दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के कामकाज पर कोर्ट सख्त

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24 फरवरी 2020 अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत अपनी पत्नी के साथ भारत दौरे पर आने वाले थे। उसी समय भारत की राजधानी दिल्ली तिल तिल कर जल रही थी। भारत में अतिथि के स्वागत में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया और जिसको नाम नमस्ते ट्रंप दिया गया था। जहां अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप साबरमती आश्रम अहमदाबाद में थे तो उस समय दिल्ली में बहुत कुछ घट रहा था। जिसमें दिल्ली की सड़कों पर नफरत की आगजनी अपना नया रूप धारण कर चुकी थी।

दरअसल पूरा मामला तब शुरू हुआ जब 9 दिसंबर 2019 लोक सभा में सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल को लेकर चर्चा होनी शुरू हुई। भाजपा पार्टी के नेता अमित शाह ने संसद में इस बिल को लाने का कारण विपक्षी पार्टी कांग्रेस पर थोप दिया। उन्होंने कहा कि “कांग्रेस पार्टी” अगर धर्म के आधार पर बंटवारा ना करती तो इस बिल की आवश्यकता नहीं थी।

सबको पता था कि यह विरोध संसद तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसकी आग सड़कों तक जरूर दिखाई देगी और अंत में ऐसा ही हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय ,जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से लेकर पूरे भारत में जगह जगह पर प्रोटेस्ट शुरू हो गए। भारत में ही नहीं यह मुद्दा विदेशों तक फैला विदेशों में रह रहे भारतीयों ने भी इसे काला कानून कहकर सरकार को इसे वापस लेने के लिए दबाव बनाया।

कई नेताओं ने भी इस कानून का विरोध किया जैसे मनीष तिवारी मेंबर ऑफ पार्लियामेंट उन्होंने इस बिल का विरोध करते हुए कहा कि जिन आदर्शों के आधार पर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान की संरचना की नींव रखी थी यह इसके बिल्कुल विरुद्ध है। इन प्रोटेस्ट में विपक्ष पार्टी के अलावा कई एक्टिविस्ट भी थे।

जिन्होंने एनआरसी, सीएए, एनआरपी के खिलाफ प्रोटेस्ट में लगातार शामिल रहे। जो कि लगातार केंद्र सरकार पर दबाव बनाते रहे कि इस काले कानून को वापस ले लिया जाए। किसी को मालूम नहीं था कि राजनीति के द्वारा धर्म को लेकर लगाई गई इस आग में दिल्ली कितनी झुलसने वाली थी । दो गुट अपने भाईचारे को भूल कर दुश्मनी निभाने में लगे हुए थे।

दिल्ली दंगों की जांच से सीनियर अफसरों को फटकार लगाते हुए कोर्ट ने पुलिस पर जुर्माना लगा दिया है और उन्होंने जांच के तरीकों पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि जांच संवेदनहीन और हास्यास्पद है। पुलिस के द्वारा एक गुट का पक्ष लिया जाना न्याय पूर्ण नहीं है। कड़कड़डूमा अदालत ने दिल्ली दंगे से संबंधित एक मामले की जांच लापरवाही से करने पर भजनपुरा थाना पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है।

अदालत ने थानेदार सहित एक अन्य पर 25000 रुपए का जुर्माना लगाया है। ये कहते हुए की पुलिस ने दिल्ली दंगों से जुड़े इस केस में बड़ी लापरवाही से काम किया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि केस की जांच को देखने से ऐसा लगता है कि पुलिस आरोपियों को ही बचा रही है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले की सुनवाई करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने भजनपुरा के पुलिस अधिकारियों को फटकार लगाई। उन्होंने कहा कि भजनपुरा के एसएचओ और अन्य वरिष्ठ अधिकारी अपने वैधानिक कर्तव्य को निभाने में बुरी तरह से विफल रहे हैं और कोर्ट ने यह भी कहा, ‘ऐसा लगता है कि जैसे भजनपुरा पुलिस ने केस की जांच बेहद लापरवाह ,कठोर और हास्यास्पद तरीके से की है’।

