आपने नेताओ को ऑनस्क्रीन लड़ते हुए तो कई बार देखा होगा। लेकिन कभी किसी नेता को विपक्षी नेता से अपनी दोस्ती को जग ज़ाहिर करते देखा है। अगर नहीं तो जान ले, कि हमेशा अलग पार्टियों के नेता सिर्फ लड़ते ही नहीं है, बल्कि दोस्ती हो सकते हैं। ऐसी ही कुछ किस्से 13 अगस्त राजस्थान के जयपुर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आजाद (gulam nabi aazad) ने बताई थीं। आज़ाद जयपुर एक विधानसभा सेमिनार के लिए पहुंचे थे। जहाँ बीजेपी के जाने माने नेता अटल बिहारी वाजपेयी और भैरोसिंह शेखावत के साथ अपनी दोस्ती के कुछ किस्से सांझ किये।
शेखावत ने आज़ाद के लिए भिजवाया था गोश्त:
आज़ाद ने सेमिनार में अटल बिहारी वाजपेयी (atal bihari vajpayee ) और पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत ( bhero singh shekhavat) से जुड़े खुलासे करते हुए कहा कि राजनीति में कटुता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। मेरे विपक्षी नेताओ के साथ काफी अच्छे संबंध रहे हैं। आज़ाद बताते हैं कि एक बार वो शेखावत के खिलाफ चुनाव प्रचार करने उनके ही निर्वाचन क्षेत्र गए थे, लेकिन एयरपोर्ट पर शेखावत उन्हें खुद ही मिल गए। उन्होंने कहा कि उनका एक आदमी मेरे लिए एक गोश्त लेकर आएगा। ये बात और है कि मैं उनके क्षेत्र में उनके खिलाफ ही प्रचार करने गया था लेकिन उन्होंने मेरे लिए गोश्त भिजवाया। ये हमारे सम्बन्धो की प्रगाढ़ता ही थी, कि हमारे सम्बन्धो में कभी कटुता नहीं आई।
वाजपेयी ने खुराना को मेरे पास टिप्स लेने भेजा था:
दैनिक भास्कर के हवाले से आज़ाद आगे कहते हैं कि नरसिम्हा राव के समय मैंने और वाजपेयी ने मिलकर सदन चलाया था। मैं संसदीय कार्य मंत्री था और वाजपेयी विपक्ष के नेता थे। आए दिन हमारा खाना एक साथ हुआ करता था। कभी मैं उनके घर होता तो कभी वो मेरे घर। जब वो प्रधानमंत्री बने तो मुझे कॉल किया और कहा कि मदनलाल खुराना को तुम्हर पास भेज रहा हूँ। उन्हें संसदीय कार्य मंत्री के कुछ टिप्स दे देना, उन्हें संसदीय कार्यभार सौंप रहा हूँ। संसद कैसे संभालते है उसे समझ देना, हालांकि वाजपेयी ने अभी तक विभाग बांटे भी नहीं थे।
नेताओ के बीच अंडरस्टैंडिंग से चलता है लोकतंत्र:
आज़द ने कहा कि नेताओ के बीच अच्छे संबंध का फायदा आम जनता से लेकर हर एक काम को होता है। चाहे वो सदन चलाना हो या कानून बनाना। मेरे विपक्ष पार्टी से अच्छे सम्बन्धो के चलते कयास लगाए गए कि मैं बीजेपी में जा रहा हूँ। लेकिन यकीन मानिए नेताओ के बीच अगर अंडरस्टैंडिंग नहीं होगी तो लोकतंत्र नहीं चल सकता। सिफारिश पर बात करते हुए बताया कि, सिफारिश करने वाले नहीं देखते की गद्दी पर सत्ता पक्ष है या विपक्ष। अगर आप सत्ता में है तब भी आपके पास सिफारिश आएंगी और सत्ता में नहीं होंगे तब भी सिफारिश आएंगी। मायने ये रखता है कि आप नेता रहे या न रहे आपका सिफारिशों से नाता बन जाता है।
हमारी कोई प्राइवेसी नहीं है:
विधायक और सांसदों की बात करते हुए आज़द ने कहा कि हमारी कोई प्राइवेसी नहीं होती। हम अपने परिवार के साथ समय भी नहीं बिता पाते। और ये मलाल हमें 70 की उम्र में होता है। अपने एक निजी किस्से को बताते हुए आज़द ने ये कहा। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका और न्यायपालिका में ऐसा नहीं होता। परिवार को समय न दे पाने की ये समस्या हमारे साथ ही होती है। विधायको और सांसदों की बात करते हुए गुलाम नबी आज़ाद ने एक विदेशी सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि भारत में सांसदों और विधायकों की हालात सबसे लाचार और खस्ता हाल है।