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कविता – कुछ मुसलमान भी , सीने से लगाने होंगे – "सतीश सक्सेना"

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इनके आने के तो कुछ और ही माने होंगे !
जाने मयख़ाने के, कितने ही बहाने होंगे !

हमने पर्वत से ही नाले भी निकलते देखे !
हर जगह तो नहीं , गंगा के मुहाने होंगे !

धन कमाना हो खूब,मीडिया में आ जाएँ 
एक राजा के ही बस, ढोल बजाने होंगे ! 

सोंच में हो मेरे सरकार,तो कह ही डालो
आज भी अनकहे कुछ वाण चलाने होंगे !

राज आचार में, सौजन्य मुखौटा ही नहीं
कुछ मुसलमान भी, सीने से लगाने होंगे !

सतीश सक्सेना

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