व्यक्तित्व में हम आज बात करेंगे नदीम खान की, देश की राजधानी दिल्ली में रहने वाले नदीम अपने सोशल वर्क और ज़मीनी सक्रियता से पिछले कुछ समय से सोशल एक्टिविज़्म का जाना माना चेहरा बन चुके हैं. मानव अधिकार से संबंधित कोई ऐसा मुद्दा नहीं मिलेगा जहाँ नदीम खान की मौजूदगी न हो. यूनाईटेड अगेंस्ट हेट नामक कैम्पेन को सफलता के साथ सुचारू रूप से चलाने वाले नदीम एक सुशिक्षित व्यक्ति व दमदार वक्ता हैं.
जेएनयू के छात्र नजीब अहमद के गायब होने के बाद जेएनयू के ही पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष मोहित पांडे, उमर खालिद आदि अन्य लोगों के साथ मिलकर नजीब के इंसाफ के लिए उठने वाली आवाज़ में एक आवाज़ नदीम खान की भी थी. देश में एक के बाद एक हुए मोब लिंचिंग के मामले हों, या फिर दंगों और तनाव के बाद होने वाली थोक की गिरफ्तारियां, सभी जगह यूनाईटेड अगेंस्ट हेट का झंडा लेकर नदीम खान अपनी टीम के साथ इंसाफ की लड़ाई लडती रही.
यूनाईटेड अगेंस्ट हेट कोई NGO नही है, बल्कि ये एक आन्दोलन है. जो मज़लूमों को इंसाफ दिलाने, देश के संविधान की रक्षा करने और इस मुल्क से गायब होते जा रहे हिंदू मुस्लिम भाईचारे को बनाये रखना भी यूनाईटेड अगेंस्ट हेट कैम्पेन का मुख्य उद्देश्य है.
अब बात करते हैं नदीम खान की, नदीम खान ने अपनी सक्रीयता से अलग अलग राजनीतिक और सामजिक प्लेटफ़ॉर्म पर कार्य कर रहे विभिन्न लोगों को यूनाईटेड अगेंस्ट हेट के बैनर तले एक करने में अहम भूमिका का निर्वहन किया. पहलू खान से लेकर जुनैद की हत्या तक और मिन्हाज से लेकर कासगंज के दंगों तक यूनाईटेड अगेंस्ट हेट की टीम ने हत्याओं और दंगों की की वजह जानने की कोशिश की.
उत्तरप्रदेश पुलिस के पूर्व आईजी एस.आर. दारापुरी, पत्रकार प्रशांत टंडन व अन्य बुद्धिजीवियों संग असम जाकर एनआरसी के मुद्दे पर और कासगंज जाकर वहाँ हुए दंगों पर अपनी फेक्ट फाईंडिंग रिपोर्ट पेश की. ज्ञात होकि यूनाईटेड अगेंस्ट हेट कैम्पेन को सुचारू रूप से जारी रखते हुए दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों में भी कई प्रोग्राम किये गए, जिसमें कन्हैया कुमार, उमर खालिद, मोहित पांडे, प्रदीप नरवाल आदि लोग उपस्थित रहकर देश की वर्तमान स्थिति पर लोगों से संवाद कायम करने का प्रयास करते रहे.
दरअसल नदीम खान ने अलग-अलग क्षेत्र से जुड़े लोगों से सम्पर्क साधकर उन्हें एक प्लेटफ़ॉर्म में लाने की कोशिश की. सोशलमीडिया में अपनी सक्रियता से नदीम ने अपने कैम्पेन को आगे बढ़ाया है. उनके मित्र खालिद सैफी हों या फिर मोहित पांडे सभी के साथ हर आन्दोलन में नदीम खान की सक्रीयता ही अब उनकी पहचान बन चुकी है.