क्या सुबोध सिंह की हत्या के पीछे कोई साज़िश थी ?

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कल बुलंदशहर में जो लोहमर्षक घटनाक्रम सामने आया है उसके लिए मोब लिंचिंग बड़ा सॉफ्ट सा शब्द लग रहा है अब भीड़ किसी मुसलमान दलित को निशाना नही बना रही है अब उसके हाथ इन्स्पेक्टर रैंक के अधिकारियों तक पुहंच गए है.
सारा घटनाक्रम सिर्फ दो घण्टे में ही निपट गया साफ है कि गोकशी की बात अफवाह फैलाकर रास्ता जाम करने की बात इसलिए ही फैलाई गयी ताकि दादरी के अखलाक कांड की जाँच करने वाले सुबोध सिह जाम खुलवाने के लिए आएं …और बताया जा रहा है कि जांच का आश्वासन देकर जाम खुलवा भी दिया गया था लेकिन उसके बाद भीड़ को समझाने गए सुबोध सिह को घेरकर मार डाला गया क्योकि सुबोध सिंह वही अधिकारी थे जिन्होंने अखलाक केस में कई लोगों की गिरफ्तारी की थी.
एडीजी लॉ एंड ऑर्डर आनंद कुमार ने भी यह माना उन्होंने कहा कि ‘यह साफ किया जाता है कि सुबोध कुमार सिंह अखलाक मॉब लिंचिंग केस के 28 सितंबर 2015 से लेकर 9 नवंबर 2015 तक जांच अधिकारी थे अखलाक को दादरी के बिसहारा गांव में भीड़ ने इस अफवाह पर पीट-पीटकर मारा डाला कि उसके परिवारवालों ने गो मांस रखा था. केस में सुबोध सिह पर आरोप लगा था कि जांच प्रक्रिया के दौरान उन्होंने पारदर्शिता नहीं रखी थी. इन आरोपों के कारण ही उनका ट्रांसफर केस के बीच में ही वाराणसी कर दिया गया था.
रात तक यह भी साफ हो गया कि इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की मौत गोली लगने से हुई. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के अनुसार सुबोध सिंह को बांयी आंख की भौं के पास गोली लगी. जबकि पहले पुलिस भीड़ के द्वारा पिटाई दौरान मौत की बात कर रही थी सुबोध सिंह के ड्राइवर ने जो बयान दिए हैं उससे यह साफ हो जाता है कि भीड़ का उद्देश्य ही सुबोध सिंह की हत्या करना था सुबोध सिह के बड़े बेटे ने भी साफ कर दिया कि एक विवादित केस की जांच में उन पर दबाव बनाया जा रहा था और उसी केस में उन्हें धमकाया भी जा रहा था.
इस घटना को देखते हुए यह कहना ही होगा कि योगी सरकार के शासन को जंगल राज कहना भी जंगल की बेइज्जती होगी यह सिर्फ और सिर्फ अराजकता है.

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