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बढ़ रही आर्थिक असमानता, 1 फीसदी लोगों के पास 73 फीसदी संपत्ति

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देश की आय में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही है. भारत के सिर्फ एक फीसदी अमीरों के पास पिछले साल सृजित कुल संपदा का 73 फीसदी हिस्सा है.सोमवार को जारी एक सर्वे रिजल्ट में देश में बढती असमानता की भयावह तस्वीर सामने आई है. इंटरनेशनल राइट्स ग्रुप ऑक्सफैम के नए सर्वे की रिपोर्ट में यह बात कही गई है. ऑक्सफेम ने यह सर्वे ऐसे समय में जारी किया है, जब स्विटजरलैंड के दावोस में वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की बैठक शुरू हो रही है. यहां दुनियाभर के शक्तिशाली और अमीर लोग बैठक में हिस्सा लेने के लिए आ रहे हैं.
सर्वे के मुताबिक, 67 करोड़ भारतीयों की संपत्ति में महज 1 प्रतिशत का इजाफा हुआ है.पिछले साल के ऑक्सफेम सर्वे से यह खुलासा हुआ था कि देश के महज 1 फीसदी अमीरों के पास कुल संपदा का 58 फीसदी हिस्सा है.

अरबपतियों की संख्या में हुई वृद्धि

‘रिवॉर्ड वर्क, नॉट वेल्थ’ नाम की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले साल भारत के अरबपतियों की लिस्ट में 17 नए नाम शामिल हो गए. अब भारत में अरबपतियों की संख्या 101 हो गई है. बीते साल इनकी कुल संपत्ति में 20.7 लाख करोड़ की बढ़ोतरी हुई जो भारत सरकार के वर्तमान बजट के बराबर है. पिछले साल यह रकम 4.89 लाख करोड़ रुपये थी.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2017 में अरबपतियों की संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई. हर दो दिनों में एक एक नया आदमी अरबपति बना. 2010 से अरबपतियों की संपत्ति में सालाना 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. वहीं, सामान्य कामगारों को मिलने वाली मजदूरी के लिए यह आंकड़ा महज दो प्रतिशत रहा.
ऑक्सफैम इंडिया की सीईओ निशा अग्रवाल के मुताबिक यह बताता है कि भारत के आर्थिक विकास का फायदा कुछ ही लोगों की लगातार मिल रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व आर्थिक मंच की बैठक के लिए दावोस जा रहे हैं. इसे देखते हुए ऑक्सफैम ने अपील की है कि भारत की अर्थव्यवस्था हरेक व्यक्ति के लिए काम करे, न कि सिर्फ कुछ लोगों के लिए

बढती वैश्विक आर्थिक असमानता

वहीं, वैश्विक स्तर पर देखा जाय तो आर्थिक असमानता की यह स्थिति और भी भयावह हो जाती है. सर्वे के मुताबिक पिछले साल विश्व में कुल उत्पन्न संपत्ति का 82 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ एक प्रतिशत सबसे अमीर लोगों के पास गया. जबकि, 3.7 बिलियन आबादी की संपत्ति में कोई परिवर्तन नहीं आया है, जो कुल आबादी का आधा हिस्सा है. रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था कुलीन वर्ग के लोगों की संपत्ति इकट्ठा करने में मदद कर रही है, जबकि करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे संघर्ष कर दो वक्त की रोटी के लिए मशक्कत कर रहे हैं.
अध्ययन के अनुसार एक अनुमान लगाया गया है कि ग्रामीण भारत में एक न्यूनतम मजदूरी हासिल करने वाले श्रमिक को किसी दिग्गज गारमेंट फर्म के शीर्ष वेतन वाले एग्जिक्यूटिव के बराबर आय तक पहुंचने में 941 साल लग जाएंगे. इसी तरह, अमेरिका में एक सामान्य कामगार सालभर में जितना कमाता है, उतना एक सीईओ एक दिन में ही कमा लेता है. सर्वे में 10 देशों के 70,000 लोगों से पूछताछ की गई..
ऑक्सफैम सर्वे साल में एक बार किया जाता है. इसे लेकर दुनियाभर के नेताओं द्वारा विश्व आर्थिक मंच की सालाना बैठक में चर्चा की जाती है. दुनिया में बढ़ रही आय और लैंगिक असमानता इस बातचीत के मुख्य विषय होते हैं.