"जैव विविधता सरंक्षण" चुनावी मुद्दे में शामिल क्यों नहीं किया जाता?

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फ़रहाना रियाज़ ( स्वतंत्र पत्रकार)

नई दिल्ली : इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (आईआईएमसी) और राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, चेन्नई (एनबीए) द्वारा संयुक्त रूप से जैव विविधता पर दो दिवसीय ‘राष्ट्रीय मीडिया कार्यशाला'(नेशनल मिडिया वर्कशॉप ऑन बायो-डायवर्सिटी) का आयोजन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन, दिल्ली में किया गया. आईआईएमसी के महानिदेशक डॉ के जी सुरेश, डॉ बी मीनाकुमारी, अध्यक्ष, एनबीए और, कम्युनिकेशन रिसर्च, आईआईएमसी की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ०) गीता बामजई ने कार्यशाला का उद्घाटन किया.

एनबीए की अध्यक्ष डॉ बी मीनाकुमारी ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि जैव विविधता सरंक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए मिडिया का रोल बहुत महत्त्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि इस बारे में तंबाकू विरोधी अभियान की तरह ही अभियान चलाये जाने की ज़रुरत है.
आईआईएमसी के महानिदेशक श्री केजी सुरेश ने कहा कि पर्यटन के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुँचाया जा रहा है ये ऐसे मुद्दे हैं जिनको हल करने की ज़रुरत है. उन्होंने कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जैव विविधता सरंक्षण राजनीतिक एजेंडा का हिस्सा होना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला का उद्देश्य पत्रकारों को जैव विविधता सरंक्षण के बारे में जानकारी देना और प्रशिक्षित करना है. जिससे की मिडिया के ज़रिये जैव विविधता सरंक्षण के बारे में जनता को जागरूक किया जा सके.
इंडो-एशियान, एनबीए के प्रोजेक्ट मैनेजर डॉ जे सोनारपांडी पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए कहा कि राष्ट्रीय जैव विविधता अधिनियम, 2002 और अनिवार्य लक्ष्यों को भारत को पूरा करने की जरूरत है.

सेंटर फार बायोडायवर्सिटी पॉलिसी एंड लॉ से आयीं सुश्री संध्या ने भारत में जैव विविधता संरक्षण के कानूनी पहलुओं के बारे में बात की. जैव विविधता पर राष्ट्रीय मीडिया कार्यशाला के दूसरे दिन पैनल चर्चा में बोलते हुए पर्यावरणविद प्रो सीआर बाबू ने कहा कि जैव विविधता कभी पंचायत से संसद तक किसी भी स्तर पर योजना बनाने का हिस्सा नहीं रही है. उन्होंने कहा कि भारत अंतर्राष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर करता है, लेकिन जमीन पर ज्यादा कुछ नहीं किया जाता है. उन्होंने कहा कि मौजूदा वक़्त में वनस्पति और जीवों का जीवन खतरे में होने के साथ मानव जीवन भी खतरे में है. क्यूंकि वनस्पति और जीव होने से ही मानव जीवन है ये एक दूसरे से अलग नहीं हैं. उन्होंने कहा कि हम में से प्रत्येक को हमारे चारों ओर के पर्यावरण संरक्षण के लिए ज़िम्मेदार होना चाहिए.
टोक्सिक्स वॉच के गोपाल कृष्ण ने कहा कि पूरे भारत में नदी पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में है और हमें इस खतरे से निपटने के लिए सार्वजनिक और नीतिगत तौर पर हस्तक्षेप की जरूरत है.
डाउन टू अर्थ पत्रिका की डॉ० विभावार्ष्णेय ने जलवायु परिवर्तन को खाने और जीवन से जोड़ते हुए अपने विचार रखे और कार्यशाला में आये पत्रकारों से कहा कि उन्हें खाने और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर लिखना चाहिए जिसका सीधा संबंध वातावरण से है इससे उनके पाठक खुद को जैव विविधता के मुद्दों से जोड़ पाएंगे. कार्यशाला में देश भर से आये 20 से अधिक पत्रकार उपस्थित थे.

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