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कविता: नील में रंगे सियार, तुम मुझे क्या दोगे ? – सतीश सक्सेना

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अगर तुम रहे कुछ दिन
भी सरदारी में ,
बहुत शीघ्र गांधी,
सुभाष के गौरव को
गौतम बुद्ध की गरिमा
कबिरा के दोहे ,
सर्वधर्म समभाव
कलंकित कर दोगे !
कातिल, धूर्त, अंगरक्षक , धनपतियों के
नील में रंगे सियार, तुम
मुझे क्या दोगे ?

दुःशाशन दुर्योधन शकुनि
न टिक पाएं !
झूठ की हांडी बारम्बार
न चढ़ पाए,
बरसों से अक्षुण्ण रहा
था, दुनियां में ,
भारत आविर्भाव,
कलंकित कर दोगे !!
भारत रत्न मिले, तुमको मक्कारी में
कितने धूर्त महान, तुम
मुझे क्या दोगे ?
है विश्वास मुझे तुम
जल्दी जाओगे !
बस अफ़सोस यही
अपयश दिलवाओगे
पंचशील सिद्धांत ,
सबक इतिहासों का
दोस्त रूस को भुला
विश्व में जा जाकर ,
बचा खुचा सम्मान समर्पित कर दोगे
हे अभिनय सम्राट , तुम
मुझे क्या दोगे ?

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