गौरी लंकेश मारी गयी,एक पत्रकार मारी गई, धड़ाधड़ गोलियों से उन्हें छलनी कर दिया गया,वो अपने अंत के साथ ज़मीन पर जा गिरी,ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनका “लिखना” किसी को पंसद नही था,ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनका “बोलना” किसी को पसन्द नही था,लेकिन क्या गोरी को लंकेश को मारा जा सकता है? क्या इस निडर पत्रकार को भुलाया जा सकता है?
क्या इस एक्टिविस्ट को इन्हें पसन्द न करने वाले खत्म भी कर सकतें है? सवाल सिर्फ गौरी लंकेश का नही सवाल और भी है कि क्या सिर्फ मार देने से कोई खत्म हो जाता है? नही न ये ‘भीड़’ गणेश शंकर विद्यार्थी को खत्म कर पाई थी,न ही ये भीड़ गांधी को खत्म कर पाई थी,और न कलबुर्गी,पंसारे और चंदू को खत्म कर पाई और न ही शाहिद आज़मी को खत्म कर पाई थी,और न ही ये भीड़ अब गोरी लंकेश को ख़त्म कर पायेगी.
इन लोगो को इस भीड़ को डर लग रहता है,इसलिए ये भीड़ हमला करती है क्योंकि ये लोग गलत के साथ है और जो भी गलत के साथ होता है ये उससे डरते है.
इस भीड़ को पहचानिए,क्योंकि ये भीड़ सिर्फ सड़कों पर नही है ये फेसबुक पर है,ट्विटर पर है,इस भीड़ को प्रायोजित किया जा रहा है,पता है क्यों? क्योंकि ये डरे हुए लोग है,ये लोग “लिखने” से डरते है,थर थर कांपते है और हक़ को लिखने वाला बोलने वाला,हक़ के लिए आवाज़ उठाने वाला इन्हें चुभता है,इसलिए ये लोग मारते है,इन्होंने गौरी लंकेश को मार दिया लेकिन उन्हें खत्म नही कर पाए.
वो अब संविधान में जिंदा है,कानून में जिंदा है,हक़ के लिए उठने वाली आवाज़ में जिंदा है,और हमेशा ज़िंदा रहेगी,”शहीद” रहेगी,ज़िंदा रहेगी,हमेशा,मगर इन खून पर खुशी मनाने वालों से डरना नही इनके खिलाफ खड़ा होना ज़रूरी है,हर एक मौके पर,हर एक बार क्योंकि ये लोग “संविधान” के दुश्मन है,कानून के दुश्मन है,समाज के दुश्मन उसमे होने वाली बात के दुश्मन है,इन दुश्मनों के खिलाफ खड़े हो जाइए और गौरी लंकेश के लिए संविधान के लिए और अपने लिए खड़े हो जाइए,और दिखा दीजिये इस “भीड़” को की गौरी लंकेश को तुम मार नही पाओगे,कभी मार नही पाओगे,न ही पहले मार सके थे।
#gaurilankesh
#वंदे_ईश्वरम
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