भाजपा के संजीव बालियान के भाई बनें हैं अखिलेश के योद्धा

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राजनीति में कब क्या हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता है,रातों रात पार्टी बदल कर सरकार बनाने या बिगाड़ने का फॉर्मूला बहुत पुराना है। वहीं जब बात उत्तर प्रदेश की आ जाती है तो वहां पर कुछ भी मुमकिन हो सकता है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। भाजपा के केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के भाई ने सपा जॉइन कर ली है।

समाजवादी पार्टी में शामिल होने वाले सत्येंद्र बालियान केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के ताऊ के बेटे हैं और पूर्व में हुए ज़िला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में वो भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार के तौर पर चुनाव भी लड़ चुके हैं। हालांकि वो चुनाव हार गए थे लेकिन 2022 के चुनावों के मद्देनज़र उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थामा है।

चर्चाएं जोरों पर हैं…

जाटलैंड के नाम से प्रसिद्ध पश्चिमी यूपी में जब किसी केंद्रीय मंत्री का भाई विपरीत पार्टी में शामिल हो जायेगा तो चर्चा तो होनी ही होती है। सत्येंद्र बालियान के सपा में जाने के बाद चर्चाओं का बाज़ार गर्म है। उसके पीछे दो बड़े कारण हैं। पहला ये है कि जाट बिरादरी से संबंध रखने वाले सत्येंद्र बालियान किसी सीट से विधानसभा प्रत्याशी के तौर पर अगर चुनाव लड़ते हुए नज़र आये तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी।

दूसरा बड़ा कारण अखिलेश यादव रालोद के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं और जाट-मुस्लिम गठजोड़ के ही दम पर ये गठबंधन खुद को मजबूत मान रहा है और जीत के दावे भी कर रहा है ऐसे में भाजपा को इस तरह अपने वेस्ट यूपी क्षेत्र के सबसे बड़े नेता के भाई के दूसरी पार्टी में जाने से काफी नुकसान भी हो सकता है।

 

इसके अलावा जो सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात है वो ये है कि सत्येंद्र बालियान जिस समय पार्टी जोइनिंग का कार्य कर रहे हैं उस समय उनके साथ कैराना विधानसभा से विधायक नाहिद हसन और पूर्व में कैराना लोकसभा की सांसद तबस्सुम हसन मौजूद थी। ऐसे में इन लोगों के अपने गठबंधन को बहुत मज़बूती देने का काम किया है।

एक बड़े प्लान के तहत..

वेस्ट यूपी में इस समय सबसे बड़े जाट नेता के तौर पर स्थापित संजीव बालियान फ़िलहाल रालोद-सपा गठबंधन के खिलाफ भाजपा का सबसे मज़बूत नाम है। इस जॉइनिंग के द्वारा गठबंधन द्वारा जाट-मुस्लिमों में एक मैसेज भी दिया जा रहा है कि हमारा गठबंधन सड़क से लेकर घरों तक मज़बूत है।

कुछ महीनों पहले ही जब केंद्रीय मंत्री के भाई सत्येंद्र बालियान ने भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ा था उसी समय संजीव बालियान ने ये साफ कर दिया था कि वो अपनी पार्टी का साथ देंगें न के परिवार का इसलिए इन दोनों ही भाईयों के बीच दूरियां बढ़ गयी थी।

इस दूरी पर अब मोहर लग गयी है,और चुनावों के समय हो ये भी सकता है कि एक भाई दूसरे भाई के खिलाफ चुनाव प्रचार करते हुए अपनी अपनी पार्टी का धर्म निभाते हुए नज़र आ जाएं।

बाकी फिलहाल किसान आंदोलन के पक्ष और विपक्ष में फंसा पश्चिमी यूपी का माहौल अभी कुछ भी बना नही है… देखते हैं क्या होता है