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निष्पक्ष होने की ज़रूरत है

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हमारे देश में लगातार बलात्कार की घटनाये बढ़ती जा रही है. सबसे ज़्यादा दुःख की बात ये है कि छोटी मासूम बच्चियों के साथ ऐसी हैवानियत की जा रही है. अगर हम अपने देश को इस अपराध में देखे तो देश मे बालात्कार चौथे नम्बर पर आता है. यानी देश मे पैदा होने वाली लड़की आने वाले समय मे महफूज़ नही है.
स्कूल से लेकर दफ्तर और घर में भी छोटी बच्चियों के साथ यौन हिंसा बढ़ती जा रही है. इस सब के बीच एक चीज़ और देखने को मिली है,कि जंहा पहले कुछ सालों में बलात्कार को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे है, वही दूसरी तरफ उन आरोपियों के लिए कुछ लोग समर्थन में आगे आये हैं. पीडितों को धर्म से जोड़ा जा रहा है. जबकि मुझे लगता है, कि हमारे देश मे जिस भी लड़की के साथ ऐसा होता है उन सभी पीड़िताओं के लिए आवाज़ उठानी चाहिये. क्योंकि हमारा देश धर्मनिरपेक्ष देश है, जंहा हर धर्म का व्यक्ति रहता है, अगर हम ऐसा करते है, तो उसके सम्मान को ठेस पोहंचेगी और ये गलत है.
आज जो भी निरन्तर देश मे हो रहा है उसमे एक चीज़ और सामने आई है, कि सभी पीड़िताओं का नाम बोला और लिखा जा रहा है. जब कि हमारे क़ानून में भारतीय दंड संहिता धारा 228 ए के तहत (कुछ अपराधों के शिकार की पहचान का प्रकटीकरण आदि), उपधारा (1):- जो भी नाम या किसी भी मुद्दे को प्रकाशित या मुद्रित करता है या किसी की पहचान ज्ञात करता है तो उसके खिलाफ जुर्माना लगया जायेगा. जो कि अभी कुछ मीडिया संस्थानों के खिलाफ लगाया भी गया.
हमने अभी भी सभी पीड़ितो के नाम लिखे हैं, हमने उनके ज़ख्मो को धर्म से जोड़ा है. ऐसा क्यों ? इसकी भी एक वजह है कि लोगो ने उन अपराधियों का समर्थन किया, जिस से ये समझ आया कि क्या उस पीड़िताओं का साथ इसलिए नही दिया जा रहा है कि वो किसी अहम वर्ग की है. नही मुझे लगता है ये सब बहुत ही दुखदायक है हमारे देश मे हर समुदाय,वर्ग,जाति और धर्म के लोग रहते है हमे ऐसे करते में शर्म आनी चाहिए.
एक चीज़ जो इन घटनाओं से निकलकर सामने आई वो यह है कि अपराध अब स्कूल ,दफ्तरों से निकल कर हमारे धर्म स्थलों में हो रहे है. क्या अब हम अपने धर्मिक स्थानों में भी सुरक्षित नही है. क्या उन दिलों में भगवान का कोई ख़ौफ़ नही?
मैं ये सोचती हूँ कि माना कि उन्हें प्रशासन का डर नही है, क़ानून का डर नही है, परिवार का डर नही है, अपनी इज़्ज़त की कोई फिक्र नही है, तो उनके दिल में भगवान का भी डर नहीं है, वो जो जिसने ये ज़मीन और आसमान को चलाने का ज़िम्मा लिया है, जिसने उसे बनाया है उसका डर नही है क्या?
अगर हम प्रशासन की बात करे तो इस सब मे क़ानून को भी कड़े और मज़बूत करने की ज़रूरत है ताकि अपराधी अपराध करने से पहले डरे. देश के हर स्तम्भ को सख्ती से काम करने की ज़रूरत है और जो सबसे ज़रूरी चीज़ है, वो ये है कि हमे अपने घरों से बच्चो को नैतिक शिक्षा देने की ज़रूरत है, शुरुआत वहीं से करनी होगी.
हमे उस सोच के खिलाफ अपने बच्चो को जागरूक करना होगा. सरकार के साथ समाज को भी साथ देना होगा. अगर ऐसा हम सब मिलकर नही कर पाए तो हम सब एक खाई में धँसते जायंगे और कोई निकालने नही आयेगा.

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