भारत मे जन्मा पाकिस्तानी तानाशाह जिसकी मौत तमाशा बनीं.

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पाकिस्तान के शासन की बात जब भी की जाएगी तो उसमें तख्तापलट और सैनिक शासन को ज़रूर जोड़ा जाएगा। ये बात जग जाहिर है की पाकिस्तान में जब भी सरकार बनी,सेना के समर्थन से ही बनी,अगर सरकार हटी भी तो सेना ही सत्ता में आई।

नवाज़ शरीफ़ के शासन का तख्तापलट जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने किया था,वहीं आए दिन जनरल बाजवा भी खबरों में छाए रहते हैं । लेकिन इस लेख में इन दोनों की बात नहीं की जाएगी।

आज हम बात करेंगे पाकिस्तान के उस तानाशाह की जिसने पाकिस्तान को इस्लामिक देश बनाना चाहा। जिसकी नीतियों को पाकिस्तान की खस्ता हालत का जिम्मेदार माना जाता है और जिसे इतिहास में विलेन के तौर पर दर्ज किया गया है,ये व्यक्ति था मोहम्मद ज़िया उल हक।

जो पाकिस्तान का छठा राष्ट्रपति और पहला तानाशाह बना,जिसने एक लोकतांत्रिक देश को इस्लामिक मुल्क बनाना चाहा और अपनी ज़िद की वजह से अपने ही देश के प्रधानमंत्री को फाँसी पर चढ़ा दिया।

पंजाब के जालंधर में हुआ था जन्म

ज़िया उल हक का जन्म 12 अगस्त 1924 को पंजाब के जालंधर में हुआ था, उस वक्त ये ब्रिटिश भारत था।पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में क्लर्की का काम करते थे।

वहीं से सेना के प्रति रुचि पैदा हो गयी,हक़ का झुकाव धर्मिक प्रवृत्तियों में था,वहीं कट्टर इस्लाम को मानने वाले व्यक्ति थे। ये सभी गुण हक़ को पिता मुहम्मद अकबर से मिले।

शुरुआत की पढ़ाई शिमला में हुई,इसके बाद हक ने दिल्ली का रुख किया। दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से इतिहास की पढ़ाई की,कॉलेज के दौरान व्यवहार काफ़ी शांत था।1943 में पढ़ाई खत्म कर ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हो गए।

भारत के साथ लड़े थे 3 युद्ध

ब्रिटिश भारतीय सेना में हक़ ने 2nd world war लड़ा,दो साल बाद देश वापस आए,इस वक्त भारत को ब्रिटिश शासन से आज़ादी मिली और देश का विभाजन भी हुआ। हक़ परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए,वहाँ भी सेना में लगातार काम करते रहे।

1948 में कश्मीर को लेकर जब भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ तो हक़ इस युद्ध मे भी लड़े। 1965 और 1970 में भी ज़िया उल हक भारत-पाक युद्ध मे लड़े,इस तरह ज़िया ने भारत के साथ 3 युद्ध लड़े।

चापलूसी से मिला आर्मी चीफ़ का पद।

रोर मीडिया के अनुसार 1966 में 22 कैवलरी की कमान संभाली,उसे बाद कर्नल स्टाफ बने वहीं 1969 में पाकिस्तानी सेना के ब्रेगेडियर बने।दी लल्लनटॉप के मुताबिक ज़िया हमेशा जुल्फिकार अली भुट्टो की चापलूसी किया करते थे।

जैसे किसी भी समारोह में जब भुट्टो जाया करते थे तो सैनिकों की पत्नियों और बच्चे से उन पर फूलों की वर्षा करवा दिया करते थे।

1976 में प्रधानमंत्री भुट्टो को एक ऐसा आर्मी चीफ चाहिए था जो सिर्फ उनकी सुने और करे कुछ नहीं ऐसे मे उन्हें हक़ की याद आई।

