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हाथरस – क्या “विदेशी साज़िश” की थ्योरी, डैमेज कंट्रोल की कोशिश है ?

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हाथरस में दलित परिवार की लड़की के साथ बलात्कार और उसके कुछ दिन बाद हुई उसकी मौत और फिर परिवार के बिना लड़की की लाश को पुलिस द्वारा जला देने के कारण, हाथरस पुलिस और योगी आदित्यनाथ की यूपी सरकार ( UP government of Yogi Adityanath ) लगातार अपने रवैये के कारण आलोचानों की शिकार हो रही है।

फ़िलहाल यूपी पुलिस ने एक FIR दर्ज करते हुए, हाथरस घटना पर प्रशासन के ढीले रवैये के खिलाफ उभरे जनाक्रोश को एक विदेशी साज़िश बताया है। इस FIR में ये कहा गया है, कि उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार को बदनाम करने के लिए बड़ी मात्रा में जातीय हिंसा की साज़िश रची गई थी। जिसके लिए मुस्लिम देशों से 100 करोड़ की फंडिंग की गई थी। साथ ही ये भी कहा गया है, कि इस साज़िश में कई राजनेता, मीडिया हाउस और एक्टिविस्ट शामिल हैं। साथ ही इसमें ये भी दावा किया गया है, कि योगी आदित्यनाथ को बदनाम करने के लिए एक वेबसाईट भी बनाई गई थी, जो फ़िलहाल बंद कर दी गई है।

क्या खुद की कार्यप्रणाली के कारण हुई बदनामी को हिन्दू – मुस्लिम रंग देकर ढंकना चाहती है यूपी सरकार और उसकी पुलिस ?

सवाल ये उठता है, कि जब हाथरस में पीड़िता के साथ यह घटना घटी , तब एक हफ़्ते तक हाथरस पुलिस इस मामले में लीपापोती करता रहा। यहाँ तक कि हाथरस में जब यह घटना घटी तो इस घटना की खबर को फेक न्यूज़ भी बताया गया , आखिर ये लीपापोती क्यों हो रही थी ?

जब 1 हफ़्ते बाद दिल्ली के सफ़दरगंज अस्पताल में पीड़िता की मृत्यु हो जाती है, उसके बाद पुलिस और प्रशासन जागता है और FIR दर्ज करता है। अस्पताल के बाहर कुछ राजनीतिक पार्टियां और सामाजिक संगठनों के अलावा हाथरस की उस पीड़िता के इंसाफ़ के लिए धरना देते हैं, परिवार के लोग भी इंसाफ़ की मांग करते हैं। क्या भारत में अब लोकतान्त्रिक तरीके से इंसाफ़ की मांग करना, दंगा फैलाना कहलाया जाने लगा है ?

सवाल उठता है कि क्यों आखिर हाथरस पुलिस, इतनी जल्दबाजी में पीड़िता की लाश को ठिकाने लगा देती है। आखिर किसके दबाव में परिवार की मौजूदगी के बिना लाश जला दी गई। ये खबर भी बदल दी जाती यदि इंडिया टुडे की पत्रकार तनुश्री पांडे मौके में पहुंचकर इस घटना को कवर नहीं करतीं।

एक सवाल ये भी उठता है, कि आखिर किसके दबाव में मीडिया और विपक्षी नेताओं को पीड़ित परिवार से मिलने नहीं दिया जा रहा था। सवाल ये भी उठता है, कि सभी के लिए पाबंदी थीं पर वो लोग जो खुलेआम आरोपियों के पक्ष में रैलियाँ कर रहे थे, उन्हे किसका संरक्षण प्राप्त है।

ऐसे में क्या ये नहीं माना जाना चाहिए, कि ये सारे घटनाक्रम आरोपियों को बचाने और पीड़ित परिवार को अपनी आवाज़ उठाने से रोकने की तरफ़ इशारा करते हैं। और जब इनके खिलाफ मीडिया और अन्य सामाजिक व राजनीतिक आवाज़े उठ रही हैं, तो योगी सरकार डैमेज कंट्रोल करने के लिए विदेशी प्लॉट का एंगल लेकर आई है।

पत्रकार वसीम अकरम त्यागी यूपी पुलिस के इस दावे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लिखते हैं

पूरे मुस्लिम जगत में सिर्फ पाकिस्तान एक मात्र ऐसा देश है, जिसके साथ भारत की खुली ‘दुश्मनी’ रही है। इसके अलावा सभी मुस्लिम राष्ट्रों से भारत के मधुर संबंध रहे हैं, और वे संबंध इस हद तक मज़बूत रहे कि मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज़ (OIC) में पाकिस्तान अलग थलग पड़ा रहता था। लेकिन आज मुस्लिम देशों पर आरोप है कि उन्होंने भारत में जातीय दंगा कराने के लिये 100 करोड़ रुपये भेजे। अब जब इतना बता ही दिया है तो उन मुस्लिम देशों का नाम भी सार्वजनिक किया जाए, और भारत को उन देशों से अपने तमाम तरह के संबंध समाप्त करने की घोषणा करनी चाहिए। जो भी देश हमारे मुल्क में अफरा तफरी फैलाने के लिये फंडिंग करता है उससे हम किसी भी प्रकार का संबंध क्यों रखें? लिहाज़ा जिन देशों से भी भारत में जातीय दंगा करने के लिये फंडिंग आई है, उन पर तुरंत प्रतिबंध लगाना चाहिए। विदेश मंत्रालय को इस मामले में दख़ल देना चाहिए। दिल्ली स्थित उन देशों के दूतावास को 24 घंटे के अंदर खाली कराना चाहिए, और उन देशों में मौजूद भारतीय राजदूत एंव भारतीय नागरिकों को तुरंत वापस बुलाना चाहिए। क्योंकि जो देश भारत को खुशहाल देखना नहीं चाहते, यहां स्थिरता, समाजिक सद्धभाव के ताने बाने को नष्ट करना चाहते हैं, उनसे भारत को किसी भी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहिए।