जेएनयू में लेफ्ट यूनिटी की जीत आज मीडिया पर चर्चा का विषय बन रही है दरअसल जहाँ भी बैलेट पर चुनाव होंगे वहाँ आरएसएस से जुड़े संगठनों को चाहे वह भाजपा हो या चाहे एबीव्हीपी सभी को हार का सामना करना होगा लेकिन जेएनयू हमेशा से ही लेफ्ट का गढ़ रहा हैं इसलिए इस बात पर इतना अधिक उत्साहित होने की जरूरत नही है यदि आपको छात्रसंघ चुनाव ही देखने है तो इंदौर के आसपास के आदिवासी क्षेत्रों में पिछले साल हुए छात्रसंघ चुनावो को देखिए कैसे एक नये संगठन ने ABVP ओर NSUI जैसे सालो से स्थापित दलों को धूल चटाई है.
पिछले साल हुए छात्रसंघ चुनावों में ‘जयस’ ने एबीवीपी और एनएसयूआई को बहुत पीछे छोड़ते हुए झाबुआ, बड़वानी और अलीराजपुर जैसे आदिवासी बहुल ज़िलों में 162 सीटों पर जीत दर्ज की थी. आज पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों अलीराजपुर, धार, बड़वानी और रतलाम में ‘जयस’ की प्रभावी उपस्थिति है, जबकि यह क्षेत्र भाजपा और संघ परिवार का गढ़ माना जाता रहा है.
2013 में डॉ. हीरालाल अलावा द्वारा जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) का गठन किया गया था, जिसके बाद इसने बहुत तेजी से अपने प्रभाव को कायम किया है.
2003 में मध्यप्रदेश में आदिवासियों के लिए आरक्षित 41 सीटों में से कांग्रेस को महज 2 सीटें ही मिली थी जबकि भाजपा ने 34 सीटों पर कब्ज़ा जमा लिया था. 2003 के चुनाव में पहली बार गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी, जो कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने का एक प्रमुख कारण बनी इस बार भाजपा के लिए यही काम ‘जयस’ करने जा रही है.
‘जयस’ द्वारा निकाली जा रही आदिवासी अधिकार संरक्षण यात्रा में उमड़ रही भीड़ इस बात का इशारा है कि बहुत ही कम समय में यह संगठन प्रदेश के आदिवासी समाज में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहा है जयस के नेता हीरालाल अलावा की पकड़ आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बहुत अच्छी है , ऐसे युवा नेताओं को देश की राजनीति की मुख्य धारा में यदि आगे लाया जाए तभी इस देश की राजनीति की दशा और दिशा में परिवर्तन लाया जा सकता हैं यदि ऐसे नए लोगो को गठबंधन की राजनीति में कांग्रेस आगे लाती है ओर सेक्रिफाइज करती है तभी इस मध्यप्रदेश में ओर देश मेसत्ता परिवर्तन की उम्मीद रख सकती है.