मधुमेह को हराकर ज़िन्दगी बनाएं मधुर

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14 नवम्बर को इंसुलिन के खोजकर्ता के सम्मान में उनके जन्मदिन पर पिछले दो दशकों से विश्व डायबिटीज़ दिवस हर साल मनाया जाता है। विश्व भर में मनाए जाने वाले विभिन्न रोगों के नाम पर दिवसों के नाम रखने का मक़सद केवल और केवल रोगों के प्रति लोगों को शिक्षित और जागरूक करना है, डराना नहीं। मेरे लेख का मक़सद भी आपको डराना नहीं, मधुमेह से लड़ना सिखाना है।

मधुमेह का शाब्दिक अर्थ जानने के लिए हमें इसे दो भागों में बांटना पड़ेगा मधु + मेह अर्थात वह रोग जिसमें मूत्र (मेह) में शहद (मधु) जैसी मिठास उत्पन्न हो जाए। आयुर्वेद में आचार्यों ने एक लक्षण इसका बताया है कि, ‘पिपलीकाश्च परिधावणं” अर्थात जिस मूत्र की तरफ चींटियां भागी चली आएं। पहले जब लैब टेस्ट या ग्लूकोमीटर नहीं होते थे उस समय मधुमेह का निदान ऐसे ही किया जाता था, मूत्र में चींटियों का लगना अर्थात मधुमेह रोग।

अक़्सर एक शब्द हमारे देश के बारे में कहा जाता है कि “भारत तो डायबिटीज़ की राजधानी है…” और भी लगभग सभी रोगों की राजधानी हमारे देश को ही बताया जाता है। मैं इसका विरोध करता हूँ क्योंकि जितनी जनसंख्या होगी, उसी के अनुपात में रोग होंगे। बड़ा देश है तो रोगियों की संख्या भी अधिक हैं। इसका यह मतलब नहीं कि हर एक व्यक्ति इससे डरे और डरकर रोगी बन जाए। जितनी ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या है, उतने लोग तो प्रतिदिन हमारे यहाँ ट्रेन में सफ़र करते हैं। चीन अपने आंकड़े किसी को नहीं बताता इसलिए अब बचे सिर्फ हम सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले देश, तो सब तमगे मैडल हमारे ही सिर पर सजा दिए गए हैं– सबसे ज़्यादा रोगी होने के।

आपका यकृत (लीवर) ठीक से काम नहीं कर रहा है तो आपको पीलिया हो जाता है (मैं यहां इंफेक्शन से होने वाले पीलिया के बारे में अभी नहीं कह रहा)। रक्त में बिलीरुबिन का स्तर बढ़ जाता है। आप कुछ दिन दवाई खाते हैं, आपका लिवर फिर से सही तरीके से कार्य करने लगता है, आपका पीलिया ठीक हो जाता है और रक्त में बिलीरुबिन का स्तर भी सामान्य स्तर पर आ जाता है। अब ऐसा क्यों संभव नहीं है कि पेनक्रियाज़ के ठीक से काम ना करने के कारण हुई मधुमेह ठीक ना हो? जैसे लीवर को ठीक किया जा सकता है वैसे ही अग्नाशय (पेनक्रियाज़) को भी फिर से क्रियाशील किया जा सकता है। वह दवाई जो अंगों को बेबस और लाचार बनाए वह अंगों को फिर से क्रियाशील नहीं कर पाएंगी। अंगों को क्रियाशील बनाने के लिए वह दवाइयां लेनी होंगी जो कि उन्हें शक्ति प्रदान करें। इस प्रकार की दवाइयों का वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में भंडार है जैसे आयुर्वेद, यूनानी, चाइनीज़ और होम्योपैथी। लेकिन दुर्भाग्य से लोग इनकी तरफ मधुमेह का पता लगने पर कम ही आते हैं। वे उधर दौड़ पड़ते हैं जहाँ उपचार ऐसा था जो कि अंतिम विकल्प था। अंतिम विकल्प सबसे पहले चुन लेने पर सारे विकल्प स्वतः खत्म हो जाते हैं।

यदि आपको अभी पता चला है कि आपकी शुगर बढ़ गई है तो आप ज़िन्दगी भर लेने वाली दवाई के स्थान पर इसे आयुर्वेद, योग और आहार से कुछ दिनों या महीनों में ठीक कर सकते हैं। अनियमित दिनचर्या को ठीक करके भी अधिकांश लोग अपनी शुगर नियंत्रित कर लेते हैं। तनाव से लड़ना सीखना, बेवजह के डर को दूर करने से भी शुगर सामान्य हो जाती है। यह विकल्प चुन कर हम शतप्रतिशत मधुमेह रोगियों को तो इस रोग से मुक्ति नहीं दिलवा सकते लेकिन हाँ, अधिकांश रोगियों को मुक्ति दिलवाई जा सकती है, केवल 20 से 30 फीसदी रोगियों को ही जीवन भर दवाओं पर निर्भर रहने की ज़रूरत पड़ेगी।

परहेज़-

ग्लूकोज़, चीनी, जैम, गुड़, मिठाईयां, आइसक्रीम, केक, पेस्ट्रीज और चाकलेट, तला हुआ भोजन या प्रोसेस्‍ड फूड भी इसमें नुकसान देते हैं। अल्कोहल का सेवन या कोल्‍ड ड्रिंक भी डायबिटीज़ के मरीजों के लिए हानिकारक है। मधुमेह रोगियों को धूम्रपान से दूर रहने के साथ ही सूखे मेवे, बादाम, मूंगफली, आलू और शकरकंद जैसी सब्ज़ियां बहुत कम या बिल्‍कुल नहीं खाना चाहिए। फलों में केला, शरीफा, चीकू, अन्जीर और खजूर से परहेज करना चाहिए।

क्या खाएं- सलाद के साथ ही सब्ज़ियों में मेथी, पालक, करेला, बथुआ, सरसों का साग, सोया का साग, सीताफल, ककड़ी, तोरई, टिंडा, शिमला मिर्च, भिंडी, सेम, शलजम, खीरा, ग्‍वारफली, चने का साग और गाजर आदि लाभदायक हैं। इसके अलवा उन्‍हें फाइबर व ओमेगा थ्री फैटी एसिड युक्‍त आहार का भी ज़्यादा से ज़्यादा सेवन करना चाहिए। नॉनवेज में तंदूरी या उबले मुर्गे का मीट और मछली को उबालकर या भूनकर खा सकते हैं। एक-दो अंडे भी आप खा सकते हैं।

~डॉ अबरार मुल्तानी

लेखक और चिकित्सक