भुट्टो ने चार सितारा देकर ज़िया उल हक को आर्मी चीफ बना दिया।हालांकि उस समय किसी ने भी हक़ को इतनी बड़ी पोस्ट मिलने की उम्मीद नहीं कि थी।

भुट्टो का तख्तापलट।

आर्मी चीफ बनने के बाद हक ने अपना असली चेहरा दिखाना शुरू किया । कोई नहीं जानता था कि भोला भाला और छोटे कद का दिखने वाला ज़िया उल हक इतना क्रूर तानाशाह निकलेगा।

हक ने पाकिस्तान में अराजकता और अशांति फैलाना शुरू किया ताकि भुट्टो को पद से हटाया जा सके। 5 जुलाई 1977 को पूरी योजना से भुट्टो को सत्ता से हटाकर हक़ राष्ट्रपति बनें।

वहीं 1979 में लाहौर हाइकोर्ट के ज़रिए नवाब मोहम्मद अहमद खान की हत्या के जुर्म में जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दे दी गयी।

ज़िया का तानाशाही शासन।

80 के दशक में हक़ को राजनीतिक प्रतिस्पर्धा ने हिंसक और क्रूर बना दिया। हक के शासन काल मे प्रतिस्पर्धी, अल्पसंख्यक और पत्रकारों को न केवल यातनाए दी गयी उन पर जुल्म भी किये गए।

जो ज़िया के खिलाफ हुए उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया,पाकिस्तान को इस्लामिक देश बनाने के नाम पर ज़िया का शासन तानाशाही हो चला था। इतना ही नहीं सत्ता में आने के बाद उसने संविधान ही को ठुकरा दिया था।

जियाउल हक ने शरिया कानून लागू किया।

अहमदिया मुसलमानों को तो पाकिस्तान में मुस्लिम ही नहीं माना जाता था।जिसके कारण न तो वो नमाज़ पढ़ने के स्थान मस्ज़िद जा सकते थे और न ही अपने घर की बेटियों का नाम पैग़म्बर मोहम्मद के नाम पर रख सकते थे। शिया और सुन्नी दोनों साम्प्रदायों के बीच होने वाली मार काट ने भी इस दौर मे भयानक साम्प्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया।

अचानक हुई थी मौत

17 अगस्त 1988 को बहावलपुर एयरपोर्ट पर एक संदिग्ध हवाई दुर्घटना में जिया उल हक की मौत हो गयी। हक़ के साथ अमेरिका के इस “हरकुलिस सी 130″विमान में 31 लोग मौजूद थे।

इसमें पाकिस्तान आर्मी चीफ जनरल अख्तर अब्दुल रहमान,अमेरिका के राजदूत अर्नाल्ड राफेल,पाकिस्तानी सेना के अन्य वरिष्ठ अधिकारी थे।

बीबीसी के मुताबिक,विमान उड़ा और 10 मिनट के भीतर ही ज़मीन से आकर टकरा गया। हादसा इतना भीषण था कि विमान में तुरंत आग लग गयी, विमान में मौजुद सभी की मौत हुई, वहीं लाशों की हालत ऐसी थी कि किसी को पहचानना भी मुश्किल था।

ज़िया की मौत नहीं हत्या हुई थी।

11 साल तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे ज़िया उल हक पाकिस्तान के लिए एक तानाशाह था। हक़ की मौत के बाद जहाँ आम जनता ने राहत की सांस ली,वहीं हक़ के वफादारों ने इसे हत्या करार दिया।

किसी ने इसे सोवियत संघ के ख़ुफ़िया एजेंसी केबीजी का काम बताया,तो किसी ने रॉ का,वहीं अनुमान लगाया गया कि जुल्फिकार अली भुट्टो के बेटे मुर्तजा ने पिता की मौत का बदला लिया है।

दूसरी ओर ज़िया उल हक के बाद पाकिस्तनी सीनेट के दूसरे सभापति गुलाम इशाक खान पाकिस्तान के 7वे राष्ट्रपति बने।

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