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मध्यप्रदेश में भाजपा के लिए चिंता की लकीरें

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हाल ही में मध्यप्रदेश में दो सीटों पर हुए उपचुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. पहले भी ये दोनों सीट कांग्रेस के ही पास थीं. पर दोनों सीटों से विधायकों के निधन के बाद खाली हुई इन सीटों पर उपचुनाव कराया गया था.
दोनों ही सीटों पर भाजपा और कांग्रेस ने सारी ताक़त झोंक दी थी. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरे कैबिनेट के साथ, मुंगावली व कोलारस में डेरा डाले हुए थे. इस सबके बावजूद दोनों ही जगह जनता ने शिवराज सरकार को नकार दिया.

मोदी और शिवराज के नाम मांगे गए थे वोट

ज्ञात होकि कि दोनों ही जगह शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल को आधार बनाकर वोट मांगे गए थे. पर दोनों ही जगह जनता ने भारतीय जनता पार्टी को नकार दिया. यह जीत मध्यप्रदेश में 15 सालों से वनवास झेल रही कांग्रेस के लिए उत्साह बढ़ाने वाली रही है.

चुनाव परिणामों के पूर्व भाजपा नेता जीत के लिए आश्वस्त थे

जब दोनों ही सीट पर चुनाव संपन्न हुए, तब भारतीय जनता पार्टी के नेता जीत के लिए आश्वस्त थे. पर जब रिज़ल्ट आना शुरू हुआ, तब कांग्रेस अपने दोनों गढ़ न सिर्फ बचाने में कामयाब हुई. बल्कि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 के पहले के सेमीफाईनल कहे जा रहे इस चुनाव में मानसिक बढ़त भी हासिल की.

राजस्थान के बाद मध्यप्रदेश में भी भाजपा के लिए चिंता की लकीरें

कुछ दिनों पूर्व राजस्थान में हुए दो लोकसभा सीटों और एक विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव के बाद मध्यप्रदेश में भी मिली हार के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में चिंता की लकीरें साफ़ देखी जा सकती हैं. अब देखना ये है, कि इन दोनों बड़े राज्यों में भाजपा कैसे एंटी इन्कंबेसी का सामना करती है.

मध्यप्रदेश और राजस्थान में सरकारी कर्मचारी सरकार से ख़फा हैं

दोनों ही राज्यों में सरकारी कर्मचारीयों के अंदर गुस्सा साफ़ देखा जा सकता है. संविदाकर्मी हर विभाग के अन्दर हड़ताल में नज़र आ रहा है. पटवारियों से लेकर शिक्षक तक, पंचायतकर्मियों से लेकर स्वास्थ कर्मचारियों तक सरकार के खिलाफ़ गुस्सा साफ़ तौर पर देखा जा सकता है. बचा कुची कसर सरकार द्वारा अपनाई जा रही सख्त नीतियां पूरा कर रही हैं.

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने कर रखा है है नाक में दम

दोनों ही सरकारों के लिए चिंता का विषय बन गई हैं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, मध्यप्रदेश में तो इनके ऊपर सख्ती अपनाते हुए कई आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को निकाल दिया गया है. ज्ञात होकि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अपनी मांगों को लेकर लम्बे समय से हड़ताल पर हैं. अब देखना ये है, कि दोनों ही राज्यों में आने वाले विधानसभा चुनावों में किस पार्टी के द्वारा परचम लहराया जाता है.

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