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जब लोकतंत्र के किले पर हुआ था हमला

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तारीख 13 दिसम्बर 2001. सुबह, बस कुछ खास तो नहीं था, सूरज तो अपनी वैसी ही लालिमा लेकर निकला था, रक्त जैसी. घड़ी की सुइयां धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, सब कुछ शांत सा था, 11 बजे तक तो! जैसे ही घड़ी में 11 बजकर 28 मिनट हुए तो दिल्ली सिहर उठी थी. देश पर पहला बड़ा आंतकी हमला हुआ था वो भी लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाली संसद पर. वो संसद जिसमें जनता के मुद्दे पर बात होनी थी, वो आज खुद लाचार सी लग रही थी. लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के 5 आतंकी संसद पर हमला कर  भारत की हिम्मत तोड़ना चाहते थे, मगर सुरक्षाकर्मियों ने जान की बाजी लगाकर उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया.

कैसे हुआ था हमला

संसद में  शीतकालीन सत्र की बहस चल रही थी. वाजपेयी सरकार के ताबूत घोटाले पर. विपक्ष के जबरदस्त हंगामे के बाद दोनों सदनों की कार्यवाही 40 मिनट के लिए स्थगित की जा चुकी थी. सदन स्थगित होते ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी लोकसभा से निकल कर अपने-अपने सरकारी निवास के लिए कूच कर चके थे. बहुत से सांसद भी वहां से जा चुके थे. पर गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी अपने कई साथी मंत्रियों और लगभग 200 सांसदों के साथ अब भी लोकसभा में ही मौजूद थे.

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हमेशा की तरह लोकसभा परिसर के अंदर मीडिया का भी पूरा जमावड़ा मौजूद था तब तक बहुत से सांसद और मंत्री भी सदन का बायकॉट कर गुनगुनी धूप शेक रहे थे तभी पार्लियामेंट में तैनात सिक्युरिटी ऑफिसर्स के वायरलेस पर मेसेज आया कि वाइस-प्रेजिडेंट कृष्णकांत घर जाने के लिए निकलने वाले हैं. ऐसे में उनके काफिले की गाड़ियां गेट नंबर 11 के सामने लाइन में खड़ी कर दी गईं.

सफेद ऐंबैसडर में आए थे आतंकी 
इसी बीच सिक्युरिटी ऑफिसर्स ने देखा कि एक सफेद रंग की ऐंबैसडर कार पार्लियामेंट के गेट नंबर 11 की तरफ आ रही थी.  यह कार गेट नंबर 11 को पार करती हुई गेट नंबर 12 के पास पहुंच गई थी. यहीं राज्यसभा के अंदर जाने का रास्ता है. मगर यह कार उस दिशा में बढ़ चली, जहां पर वाइस-प्रेजिडेंट कृष्णकान्त का काफिला खड़ा था. चूंकि वाइस-प्रेजिडेंट का काफिला निकलने वाला था, ऐसे में उस कार को वहीं रुकने का इशारा किया गया. मगर कार की स्पीड बढ़ती ही जा रही थी.  ऐसे में वहां पर तैनात एएसआई जीतराम इस कार के पीछे भागा. ऐंबैसडर का ड्राइवर हड़बड़ाया हुआ लगा रहा था.  अचानक उसने कार पीछे की जो राष्ट्रपति के काफिले की कार से टकरा गई. 