दिल्ली के पूर्वोत्तर इलाके में पिछले साल फरवरी में हुए दंगों में एक पीड़ित मोहम्मद नासिर की f.i.r. अब शायद दर्ज हो जाए क्योंकि इसके लिए वह पहले भी कोर्ट और थानों के चक्कर लगा चुके हैं। आपको बता दें कि दंगा ग्रस्त पूर्वोत्तर दिल्ली के गोंडा इलाके के निवासी नासिर 24 फरवरी को अपनी बहन को शालीमार बाग के एक अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर घर लौट रहे थे। उनकी बहन का पथरी का ऑपरेशन हुआ था और वो टैक्सी से घर लौट रहे थे।

ये वही समय था जब दिल्ली में सीएए के विरोध में और समर्थन को लेकर दो गुटों में झड़प हुई थी और दंगे भड़क उठे थे। हालत खराब होने की वजह से ही नासिर टैक्सी से आए थे। उन्होंने बीबीसी से बात करते हुए बताया कि वे उस समय यह सोच रहे थे कि मैं स्थानीय था इसलिए मैं टैक्सी ड्राइवर को सही सलामत उस जगह से निकालना चाहता था।

उनकी पत्नी के भी कई बार फोन आ चुके थे, क्योंकि हालात बहुत खराब थे। जब वह ड्राइवर को छोड़कर गोकलपुरी फ्लाईओवर से वापस लौट रहे थे तो उनके एक हिंदू दोस्त ने उन्हें मोटरसाइकिल पर लिफ्ट दी। जो कि उनके साथ स्कूल में पढ़ता था। उसने उनके घर से 1 किलोमीटर पहले ही छोड़ दिया था। वह कहते हैं कि बच बचाकर सावधानी के साथ घर की तरफ ही बढ़ रहे थे कि अचानक से घर से पहले वाले मोड पर ही भीड़ ने उन्हें घेर लिया और उन पर हमला कर दिया। और उनकी एक आंख पर गोली लगी थी।यह पूरी घटना 24 फरवरी की है।

नासिर के वकील मेहमूद पराचा कहते हैं, यह तो सिर्फ नासिर का मामला है. दिल्ली दंगों से संबंधित जो मामले दर्ज किए गए हैं उनमें से बहुत सारे मामलों में दिल्ली पुलिस की जांच ही संदिग्ध है. उनके आरोप पत्र में बहुत सारी खामियां हैं. नासिर ने अपनी शिकायत दर्ज कराई उन्होंने अदालत को बताया कि वह हमलावरों को पहचानते हैं ।सभी के नामों का उन्होंने अपनी शिकायत में जिक्र भी किया है और उनके ही पड़ोसी हैं।

जिसमें 24 फरवरी को नासिर की आंख में गोली लगी थी और अस्पताल से इलाज कराकर 11 मार्च 2020 को वह घर लौटे थे। बीबीसी से बात करते हुए नासिर कहते हैं कि उन पर हमला 24 फरवरी को और अस्पताल से इलाज कराने के बाद जब उन्होंने एफ आई आर दर्ज कराने की कोशिश की। उनका कहना था, जब ‘एफ आई आर’ दर्ज नहीं हुई तो उन्होंने स्पीड पोस्ट के जरिए अपनी बात थाने को और आला पुलिस अधिकारियों को लिख कर भेजी .

लेकिन इस स्पीड पोस्ट वापस आ गया जिस पर लिखा हुआ था-‘लेने से इनकार कर दिया’. फिर पिछले साल जुलाई की 8 तारीख को पुलिस के एक अधिकारी ने मेरा बयान लेने आए जबकि पुलिस ने इस मामले में 17 जून को ही आरोप पत्र अदालत में दाखिल कर दिया था। नासिर बताते हैं कि, मैंने पुलिस अधिकारी से पूछा कि मेरा बयान लिए बिना ही मुझ पर हुए हमले के मामले में आखिर आरोप पत्र कैसे दायर कर दिया गया?

