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किसानों की व्यथा पर संसद मार्ग में इकठ्ठा हुआ जनसैलाब

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दिल्ली के पॉश एरिया संसद मार्ग में देशभर के किसान अपनी मांगों के फिर से एक मंच पर आये है. किसान संगठित होकर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश में हैं. दिल्ली में देश भर से करीब 180 किसान संगठनों ने एक मंच पर आकर सरकार को चुनावी वादे याद दिलाये. खास बात ये रही  इस प्रदर्शन में कई महिलाओं ने भी भाग लिया. और संसद के शीतकालीन सत्र से पहले देश इन किसान संगठनों ने संसद मार्ग पर “किसान मुक्ति संसद” लगाई.

फोटो ‘स्वराज अभियान’ के ट्वीटर अकाउंट से साभार


अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति(AIKSCC) द्वारा आयोजित इस प्रदर्शन के दौरान सभी किसान मिलकर सरकार के सामने अपनी मांग रख रहे थे. और उनका मकसद अपनी आवाज हुकुमरानों के कानों तक पहुँचाना है.
क्या है किसान संगठनों के मांगे?
किसानों के 2 सबसे अहम मुद्दे हैं जिसमें फसलों को लेकर न्यूतम समर्थन मूल्य और कर्ज माफी है. साथ ही किसान फसल योजना का उचित लाभ भी उन्हें मिले.


नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार किसानों का कहना है कि “राज्य सरकार हो या फिर केंद्र सरकार, फसल को लेकर न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी तो कर दिया जाता है लेकिन उतना पैसा भी उन्हें नहीं मिलता. तो फिर देश मे न्यूनतम समर्थन मूल्य(MSP) का नाटक क्यों किया जाता है? बार-बार सरकार से आग्रह करने के बावजूद भी हमें रास्ता दिखा दिया जाता है. किसानों का कहना है कि हर साल समान से लेकर लोगों की सैलरी तक में इजाफा होता है लेकिन हमारी हालत पहले से भी ज्यादा बदतर होती जाती है”.
किसान मुक्ति संसद की अध्यक्षता सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर कर रही है. योगेंद्र यादव, राजू शेट्टी, सरदार वीएम सिंह, कामरेड अमरा राम, अतुल अंजान, हन्नान मौला, अविक साहा ने भी किसानों का मंच पर आकर साथ दिया.

मेधा पाटकर (फोटो योगेन्द्र यादव के ट्वीटर अकाउंट से साभार)


AIKSCC के संयोजक वीएम सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख किसानों की इस सभा में आने का आग्रह किया.

किसानों को आन्दोलन की राह क्यों चुनी ?

  • देश में प्रत्येक घंटे लगभग एक किसान आत्महत्या करता है. और किसान सुसाइड के मामले 2014 से 2015 तक 42 प्रतिशत बढ़ें है. 91 प्रतिशत सुसाइड 6 राज्यों(महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश,छतीसगढ़,आंध्रप्रदेश,तेलंगाना और कर्नाटक)   के किसान करते है.
  • 58 प्रतिशत आत्महत्या किसान कर्ज और फसल बर्बाद होने के चलते करते है.
  • किसानों की आय इतनी नहीं होती कि वह कर्ज के चंगुल से बाहर निकल सके. इकनोमिक सर्वे 2015-16 के अनुसार देश में  किसान की औसत आय मात्र 1600 रूपये महीना है.
  • केंद्र सरकार ने वादे के मुताबिक स्वामीनाथन रिपोर्ट की सिफारिशें लागू नहीं की  है.
  • किसान फसल बीमा का उचित मुआवजा किसानों को नहीं मिलता है.