 आतंकियों ने की ताबड़तोड़ फायरिंग

उधर, कार में धमाका कर पाने में नाकाम आतंकियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. गेट नंबर 11 पर तैनात सीआरपीएफ की कॉन्सटेबल कमलेश कुमारी भी दौ़ड़ते हुए वहां आ पहुंची. संसद के दरवाजे बंद करवाने का अलर्ट देकर जेपी यादव वहां आ गया. दोनों ने आतंकियों को रोकने की कोशिश की, लेकिन आतंकियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग करते हुए उन्हें वहीं ढेर कर दिया.
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आजाद देश के सबसे बड़े आतंकी हमले की शुरुआत करने के बाद अब आतंकी गोलियां चलाते और हैंड ग्रेनेड फेंकते हुए गेट नंबर 9 की तरफ भागे.
संसद परिसर में ताबड़तोड़ गोलियां की आवाज ने सुरक्षाकर्मियों में हड़कंप मचा दिया. उस वक्त सौ से ज्यादा सांसद मेन बिल्डिंग में ही मौजूद थे। पहली फायरिंग के बाद कई सांसदों को इस बात पर हैरत थी कि आखिर कोई कैसे संसद भवन परिसर के नजदीक पटाखे फोड़ सकता है. वो इस बात से पूरी तरह बेखबर थे कि संसद पर आतंकी हमला हुआ है.
लेकिन तब तक संसद की सुरक्षा में लगे लोग पूरी तरह हरकत में आ चुके थे. गहरे नीले रंग के सूट पहने हुए ये सुरक्षाकर्मी परिसर के भीतर और बाहर फैल गए। वो सांसदों और मीडिया के लोगों को लगातार अपनी जान बचाने के लिए चिल्ला रहे थे. उस वक्त तक ये भी तय नहीं था कि आतंकी सदन के भीतर तक पहुंच गए हैं या नहीं। इसलिए तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और कैबिनेट के दिग्गज मंत्रियों को संसद भवन में ही एक खुफिया ठिकाने पर ले जाया गया.

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वहीं जो सांसद परिसर से बाहर निकल रहे थे उन्होंने देखा कि हर तरफ अफरातफरी मच गई है. पुलिस की वर्दी पहने हुए लोग इधर से उधर भाग रहे हैं. हर तरफ से गोलियों और हेंड ग्रैनेड दागे जाने की आवाज आ रही थीं। ये वो वक्त था जब पहली बार सही मायने में लोगों को एहसास हुआ कि दरअसल हुआ क्या है. फिर तो इसके बाद गोलियों की तड़तड़ाहट में एक और आवाज गूंज उठी, आतंकवादी, आतंकवादी.
इस तरह ढेर हुए आतंकी 
इस बीच कुछ सांसद और मीडिया वाले ऊपर से यह सब देख रहे थे, लेकिन उन्हें वहां से हटा दिया गया. सुरक्षा के लिए जरूरी सभी कदम उठा लिए गए थे. गेट बंद थे और फोनलाइन्स डेड हो गयी थी.  अब तक सुरक्षा बलों ने मोर्चा संभाल लिया था। गेट नंबर 9 की तरफ बढ़ रहे आतंकियों को रोकने के लिए भारी फायरिंग की जा रही थी। इससे पहले की वे वहां पहुंचते, गेट को बंद कर दिया गया। गोलीबारी से 3 टेररिस्ट जख्मी भी हो गए, मगर में फिर भी आगे बढ़ रहे थे। उन्होंने देखा कि गेट नंबर 9 बंद है तो वे गेट नंबर 5 की तरफ भागने लगे। मगर इनमें से 3 को सुरक्षाकर्मियों ने गेट नंबर 9 के पास ही मार गिराया। एक टेररिस्ट ग्रेनेड फेंकता हुआ गेट नंबर 5 के पास पहुंच गया, मगर यहां उसे भी ढेर कर दिया गया. 
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5 में से 4 आतंकी मार गिराए जा चुके थे, मगर एक आतंकी गेट नंबर 1 की तरफ बढ़ रहा था। यहीं से सभी लोग अंदर जाते हैं। इस गेट को भी बंद कर दिया गया था, ऐसे में वह यहीं पर रुक गया। इस टेरिस्ट ने अपने शरीर पर विस्फोटक बांध रखे थे। इसका इरादा अंदर घुसकर खुद को उड़ा देने का था, मगर तभी एक गोली उससे शरीर पर लगे विस्फोटक से टकराई और ब्लास्ट हो गया.
पर चल रहा था अफवाहों का दौर 
अब तक पांचों आतंकी ढेर हो चुके थे, मगर सुरक्षाकर्मियों को नहीं मालूम था कि कितने आतंकियों ने हमला किया है। इस बीच यह अफवाह फैली की एक आतंकी अंदर घुस गया है. अफवाह फैलने की एक वजह यह भी थी कि आतंकियों ने जो ग्रेनेड फेंके थे, वे काफी देर बाद फटे. अब तक सुरक्षा कर्मी पूरे संसद भवन को अपने कब्जे में ले चुके थे। वे किसी तरह के खतरे की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहते थे. 

