वैसे तो सोशलमीडिया में हर पल कुछ न कुछ सुनने को मिलता है, यदि किसी बुद्धिजीवी की बात किसी राजनीतिक पार्टी के समर्थकों या यूँ कहें सोशलमीडिया के गुंडों को पसंद न आयें तो ट्रोलिंग स्टार्ट हो जाती है. कभी ये काम भाजपा के लोग करते हैं तो काभी कांग्रेस के, इन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जिसे ट्रोल किया जा रहा है, उसे अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है. पर ट्रोल तो ट्रोल हैं, वो गाली बकते हैं , धमकियां देते हैं ! और भी बहुत कुछ करते हैं, जिससे सोशलमीडिया में कुछ भी लिखने से पहले आप दस बार सोचें !
ट्रोलिंग के शिकार सबसे ज़्यादा निष्पक्ष पत्रकार, बुद्धिजीवी वर्ग एवं अधिकतर निष्पक्ष बात करने वाले आम सोशलमीडिया यूज़र्स होते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी जी ने ऐसे ही ट्रोल्स के बारे में अपने फ़ेसबुक अकाउंट पर लिखा, असल में उनके लिखने की वजह बनी उनके द्वारा किया गया चुनावी आंकलन जोकि गलत निकला!
ओम थानवी जी ने अपनी फेबुक वाल पर लिखा :-
” चुनाव में मेरा क़यास ग़लत निकला और गाली-ब्रिगेड सक्रिय हो गई। एक ने लिखा आपका सर चाहिए, ग़लत भविष्यवाणी क्यों की?
भाईजान, भविष्यवाणी की थी – आकाशवाणी तो नहीं की थी? फ़ेसबुक की “भविष्यवाणी” है, सही भी निकल सकती है, ग़लत भी। उसमें गारंटी कैसी, और क्यों?
हालाँकि, सचाई यह है कि ग़लत अंदाज़े का अफ़सोस हमेशा कचोटता है कि चूक कहाँ हुई। पर उसमें जो बेईमानी देखता है, वह ख़ुद बेईमान है या समझिए पेशेवर ट्रोलिया है।
फ़ेसबुकिया क़यास पर लोग इतने बौखला सकते हैं, तो अंदाज़ा लगाइए उनके साथ क्या होता होगा जो पत्र-पत्रिकाओं में आकलन करते हैं, टीवी, पोर्टल आदि पर रिपोर्टिंग करते हैं?
प्रसंगवश ख़याल आया कि राजदीप सरदेसाई भी इन ट्रोलियों के ख़ूब निशाने पर रहे हैं। पर इस बार उन्होंने भाजपा की जीत का दो-टूक दावा किया था। वह सही निकला। तो अब ट्रोल-समुदाय राजदीप की वाहवाही क्यों नहीं करता? ग़लत अंदाज़े पर सर चाहिए, तो सही विश्लेषण पर कम-से-कम आभार के दो शब्द तो मुँह से झड़ें!”
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