नफ़रत के कारण होने वाले अपराधों के विरुद्ध जवाबदेही तय हो

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नई दिल्ली: सोमवार 18 मार्च को,  दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में एक दिवसीय सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें कई नागरिक और मानवाधिकार संगठन एक मंच पर साथ आए. स्टेप टूवर्ड्स होप ‘Steps Towards Hope’ शीर्षक के साथ आयोजित इस प्रोग्राम का उद्देश्य संवैधानिक रूप से अनिवार्य नागरिक अधिकारों को मज़बूत करने की आवश्यकता और नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले 5 साल में किये गए कार्यों का जायज़ा लेना था. इसका आयोजन युनाइटेड अगेंस्ट हेट के साथ PVCHR, PUCL (दिल्ली), यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम, क्विल फाउंडेशन, रिहाईमंच और APCR द्वारा किया गया था.
कार्यक्रम के वक्ताओं में ऐसे कार्यकर्ता, पत्रकार और वकील शामिल थे, जिन्होंने उन मुद्दों को सामने लाया था, जिनमें वर्तमान शासन के द्वारा अन्याय किया गया था. उन्होंने ऐसी सरकारों के उदाहरण भी दिए जिन्होंने नियम और क़ानून को ताक में रखकर कार्य किया, जैसे यूपी में मुठभेड़ के नाम पर हुई अतिरिक्त क़ानूनी हत्याओं में सरकार की भूमिका और अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा में सक्रीय भूमिका निभाने वालों को सत्ता द्वारा की गई मदद, जैसे की बाबू बजरंगी.
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रिहाई मंच, वह संगठन जिसने बड़े पैमाने पर घृणा अपराधों और यूपी में कानून-व्यवस्था की विफलता पर काम किया है. रिहाई मंच के राजीव यादव  ने उन तरीकों की ओर ध्यान दिलाया. जिनमें हिंसा को जानबूझकर राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है, क्योंकि ऐसी हिंसा के शिकार अधिकांश लोग हाशिए में ला दिए गए (दलित, पिछड़े, शोषित, अल्पसंख्यक) समुदायों से हैं. यूपी में हुई कथित मुठभेड़ों के शिकार ज्यादातर लोग निचली जातियों के थे.
Quil फाउंडेशन के फ़वाज़ शाहीन ने उनके संगठन द्वारा रिसर्च किये गए एक आंकड़े के मुताबिक बताया कि इस सरकार के शासन में किये गए घृणा अपराध ( Hate Crime ) का आंकड़ा 759 है. उन्होंने जोर देकर कहा कि इस अनुपात में किया जाने वाला अपराध एक राष्ट्रीय सनाक्त है, जिसे सुनियोजित तरीक़े से किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि धार्मिक घृणा का सरलीकरण या अघोषित रूप से उसे सामाजिक मान्यता मिल जाना ही इस तरह के अपराधों की मुख्य वजह है.
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पत्रकार निरंजन टाकले जिन्होंने जज लोया की संदिग्ध परिस्तिथियों में हुई मृत्यु की ख़बर को बड़े पैमाने में उठाया था, उन्होंने इतिहास के साथ हो रहे खिलवाड़ और पुनर्लेखन के बारे में बताया, उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के सामने वीरता रखने वाले लोगों को इतिहास से बाहर करने का कार्य इस सरकार के द्वारा किया जा रहा है. ये फ़ासीवाद के लक्षण हैं, जोकि हर उस व्यक्ति को प्रभावित करेगा जो उसके रास्ते में आयेगा.
बिहार के सीतामढ़ी में दो मुस्लिम युवकों की हिरासत में मौत के बाद वहां का दौरा करने वाली फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्यों ने उस संदिग्ध माहौल के बारे में बात की, जिसमें गुफरान और तस्लीम की मृत्यु हो गई और उन्हें न्याय देने के लिए राज्य सरकार की ओर से कोई भी कार्रवाई नहीं हुई.
सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं ने अपने संघर्ष के बारे में बताया, साथ ही सही संघर्षशील लोगों की एकता की ज़रूरत पर भी बात की. उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वर्षों को सिर्फ उन्हें निशाना बनाए जाने के लिए याद नहीं किया जायेगा, बल्कि कुछ बड़े आंदोलनों के लिए भी पिछले कुछ वर्ष याद किये जायेंगे.
AIKS के जनरल सेक्रटरी हन्नान मोल्ला, जिनके नेतृत्व में देश के विभिन्न हिस्सों में कई बड़े और प्रभावी किसान मार्च आयोजित किए गए थे, उन्होंने सभी हाशिए के लोगों को फासीवादी शक्तियों को हराने के लिए एकजुटता बनाने प्रदान की. उन्होंने जन आंदोलनों की आवश्यकता को महत्व दिया और बताया कि किस तरह किसान आंदोलनों के कारण किसानों की दुर्दशा एक केंद्रीय मुद्दा बन गया है. यही बात छत्तीसगढ़ की आदवासी अधिकारों के लिए लड़ने वालीं सामजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी द्वारा भी कही गई, जोकि आदिवासियों को उनकी भूमि और आजीविका बचाने के लिए कार्य कर रही हैं. उन्होंने बताया कि किस तरह से केंद्र और राज्य सरकारों ने छतीसगढ़ में आदिवासियों और मुसलमानों को हाशिये में ला दिया है, ताकि छातीसगढ़ में कार्पोरेट लूट बेरोकटोक जारी रहे.
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सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार की कई जनविरोधी नीतियों के बारे में बात की, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रतनलाल द्वारा बताया गया कि किस तरह से सामूहिक आंदोलनों के माध्यम से, ब्राह्मणवाद और वंशवाद को आगे बढ़ाने के अपने एजेंडे पर सरकार कार्य कर रही है, उनके द्वारा विश्वविद्यालय की नियुक्ति के पदों में 13 अंकों के रोस्टर मुद्दे के रूप में विस्तृत जानकारी दी गई.
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता संजय हेगड़े ने लिंचिंग और घृणा अपराध के मामलों में न्याय हासिल करने के लिए कानूनी लड़ाई पर ध्यान केंद्रित किया और उन्हें रोकने के लिए कानून बनाने की आवश्यकता जताई. कार्यक्रम में विचार-विमर्श का एक प्रमुख हिस्सा हालांकि घृणा और कट्टरता का अपराध था जिसने हमारे नागरिक जीवन को प्रभावित किया है,  इसकी संस्थागत प्रकृति और इससे व्यवस्थित तरीके से मुकाबला करने की आवश्यकता है. यूनाइटेड अगेंस्ट हेट द्वारा तैयार किये गए एक चार्टर पर चर्चा की गई, जोकि ऐसी सुनियोजित घृणा के खिलाफ मांगों और एजेंडे पर आधारित था. इसे मेनिफेस्टो अगेंस्ट हेट का नाम दिया गया था.
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विभिन्न विपक्षी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को अपने एजेंडे के साथ जवाब देने के लिए कहा गया, कि वो बताये कि कैसे एक निश्चित कार्यक्रम के साथ वो लोकतंत्र की इस तोड़फोड़ का मुक़ाबला करने जा रहे हैं. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सचिन राव ने कहा कि गांधी की भूमि में, किसी भी क्रांतिकारी आंदोलन को अहिंसा के माध्यम से लड़ना पड़ता है और हर सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन को संवैधानिक नैतिकता पर आधारित होना पड़ता है. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अली खान ने  देश की जनता से जुड़े सभी मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया.
योगेंद्रयादव ने प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष ताकतों द्वारा भारत की धर्म और समग्र संस्कृति को पुनः प्राप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिसे कट्टरपंथी ताकतों द्वारा हाईजेक कर लिया गया है. भाकपा (एमएल) की कविता कृष्णन द्वारा इसे समर्थन दिया गया, उन्होंने यह भी कहा  कि गौ रक्षा अधिनियम जैसे कानून जो नफ़रत की हिंसा के बहाने इस्तेमाल किए जाते हैं, उनका हमारी क़ानून की किताबों में कोई स्थान नहीं होना चाहिए. आम आदमी पार्टी के प्रतिनिधि दिलीप पांडे ने कहा कि भाजपा, जो हिंदुओं की पार्टी होने का दावा करती है, अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रही है और इसका हिंदुओं के कल्याण से कोई लेना-देना नहीं है.