भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25,26,27,28 प्रत्येक नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, और ये मौलिक अधिकारों की सूची में दर्ज है जिसका हर हाल में पालन होना चाहिए। इस अधिकार का मूल उद्देश्य भारत में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बनाए रखना है।
संविधान के तीसरे भाग में सम्मिलित ये सब मौलिक अधिकार, नागरिकों की धार्मिक/सांस्कृतिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, उनको अपने रीतिरिवाज मानने की आज़ादी देता है। अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। अनुच्छेद 25 के अंतर्गत ही सिख समुदाय के लोगों को कृपाण धारण करना और इसको लेकर चलने की भी स्वतंत्रता मिली हुई है।
अब कोई नागरिक अपनी धार्मिक स्वतंत्रता के अंतर्गत अपने हिसाब से अपना ड्रेस पहनता है, अपनी सांस्कृतिक एवं धार्मिक मान्यताओं का आदर करता है तो उस व्यक्ति की आस्था या उसके पहनावे पे सवाल खड़ा करना या उसका विरोध करना मूलरूप से भारतीय संविधान का विरोध करना है जोकि किसी देशद्रोह से कम नहीं है।
ऐसा क्यों होता है कि सिख समुदाय के लोग कृपाण लेकर चलते हैं, पगड़ी बाँधते हैं तो उसपर कभी कोई सवाल नहीं करता। पर जैसे ही कोई मुस्लिम दाढ़ी रखकर निकलता है, कोई महिला हिज़ाब पहनकर बाहर निकलती है तो लोग उसको दक़ियानूस/पिछड़ी/कट्टरपंथी कहकर उसका विरोध करते हैं? और ये सब वो लोग करते हैं जो लोग खुद को लोकतांत्रिक एवं संविधान का प्रहरी बने बैठे हैं।
आख़िर क्यों हिज़ाब हर दो महीने के बाद डिस्कॉर्स में आ जाता है? अब किसे क्या पहनना है और क्या नहीं पहनना है, ये वो व्यक्ति तय करेगा या फिर कथित लोकतंत्र के फ़र्ज़ी चैम्पियन लोग? लोगों का पहनावा लोग खुद तय करेंगे या फिर कथित मानवाधिकार आंदोलन चलाने वालों की दुकानों में तय होगा?
अभी हाल ही में जब अमेरिका में हिज़ाब पहनने वाली महिला पार्लियामेंट पहुँचती हैं तो पूरी दुनिया उनको एक नए दौर के आग़ाज़ के तौर से देखती है पर वहीं भारत में कोई महिला हिज़ाब पहनकर मार्केट में निकलती है तो उसे तुरंत पिछड़ी और दक़ियानूस कह दिया जाता है? और जो लोग पहनावे की स्वतंत्रता की वकालत करते हैं उन्हें कट्टरपंथी कह दिया जाता है।
जो लोग मुसलमानों के प्रति हो रहे लिंचिंग का दिन रात विरोध करते हैं, उन लोगों के अंदर भी इस कदर से इस्लामोफोबिया भरा रहता है कि वे लोग भी हिज़ाब या किसी धार्मिक मान्यता के मुद्दे पे कैरिक्टर लिंचिंग कर देते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि वे लोग खुद धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को नहीं मानते हैं। ऐसे लोग आलोकतंत्रिक हैं और संविधान विरोधी।