निडर प्रियंका, क्या यूपी में कांग्रेस को जीत दिला पायेंगी ?

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2019 के लोकसभा चुनावों में अचानक से प्रियंका गांधी को मैदान में उतार दिया जाता है और उन्हें यूपी का प्रभारी बना दिया जाता है। प्रियंका मैदान पर डट जाती हैं और लगातार मेहनत करते हुए अपने प्रत्याशियों के लिए प्रचार करना शुरू कर देती हैं। लेकिन जब रिज़ल्ट आते हैं तो कांग्रेस के हाथ निराशा ही लगती है। लेकिन प्रियंका का क्या हुआ……

प्रियंका विपक्ष के नाम पर सबसे आगे रही हैं

2019 के चुनाव जीतने के बाद जैसे ही भाजपा दोबारा से सत्ता में आई उसके कुछ महीनों के बाद ही सीएए आया और फिर कानून बन गया इसके बाद देश भर में अलग अलग जगह आंदोलन छिड़ गया। फिर उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन के दौरान फायरिंग हुई और कई बेगुनाह मारे गए और इन मारे गए लोगों में लगभग सभी मुसलमान थे।

लेकिन समाजवादी पार्टी,बहुजन समाज पार्टी से लेकर तमाम और भी राजनीतिक दलों में से किसी भी बड़े राजनेता ने मारे गए लोगों के लिए स्टैंड नहीं लिया,सिर्फ प्रियंका गांधी अकेले मैदान में डटी हुई नजर आयी और बिजनोर,मुजफ्फरनगर, लखनऊ पहुंच कर प्रियंका गांधी ने ये दिखा दिया कि स्टैंड लेना किसे कहा जाता है।

इसके बाद हाथरस में एक दलित लड़की का बलात्कार हुआ और आरोप ये लगाया गया कि आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हुई हैं,तमाम संगठनों और दलों ने आवाज़ उठाई और इसके खिलाफ बोलने का काम किया मगर आगे आकर,हिम्मत के साथ अगर सबसे पहले कोई बड़ा नेता बलात्कार पीड़िता से मिलने हाथरस पहुंचने वालों में प्रियंका गांधी सबसे बड़ी नेता थी।

इस बारे में जब पिछले साल कुछ पत्रकारों ने ये लिखा कि “अब कमज़ोर और पीड़ितों को यूपी में ये लगने लगा है कि उनकी नेता सिर्फ प्रियंका गांधी हैं क्योंकि दुख और परेशानी में वो हमारे साथ खड़ी रही हैं” अब कल लखीमपुरखीरी में भारी बवाल होता है किसानों को गाड़ी नीचे कुचल दिया जाता है।

लखनऊ से खीरी लगभग 150 किलोमीटर की दूरी तय करने में 3 से 4 घण्टे का समय लगता तब भी अखिलेश यादव को सुबह 11 बजे वहां से निकलना ध्यान आया,मायावती जी के बारे में तो खैर कुछ कहना और बात करना ही बेईमानी हैं। लेकिन प्रियंका गांधी… वो तड़के 4 बजे पुलिस से भिंड़त करती हुई नजर आयी।

पुलिस को ये बताती हुई नजर आई कि आप मुझे नहीं रोक सकते हैं,जबरन रोके जाने पर वो कानून गिना कर ये बताने की लगती हैं कि “मैं सब जानती हूं” ये मामूली बात नहीं है। अब सवाल ये उठता है कि मुख्य विपक्षी नेता कौन हैं?

क्या कल लखीमपुर खीरी में जो सब कुछ प्रियंका गांधी के प्रकरण में हुआ उसके बाद ये कहा जाना क्या ज़रुरी नहीं हो गया है कि क्या विपक्ष के नाम पर सिर्फ प्रियंका गांधी ही हैं? जो हमेशा और बार बार गरीब,किसान और पिछड़ों के लिए निडर खड़ी नज़र आती हैं? ये सवाल पूछा जाना जरूरी हो गया है।

उनकी ये निडरता क्या रंग दिखाएगी? ये सवाल किया जाना चाहिए, ज़रूर किया जाना चाहिए।