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मिनटों में क्यों ख़त्म हो जाती है, रेलवे की तत्काल टिकट ?

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ट्रेन की तत्काल टिकट की बुकिंग के लिए लोग हमेशा ही परेशान रहते हैं, सीमित और निश्चित  समय के कारण के कारण महज कुछ सेंकडों में ही टिकट खत्म हो जाने की शिकायतें मिलती रहती हैं. परन्तु असल में इसके पीछे एक बड़ा नेटवर्क एक्टिव है जो तत्काल टिकटों की हेराफेरी से जुड़ा हुवा है.
ट्रैवल एजेंट्स की ओर से ऐसे ऑनलाइन सॉफ्टवेयर्स का इस्तेमाल किया जाता है, जो तत्काल बुकिंग के सिस्टम में सेंध लगाने का काम करते हैं. फिलहाल देश की शीर्ष जांच एजेंसी सीबीआई इनके खिलाफ पड़ताल करने में जुटी है.
सीबीआई के विश्व्शत सूत्रों ने रविवार को बताया कि, “उसने अपने ही एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर को अरेस्ट किया है, जिसने खुद इसी तरह का सिस्टम डिवेलप कर लिया था अब एजेंसी ऐसे ट्रैवल एजेंट्स की तलाश में है, जो तत्काल टिकटों की हेराफेरी के काम में लगे हुए हैं. ऐसे सभी सॉफ्टवेयर अब हमारे रेडार पर हैं. हम इनकी जांच कर रहे हैं और इनके ऑपरेशन कोई गड़बड़ी पाई गई तो जल्दी ही ऐक्शन लिया जा सकता है.”
सीबीआई के सूत्रों ने बताया कि, “उसके अपने प्रोग्रामर अजय गर्ग की तरह ही कई अन्य लोगों ने भी इस तरह के सॉफ्टवेयर्स तैयार किए हैं.”
इन सॉफ्टवेयर्स का इस्तेमाल रेलवे के टिकट सिस्टम की गति को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है. इससे बुकिंग की प्रक्रिया तेज हो जाती है और एक साथ तमाम टिकट एजेंट्स बुक कर लेते हैं. सूत्रों ने बताया कि अजय गर्ग की ओर से तैयार  ‘NEO ‘  सॉफ्टवेयर ऐसे ही अन्य सॉफ्टवेयर्स के सरीखा ही है.

कैसे होता है पुरा खेल

एजेंट्स की ओर से इस्तेमाल किए जाने वाले सॉफ्टवेयर्स को ‘ऑटो फिल’ सिस्टम के तहत इस्तेमाल किया जाता है.
इसके जरिए टिकट लेने वाले लोगों की डिटेल एजेंट्स तत्काल टिकटों की बुकिंग शुरू होने से पहले ही भर देते हैं.
इन सॉफ्टवेयर्स के चलते पीएनआर जनरेट करने की प्रक्रिया तेज हो जाती है. इससे एजेंट आईआरसीटीसी के कैप्चा को बाईपास कर मल्टिपल आईडी से लॉग इन करते हैं और एक साथ तमाम टिकट बुक कर लेते हैं.