की गयी है। वैसे भी इस तरह के मुआयने पहले भी होते रहे हैं, एक फ़ोटो नेहरू की भी है, उसे भी देखें।
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यह लेखक के निजी विचार हैं।
(लेखक एक पूर्व आईएस अधिकारी हैं)