Opinion – नफ़रवादियों को Surf Excel का विज्ञापन क्यों पसंद आएगा ?

Share

सर्फ़ एक्सेल के हालिया विज्ञापन से संघियों को समस्या होना एकदम वाजिब है।ग़ौर से देखिये उस विज्ञापन का परोक्ष संदेश कि अगर बचपन से बच्चों का मिलना जुलना दोस्ती सम्भव हो तो नफ़रत की जड़ों में मट्ठा पड़ जाएगा।
आप सबने सब टीवी पर आने वाला सीरियल “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” देखा होगा। राष्ट्र की विविधता के उस प्रसार में मराठी, पंजाबी, मलयाली, गुजराती सब हैं लेकिन जो मुसलमान है वह कॉलनी के बाहर सोडा बेचने वाला।
गुजरात के दंगे में प्रो बन्दूकवाला को याद कीजिये जो मुस्लिम रिहाइश छोड़कर आम रिहाइश में चले आये थे और दंगों में हमले के बाद फिर मुस्लिम रिहाइश में चले गए। वह खेल याद कीजिये जिसमें आम रिहाइश के मुहल्लों को हिन्दू रिहाइश में तब्दील कर दिया गया और इन मुहल्लों/सोसायटीज में मुसलमानों को मकान मिलना बंद हो गया। परिणाम यह कि एक दूसरे के रीति रिवाज से भारी अपरिचय, अविश्वास और अपने अपने कट्टर तत्वों के दुष्प्रचार पर विश्वास। याद करेंगे मेरी उम्र के लोग तो गांवों के मुहर्रम में हिंदुओं का पार्टिसिपेशन भी याद आएगा और होली की शाम मुस्लिम परिवारों का आना भी। दोस्तियाँ खत्म करके जो अपरिचय पैदा किया गया उसने ही हिन्दू मुसलमान के बीच इतनी फांक पैदा करने में सफलता पैदा की है।
और इस विज्ञापन में आम रिहाइश के मुहल्ले में एक मुस्लिम घर है। उसे नमाज के लिए ले जाती हिन्दू दोस्त है। एक और बच्ची है जो गुब्बारा फेंकने की शरारत करने जा रहे लड़के को रोकती है और नमाज़ के बाद रंग खेलने को तैयार छुटका लड़का भी है।
यह सब का सब उस आयडिया के खिलाफ़ है जिसे संघ ने धीरे धीरे हासिल किया है। यह अतीत सा भी है और यूटोपिया भी। यह उस अन्य को जानना है और अपनी ही तरह इंसान मानना है जिसे ग़ैर और दुश्मन साबित करके दक्षिणपंथ सफल होता रहा है। याद कीजियेगा सर्फ का गणेश उत्सव वाला विज्ञापन जहाँ गणेश प्रतिमा बनाने वाला मुस्लिम बुज़ुर्ग हिन्दू परम्पराओं और मिथकों को जानता है और बुत बनाने को इबादत कहता है।
तो ये दाग़ उस ब्लैक एंड व्हाइट कल्चर से बहुत अच्छे हैं जहां जो हम जैसा है उसके सब दुर्गुण भी अच्छे और जो अदर है वह शत्रु। एक स्वस्थ लोकतांत्रिक समाज को ऐसे दागों से भरी चादर चाहिए सफ़ेद कफन नहीं।