बेंगलुरु में आयोजित एक कार्यक्रम में बीते शनिवार भारत के मुख्य न्यायधीश (CJI) एनवी रमना (NV.ramna) ने कहा कि, हमारी न्यायिक व्यवस्था का भारतीयकरण करना समय की ज़रूरत है। हमें हमारी न्यायिक प्रणाली को और अधिक सरल, सुगम और प्रभवशाली बनाना होगा। अदालतों को वादी केंद्रित बनना होगा वहीं हमारी न्यायिक व्यवस्था का सरलीकरण होना आवयश्क है।
बता दें कि बीते शनिवार उच्चतम न्यायालय (high Court) के दिवंगत न्यायधीश जस्टिस मोहन शांतानागौदर को श्रद्धांजलि देने के लिए बेंगलुरु में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इसी कर्यक्रम में बोलते हुए CJI एनवी रमना ने कहा कि हमारी न्याय व्यवस्था आम आदमी के लिए कई अवरोध खड़े कर देती है।
जस्टिस मोहन शांतानागौदर ( justice mohan shanatanagodar) का निधन इसी साल 25 अप्रैल को गुड़गांव के एक निनी अस्पताल में हो गया था, उन्हें फेफड़ो में संक्रमण होने के चलते अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। लेकिन 62 की उम्र में उनका निधन हो गया। मालूम हो कि उन्हें फरवरी 2017 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की पद्वी दी गयी थी। इससे पहले वो केरल के उच्च न्यायालय में न्यायधीश थे।
प्रक्रियागत अवरोध न्याय में बाधा डालते हैं
CJI ने कहा कि कई बार हमारी प्रक्रियागत अवरोध न्याय में बाधा उत्पन्न करते हैं। जिससे लोग न्यायालयों में आने से डरते हैं। हमें चाहिए कि हम व्ययस्था को इस तरह से बनाए की लोग न्यायालय और न्यायधीशों का डर महसूस न करें। उन्होंने कहा, की हम वकीलों और न्यायधीशों की ये जिम्मेदारी है कि एक ऐसा सुविधाजनक माहौल तैयार करें जिससे वादियों को सच बोलने का साहस मिले। उन्हें किसी बात का डर न हो।
उन्होंने कहा कि वादियों को न्याय के लिए अधिक पैसे खर्च करने पर मजबूर न होना पड़ा, इसलिए हमें अदालतों को वादी केंद्रित बनाना होगा। न्याय की व्यवस्था को और अधिक सरल, सुगम व प्रभवि होना चाहिए क्योंकि अंत में लाभार्थी वादी/ याचिकाकर्ता ही होने वाले हैं।
समाज की व्यवहारिक वास्तविकताओं को स्वीकारना होगा:
CJI, एनवी रमना ने आगे कहा कि,, मैं जब भी हमारी न्यायिक व्यवस्था का भारतीयकरण करने के लिए कहता हूं। तो इसका मतलब है हमारे समाज की व्यवहारिक वास्तविकताओं को स्वीकारना, हमे हमारे न्याय प्रणाली का स्थानीयकरण करने की ज़रूरत है। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि, पारिवारिक विवाद में उलझे लोग अक्सर ये सोचते हैं कि न्यायालय में उनके लिए कुछ हो ही नहीं रहा है। अधिकतर वादी और याचिकाकर्ता न्यायालय में होने वाली दलीलों को ही नहीं समझ पाते क्योंकि ये प्रमुखता से अंग्रेज़ी में होती हैं।
उन्होंने कहा, अदालतों के कामकाज और कार्यशैली
भारतीय आबादी की ज़रूरतों से मेल नहीं खाती, वहीं ये भारत की जटिलताओ से भी बिल्कुल परे हैं। जिसका कारण ये है कि हमारी प्रणालियां, प्रक्रिया और न्याय की कार्यशैली पूर्ण रूप से औपनिवेशिक है।
अदालतों को वादी केंद्रित होना होगा:
कर्यक्रम में आगे CJI ने कहा कि हमारी अदालतों को वादी केंद्रित होने की ज़रूरत है, वहीं हमारे लिए न्याय प्रणाली का सरलीकरण एक अहम विषय होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि आज कल फैसलों में लंबी देरी के चलते वादी/ याचिकाकर्ता की स्थिति और अधिक जटिल हो जाती है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि, अगर हम न्यायिक प्रणली को सरल और सुगम करने पर ध्यान देते है तो, मध्यस्थता और सुलह जैसे वैकल्पिक विवादों में भी न्यायिक व्यवस्था को, पक्षो के बीच टकराव को कम करने में मदद मिलेगी। इससे न केवल संसाधनों की बचत होगी, वहीं निर्णय के लिए लम्बी बहस का सहारा भी नहीं लेना पड़ेगा।
दूसरी और कार्यक्रम में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने दिवंगत न्यायधीश मोहन शांतनागोदर को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “शांतानागौदर ज़मीन से जुड़े व्यक्ति थे, और एआम आदमी के न्यायाधीश थे।”