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क्या मोदी चूक गए हैं ?

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जब ये खबरें आनी शुरू हुर्इं कि गुजरात में नरेंद्र मोदी की रैलियों में भीड़ नहीं जा रही है। लोग कम, खाली कुर्सियां नजर आ रही हैं, तो इसे मैंने सोशल मीडिया का शिगूफा समझा था। दिल और दिमाग यह मानने को तैयार नहीं था कि नरेंद्र मोदी इतनी जल्दी जनता का विश्वास खो सकते हैं। लेकिन अब मीडिया में यह आने लगा है कि गुजरात में वाकई भाजपा की हालत खराब है। मोदी की चमक फीकी पड़ने लगी है।
दरअसल, नोटबंदी और जीएसटी भाजपा के लिए वॉटर लू बनने जा रही हैं। ऐसा लगने लगा है कि समय का चक्र पूरा हो गया है। जिस गुजरात से मोदी का सितारा उदय हुआ था, वहीं अस्त होने को है। नोटबंदी और जीएसटी ने जनता को खून के आंसू रुलाए हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा तक जनता को उम्मीद थी कि नोटबंदी से गरीबों का भला होगा, अमीर सड़कों पर आ जाएगा। लेकिन अमीरों का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन गरीब जहां था, उससे भी नीचे आ गया। जीएसटी लागू होने के बाद उस मिडिल क्लास को चपत लगी, जो जीएसटी लागू होने से पहले तक मोदी… मोदी… मोदी कर रहा था। जीएसटी लागू होने के बाद उसे भी एहसास हुआ कि उसके नीचे से जमीन खिसक रही है। इस तरह मोदी न तो गरीबों को कुछ दे पाए, न अमीरों को खुश रख सके।
मेरा मानना है कि धार्मिक धु्रवीकरण पेट भराई के सौदे हैं। जब पेट पर लात लगती है तो पेट प्राइमरी और धर्म सेकेंड्री हो जाता है। इसलिए मोदी की धाार्मिक धु्रवीकरण की योजना परवान नहीं चढ़ रही है। गुजरात का व्यापारी, किसान, दलित और पाटीदार समाज मोदी का विरोध करने सामने आ चुका है। भाजपा इस अतिआत्मविश्वास में थी कि ‘मोदी मैजिक’ गुजरात में उसकी नैया पार लगा देगा। लेकिन ‘मैजिक’, सिर्फ मैजिक होता है। उसका वास्तविकता से कोई वास्ता नहीं होता। इसलिए गुजरात में मोदी का मैजिक भी नहीं चल पा रहा है।
यही वजह है कि भाजपा ने गुजरात में उन 14 मेयरों को भी चुनाव प्रचार के लिए बुला लिया गया है, जो उत्तर प्रदेश में जीते हैं। भाजपा बताना चाहती है कि उत्तर प्रदेश में अभी ‘मोदी मैजिक’ बरकरार है। लेकिन आंकड़े बोल रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ हुआ है। उत्तर प्रदेश के शहरी इलाकों में भाजपा जनसंघ के जमाने से ही जीतती अ रही है, भले ही प्रदेश में सरकार किसी की भी रही हो। उत्तर प्रदेश आंकड़े सोशल मीडिया में तैर रहे हैं, इसलिए उन्हें दोबारा बताने की जरूरत नहीं है। शहरों को छोड़कर सभी जगह भाजपा साफ हो गई है।
यह तब हुआ है, जब मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने चुनाव प्रचार ऐसे ही किया था, जैसे विधानसभा चुनाव का किया जाता है। उधर, पूरे विपक्ष के बड़े नेताओं ने एक भी रैली नहीं की थी। चुनाव स्थानीय कार्यकर्ताओं ने ही लड़ा। उसके बावजूद भाजपा साफ हो गई। इससे समझा जा सकता है कि जनता का विकल्प की जरूरत नहीं होती, वह खुद विकल्प बन जाती है। गुजरात में भी यही होने जा रहा है। वहां जनता ही विकल्प है, कांग्रेस तो बस सिंबल है

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