आज से लगभग साढ़े तीन साल पहले केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी थी और ये सरकार प्रचंड बहुमत के साथ आई थीं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि उस जीत ही के साथ “विपक्ष” लगभग टूट गया था।
यही नही भाजपा ने उसी के साथ अब तक कुल 19 राज्यों में सरकार बना चुकी है।लेकिन विपक्ष कहा है? अगर दलीय आधार पर देखें तो इस कड़ी में सबसे आगे बहुत मज़बूती के साथ राहुल गांधी खड़ें है,और उन्होंने ये बात गुजरात मे साबित करके दिखाई भी है,क्योंकि कांग्रेस एक राष्ट्रीय दल भी है तो ये भी लाज़मी हो जाता है कि कांग्रेस ही किसी “विपक्षी गठबंधन” की अगुवाई करें।
इसके अलावा अगर गौर करें तो बंगाल में “दीदी” ममता बनर्जी सरकार पर काबिज़ है और उत्तर प्रदेश में “बुआ” और “बबुआ” दोनो है।
इसके अलावा बिहार में “लालू” है,ओर तमिलनाडु में कांग्रेस का “डीएमके” के साथ गठबंधन भी है,हालांकि ये कहना जल्दबाजी होगी कि क्या ये सब साथ भी आएंगे? क्या इतना बड़ा गठबंधन हो पाना आसान है? अगर परिस्थितियों को देखें तो ऐसा हो पाना मुमकिन है,क्योंकि नरेंद्र मोदी का चेहरा और कद अकेले ही बड़ा है और उससे भी अलग अगर सब अकेले लड़ें तो शायद ही नरेंद्र मोदी के चेहरे के अलावा कोई चेहरा हो।
इस बीच मे और उसकी शुरुआत में गुजरात मे कांग्रेस का विपक्ष में मज़बूती से आना “विपक्ष” के लिए उम्मीदों में बढ़ोतरी लाया है क्योंकि हो न हो राहुल गांधी का कद इससे बढ़ा है और बहुत हद तक ये एक चांस बनाने लायक तो है क्योंकि जिस तरह पिछले लोकसभा चुनावों से पहले परिस्थितियों में बदलाव आया था इस बार के आम चुनावों से पहले भी आएगा और कब क्या हो किसे मालूम. मगर इस नए साल पर नई रणनीतियां ही “विपक्ष” के लिए कुछ कर सकती है और ये होना लोकतंत्र के लिए भी बहुत अहम है।