कृष्ण यादव
अमेरिका में 9/11 के बाद मुस्लिमों के साथ जो हुआ उसपर अमरीका के बाहर बहुत सी फिल्में बनी, लेकिन अमेरिका में नहीं बनी। क्यों ?
कारण ये था की जॉर्ज बुश ने अपने ही देश में प्रजा को रोने या शोर मचाने का freedom ही नहीं दिया । जो भी human rights की बात करता था उसके ही देशप्रेम पर मीडिया और भीड़ के द्वारा उँगलियाँ उठा दी जाती थी।
लेकिन ऐसा माहौल ना बुश की सरकार से पहले अमरीका में था, और ना ही बुश के बाद की ओबामा सरकारों में था।
1998 में बनी ब्रूस विलिस डेन्ज़ेल वाशिंगटन अभिनीत फिल्म “दा सीज” देखिये जो 9/11 होने से 3 साल पहले ही इस मुद्दे को सिनेमा पर दर्शा चुकी थी।
फिल्म में कुछ अरब के आतंकवादी वायलेंस को अंजाम देते हैं, जिसके बाद अमरीका मिलिट्री मुस्लिमों पर अत्याचार ढाती है, और अंत में अमरीकी आर्मी का जनरल गिरफ्तार किया जाता है इन ज्यादतियों के कारणवश।
ये फिल्म बुश के दौर में नहीं बन सकती थी ? जिसका कारण ये है की देश की सरकार देश का माहौल कण्ट्रोल कर सकती है, बना सकती है, 1984 में हिंदुस्तान में सिक्खों के खिलाफ बनाया गया था, 1992 और 2002 में मुस्लिमों के खिलाफ बनाया गया था, बनने दिया गया था। फिर उसके बाद नागरिकों से वायलेंस करवाई गयी थी।
अमरीका और हिंदुस्तान में ये जो वाकये हुए हैं और जितनी ढिलाई से सरकारों ने इनको हैंडल किया है, उसकी वजह से सैकड़ों जाने गयी हैं। लेकिन ना कोई पॉलिटिशियन गिरफ्तार हुआ है, और ना ही पुलिसमैन या आर्मीमैन।
जब सरकारों का मकसद अभी काम ना करके सिर्फ अगले चुनावों में सत्ता में आने का हो, तब ऐसा ही होता है। राजनीती में धर्म और रेस का permanent मिक्स हो जाना किसी भी सभ्यता के लिए सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात होती है। ये किसी भी सभ्यता के ख़त्म होने की शुरुआत का संकेत होता है।
क्यूंकि सरकारों से डर के लोग चुप्पी साधने लग जाते हैं, और एथनिक cleansing शुरू हो जाती है। फिर विभाजनकारी शक्तियों को इतना बल मिल जाता है, की सरकारों के भी हाथ से बात बाहर हो जाती है, क्यूंकि अब ये वायलेंस पब्लिक परसेप्शन में घर कर चुकी होती है। जिसके बाद या तो पलायन होता है, या विभाजन होता है, या फिर Mass मर्डर।