फ्रांस की मीडिया भी पूछ रही है, HAL की जगह रिलायंस क्यों ?

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राफेल डील पर अब मोदी सरकार पूरी तरह से बेनक़ाब हो चुकी है मोदी जी ने जिस तरह से अपने दोस्त अनिल अंबानी को रॉफेल डील से जुड़ा ठेका दिलवाया है यह मामला अब फ्रांस के मीडिया में भी सुर्खियों में आ गया है.
राफेल डील के संबंध में फ़्रांस के एक बड़े मीडिया ग्रुप फ्रांस 24 ने लिखा है कि जहां 2007 से 2014 तक कांग्रेस सरकार ने रक्षा क्षेत्र की सरकारी कंपनी एचएएल को राफेल डील के केन्द्र में रखा था वहीं 2015 में मोदी सरकार ने एचएएल को बाहर करते हुए निजी क्षेत्र की ऐसी कंपनी को केन्द्र में रखा जिसे ऐलान से महज 15 दिन पहले रजिस्टर कराया गया.
आगे अम्बानी ओर मोदी सरकार की दुरभिसन्धि को स्पष्ट करते हुए फ्रांस 24 लिखता है कि इस डील में हुआ एक अहम बदलाव सबको आश्चर्यचकित करने वाला था. भारत में एचएएल के पास रक्षा क्षेत्र में मैन्यूफैक्चरिंग का 78 साल का तजुर्बा था और वह इस ऑफसेट क्लॉज में एक मात्र कंपनी थी, जिसके पक्ष में फैसला किया जाता लेकिन दसॉल्ट ने एचएएल से करार तोड़ते हुए अनिल अंबानी की रिलायंस ग्रुप से करार कर लिया. खास बात यह है कि इस वक्त तक रिलायंस के पास रक्षा क्षेत्र की मैन्यूफैक्चरिंग तो दूर उसे एविएशन सेक्टर का भी कोई तजुर्बा नहीं था.

यानी फ़्रांस 24 ने अपनी रिपोर्ट में मोदी सरकार पर अम्बानी की मदद करने का, और उसे यह ठेका दिलवाने का साफ आरोप लगाया है.

फ्रांस 24 का मानना है कि मौजूदा परिस्थिति में साफ है कि राफेल डील भारत के आगामी आम चुनावों में ठीक वही भूमिका अदा कर सकती है जो 1989 में बोफोर्स डील ने निभाई थी.
लेकिन कल फ्रांस 24 की इस रिपोर्ट के अलावा रॉफेल डील के संदर्भ में इंडियन एक्सप्रेस एक और बड़ा खुलासा किया है जो अम्बानी ओर फ़्रांस के राष्ट्रपति और मोदी सरकार के बीच हुए अलिखित समझौते की कहानी कहता है.
अनिल अंबानी के रिलायंस एंटरटेनमेंट और फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की पार्टनर ओर कथित गर्लफ्रैंड जूली गेयेट के बीच एक फिल्म प्रोड्यूस करने का एग्रीमेंट हुआ था. और जुली की फर्म Rouge International (रूश़ इंटरनेशनल) और रिलायंस एंटरटेनमेंट ने मिलकर Tout La-Haut फिल्म का निर्माण भी किया था, यह एग्रीमेंट ठीक 24 जनवरी 2016 को हुआ था, जिसके ठीक दो दिन बाद ओलांद गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने के लिए भारत आए, इंडियन एक्सप्रेस कहता है कि इसी दौरे पर पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने पीएम मोदी के साथ 36 राफेल एयरक्राफ्ट के एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे.
जिस तरह से रॉफेल सौदे में मोदी सरकार और अनिल अंबानी की साझेदारी के राज खुलना शुरू हुए हैं, उससे स्पष्ट हो गया है कि यह देश के डिफेंस सेक्टर का सबसे बड़ा घोटाला है और इसी डर से राफेल सौदे पर मोदी जी राहुल गांधी की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की मांग को लगातार ठुकराए जा रहे हैं.