नासिर के वकील महमूद पराचा का कहना है कि जिस एफ आई आर के साथ पुलिस ने नासिर की शिकायत को जोड़ा है उसमें ‘अभियुक्त मुसलमान है और पीड़ित भी मुसलमान हैं”. पराचा ने जो हलफनामा अदालत में दायर किया है उसने कहा गया है कि पुलिस नासिर पर हुए हमले की शिकायत पर एफ आई आर दर्ज करने से बचती रही ।

जिसमें नासिर ने 17 जुलाई 2020 को पुलिस द्वारा उसकी शिकायत ना दर्ज करने को लेकर कड़कड़डूमा कोर्ट का रुख किया। 21-10- 2020 को कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को मोहम्मद नासिर की शिकायत पर एफ आई आर दर्ज करने के आदेश दिए. 29-10 -2020 को दिल्ली पुलिस मेट्रोपॉलिटन कोर्ट के आदेश के खिलाफ सेशन कोर्ट पहुंची. स्टेशन कोर्ट ने मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा f.i.r. करने के आदेश को स्टे किया और पूरे मामले में सुनवाई शुरू की. जिसमें नासिर ने हमलावरों का नामजद किया था। जिनके नाम है-नरेश त्यागी ,सुभाष त्यागी, उत्तम त्यागी ,सुशील ,नरेश गौर और अन्य के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी.

दा हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नासिर के केस से जुड़े जांचकर्ताओं ने कहा था कि इस मामले में एक एफ आई आर दर्ज की गई थी इसलिए अलग से दोबारा f.i.r. की जरूरत नहीं थी। उनका दावा था कि जिन लोगों के खिलाफ गोली मारने का आरोप है । घटना के वक्त वे लोग दिल्ली में नहीं थे ‌। जबकि कोर्ट ने कहा है कि कानून के मुताबिक नासिर अपनी शिकायत के संबंध में एक अलग एफ आई आर कराने के लिए बिल्कुल स्वतंत्र है।

 

13 जुलाई को कोर्ट ने इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस को बहुत जबरदस्त फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ऐसे कैसे क्लीन चिट दे सकती है ? जब जांच पूरी तरीके से नहीं की गई है. कोर्ट का कहना है कि इसमें साफ नजर आ रहा है कि पुलिस आरोपियों को बचाते हुए दिख रही है दिल्ली पुलिस के कमिश्नर को भी निर्देशित करते हुए मामले की जांच न्यायपूर्ण और निष्पक्ष जांच ढंग से की जाए।

दिल्ली के 2020 फरवरी में हुए दंगों का मामला अभी भी ठंडा नहीं हुआ है क्योंकि जैसे-जैसे दिल्ली पुलिस की जांच में गिरफ्तारियों का दौर जारी है। वैसे ही सियासत भी गरमा ने लगी है। कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष ने भी केंद्र सरकार को घेरते हुए सवाल पूछने शुरू कर दिए हैं।

इसमें आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान ने भी सवाल उठाए हैं और अपने ट्वीट के जरिए कहा है कि-एलजी साहब क्या आपकी दिल्ली पुलिस नहीं जानती कि दिल्ली के दंगे कराने के लिए बीजेपी के नेता, कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा भी जिम्मेदार हैं. तो फिर दिल्ली दंगों में मुसलमानों को ही गिरफ्तार क्यों किया जा रहा है?

वहीं केंद्र में भाजपा सरकार के 6 साल पर कांग्रेस बोली -अब बस करो मोदी जी आपको बता दें कि हाई कोर्ट के जज ने कपिल मिश्रा ,अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा को लेकर कड़ी कार्रवाई के आदेश दिए थे। लेकिन रातों-रात उनका तबादला कर दिया गया ऐसे में विपक्ष ने जोरदार तरीके से सवाल उठाए थे। लेकिन मामला अभी तक लंबित है।