पांचवां आतंकी मचाता रहा कोहराम – चार आतंकियों को मार गिराने की कार्रवाई के बीच एक आतंकी गेट नंबर 1 की तरफ बढ़ गया. ये आतंकी फायरिंग करते हुए गेट नंबर 1 की तरफ बढ़ता जा रहा था। गेट नंबर 1 से ही तमाम मंत्री, सांसद और पत्रकार संसद भवन के भीतर जाते हैं. ये आतंकी भी वहां तक पहुंच गया। फायरिंग और धमाके की आवाज सुनने के तुरंत बाद इस गेट को भी बंद कर दिया गया था। इसलिए पांचवां आतंकी गेट नंबर 1 के पास पहुंचकर रुक गया। तभी उसकी पीठ पर एक गोली आकर धंस गई. ये गोली इस आत्मघाती हमलावर की बेल्ट से टकराई। इसी बेल्ट के सहारे उसने विस्फोटक बांध रखे थे. गोली लगने के बाद पलक झपकते ही विस्फोटकों में धमाका हो गया। उस आतंकी के शरीर के निचले हिस्से की धज्जियां उड़ गईं. खून और मांस के टुकड़े संसद भवन के पोर्च की दीवारों पर चिपक गए. जले हुए बारूद और इंसानी शरीर की गंध हर तरफ फैल गई.

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पांचों आतंकियों के ढेर होने के बावजूद इस वक्त तक ना तो सुरक्षाकर्मियों की पता था और ना ही मीडिया को कि आखिर संसद पर हमला कितने आतंकियों ने किया है. अफरातफरी के बीच ये अफवाह पूरे जोरों पर थी कि एक आतंकी संसद के भीतर घुस गया है. इसकी एक वजह ये भी थी कि मारे गए पांचों आतंकियों ने जो हैंड ग्रेनेड चारों तरफ फेंके थे, उनके में कुछ आतंकियों को मारे जाने के बाद फटे.
संसद के भीतर और बाहर मचे घमासान के बीच सुरक्षाकर्मियों को कुछ वक्त लगा ये तय करने में कि क्या खतरा वाकई टल गया है। आधे घंटे के भीतर सभी आतंकियों के मारे जाने के बावजूद वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे। तब तक सुरक्षाबल के जवान संसद और आसपास के इलाके को बाहर से भी घेर चुके थे. गोलियों की आवाज, हैंड ग्रेनेड के धमाके की जगह अब एंबुलेंस के सायरन ने ले ली थी.
किस मकसद से आये थे आंतकी? 
आतंकियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच करीब 30 मिनट तक मुठभेड़ चली. ऐंबुलेंस, बम स्क्वॉड और स्पेशल एजेंसियों के लोग यहां पहुंचने लगे थे. घायलों को तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया। जिस कार से आतंकी अंदर आए थे, उसकी जांच करने पर पता चला कि उसमें हथियार और विस्फोटक रखे हैं. कार के अंदर 30 किलो आरडीएक्स रखा गया था। अगर इस कार में धमाका हो जाता, तो हालात बेहद खराब होते. उधर बम स्कवॉड ने बमों का नाकाम कर दिया. आतंकियों की कार में खाने-पीने का सामान भी मिला, जिससे साफ हुआ कि आतंकियों के मंसूबे कितने खतरनाक थे. वे इस बात की पूरी तैयारी कतके आए थे कि सांसदों को बंधक बना लिया जाए.

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संसद भवन से लोगों को बाहर निकालने से पहले भी पूरी सावधान बरती जा रही थी। सभी का आइडेंटिटी कार्ड चेक किया जा रहा था। जब सुरक्षाकर्मी इस बात को लेकर आश्वस्त हो गए कि अब कोई खतरा नहीं है, तभी सांसदों और मीडियाकर्मियों को बाहर निकाला गया. इस अटैक में नौ लोगों की जान गई और इनके अलावा पांचों आतंकवादी भी मारे गए.

सुरक्षाकर्मियों की बहादुरी 
एएसआई जीतराम गुस्से में कार ड्राइवर के पास पहुंचे और उन्होंने उसका कॉलर पकड़ लिया. उन्होंने देखा कि अंदर सेना के लोग जवान बैठे हैं। इतने में ड्राइवर ने एएसआई को कहा कि हट जाओ वरना गोली मार देंगे। इतने में एएसआई को समझ आ गया कि अंदर बैठे लोगों ने भले ही सेना की वर्दी पहन ली है, लेकिन वे कोई और हैं। ऐसे में उन्होंने अपना रिवॉल्वर निकाल लिया। कार चला रहा शख्स तेजी से कार को गेट नंबर 9 की तरफ ले जाने लगा। इतने में एक और सिक्युरिटी गार्ड जेपी यादव ने यह सब देखा और तुरंत सभी को मेसेज दिया कि सभी गेट बंद कर दिए जाएं। उधर हड़बड़ी में ऐंबैसडर कार सड़क किनारे लगाए गए पत्थरों से टकराकर रुक गई। कार में सवार 5 लोग उतरे और उन्होंने तुरंत वायर्स बिछाना शुरू कर दिया। अब तक साफ हो चुका था कि ये लोग आतंकी थे और विस्फोटक लगा रहे थे। एएसआई जीतराम ने एक आतंकी पर रिवॉल्वर से फायर कर दिया। गोली आतंकी के पैर पर लगी। दूसरी तरफ से भी फायर हुआ और गोली लगने से जीतराम वहीं गिर गए.  Image result for parliament attack 2001

बम निरोधक दस्ते ने वहां पहुंचने के बाद विस्फोटकों को नाकाम करना शुरू किया। उन्हें परिसर से दो जिंदा बम भी मिले थे। जिस कार से आतंकी आए थे, उसमें 30 किलो आरडीएक्स था। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर आतंकी इस कार में धमाका करने में कामयाब हो गए होते तो क्या होता।

सुरक्षाबलों को पूरी तरह तसल्ली करने में काफी देर लगी। वो अब किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते थे। हर किसी की एक बार फिर जांच की गई। संसद परिसर से निकलने वाली हर कार की भी तलाशी ली जा रही थी। जिन कारों पर संसद का स्टीकर लगा था उन्हें भी पूरी छानबीन करके ही बाहर जाने की इजाजत दी जा रही थी। एक-एक आदमी का आईकार्ड चेक किया जा रहा था। जब सुरक्षा में जुटे लोग पूरी तरह संतुष्ठ हो गए कि अब खतरा नहीं है, तब संसद सांसदों और मीडिया के लोगों को एक-एक करके बाहर निकालने का काम शुरू हुआ।
दोपहर साढ़े ग्यारह बजे के करीब हुए हमले के बाद मचे हड़कंप को थमते-थमते शाम हो गई। पूरा देश अब तक इस हमले को जज्ब नहीं कर पाया था। सत्ता के गलियारों में बैठक पर बैठक पर हो रही थी कि इस हालात का मुकाबला कैसे किया जाए। उधर इतिहास में 13 दिसंबर की तारीख को हमेशा के लिए दर्ज कराकर सूरज भी धीरे-धीरे डूबने लगा था।

इस तरह सुरक्षाकर्मियों की मुस्तैदी और बहादुरी ने आंतकियों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया और अपनी जान की बाजी लगा लोकतंत्र के मंदिर की लाज बचाई. हम इतिहास में दर्ज वीर सपूतों को नमन करते है, जय हिन्द.