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बच्चे तो सबके होते हैं… आज हंसने का ‘इमोजी’ लगाने वालों ने मेरा भ्रम तोड़ दिया

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बच्चे-बच्चे …यह सुनकर कुछ लोग तंग हो गए हैं, वे लाइब्रेरी में पढ़ने वाले युवाओं को उग्रवादी ही नहीं आतंकवादी करार देना चाहते हैं। चालीस-पचास दशक पार कर चुके हम बड़े 20-22 साल के युवाओं को बच्चे नहीं मान सकें तो …..हम बंट चुके हैं, बुरी तरह दरारें पैदा की गईं हैं…..याद रखिए इन दरारों में गिरेंगी हमारी ही अपनी नस्लें। यदि कुछ कर सकते हैं तो बरबाद हो रहे अपने गुलिस्तां को बचाइए।
पिछले कुछ समय से मुझसे लगातार पूछा गया…क्या पहले हम सैक्युलर थे…धर्म निरपेक्ष….फिर आज? हाँ मैं खुलकर बोल सकती हूं कि हमारे देश को राजनीति ने कभी धर्मनिरपेक्ष बनने ही नहीं दिया। जिसे देखों वो धर्मों की रेखाएं बांट कर…आवाम के जिस्म को अलाव बना अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने में लगा रहा….दुनिया भूल जाए, मैं शाहबानो केस नहीं भूलूंगी साथ ही यह भी नहीं भूलूंगी कि इस बार ‘राजनीति का चारा’ स्टूडेंट्स को बनाया जा रहा है।
कल से एक के बाद एक तस्वीरें आ रही हैं….दिल दहला देने वाले वीडियो आ रहे हैं। एक मजबूत इंसान हूं …कमजोर सिर्फ अपने बच्चों के मामलों में पड़ती हूं। सोच सकते हैं उन परिजनों पर क्या बीती होगी, जिन्हें उनके बच्चों ने फोन करके बताया होगा, पुलिस हमारे परिसर तक पहुंच गई है…लाइब्रेरी तक…बाथरूम तक। फिर वे दौड़े-भागे यूनिवर्सिटी परिसर तक पहुंचे, उसके बाद…वहां बच्चे ना मिले तो एम्स के ट्रामा सेंटर जाएं….वहां भी घुसने ना दिया जाए। यह माहौल किसी दूर-दराज के प्रांत का नहीं देश की राजधानी दिल्ली का है। तिस पर हम हंस रहे हैं…कह रहे हैं, और तोड़ा जाना चाहिए। बरसों-सदियों पुराने घाव दिखाकर इस बर्बरता को जायज ठहराया जा रहा है…उफ्फ…यदि आपको लगता है, बरसों-सदियों पहले हुए घावों का बदला पूरा हुआ तो याद रखिए ये जो नए घाव बन रहे हैं ना वो भी एक दिन नासूर ही बनेंगे। भुगतने के लिए आप-हम तो ना होंगे लेकिन हमारे बच्चे या उनके बच्चे जरूर होंगे।
बस को खाक करना गलत है…आप कह रहे हैं स्टूडेंट्स ने जलाया, स्टूडेंट्स कह रहे हैं…बाहरी लोग थे। अलग-अलग के फोटो-वीडियो आप-हम सभी देख रहे हैं। यूनिवर्सिटी के वीसी कह रहे हैं, पुलिस ने कैंपस में घुसने से पहले इजाजत नहीं ली। याद रखिए हम-आप अपने बच्चों को कहते हैं, रात को अकेले दोस्तों के साथ मत जाना…कॉलेज-यूनिवर्सिटी के कैंपस में रहना। घर की तरह सुरक्षित रहोगे। इस बार सेंध हमारे बच्चों की सुरक्षा में लगी है। पुलिस के हाथ में जब डंडा होता है तो वह भी भेद नहीं कर पाती, कितने निर्दोष बच्चों का भरोसा टूटा है आप सोच भी नहीं सकते। घर में बच्चों की सुरक्षा करने के लिए हम बड़े तो रहते हैं, कल सारे बच्चों के पास कोई बड़ा नहीं था।
बाकी मैं मेटेरियलिस्टिक नहीं…कल प.बंगाल में रेल जलाने के विरोध में लिखा था…आज विरोध उससे कहीं तगड़ा है। काहे कि सार्वजनिक संपत्ति देश का युवा असलियत मैं सबसे बड़ी संपत्ति हैं। वैसे सुना है, बीएचयू भी जामिया के पक्ष में सड़क पर आया है….अच्छा है, हम बड़े बंट रहे हैं…हमारे बच्चे अभी भी अपनी आंखों पर पट्टी नहीं बांधे हैं।

अंत में चलते-चलते….

  • पुलिस ने यूनिवर्सिटी में घुसने के लिए सुबह का इंतजार क्यों नहीं किया। यूनिवर्सिटी के वीसी से अनुमति क्यों नहीं ली। मेरे घर में घुसने के लिए पुलिस को वारंट की जरूरत पड़ती है। यूनिवर्सिटी में जाने के लिए क्यों नहीं….वहां हर तबके-जात-धर्म के बच्चे पढ़ते हैं।
  • अंधाधुंध लाठियां…डर की सत्ता किस पर बैठाना चाहते हैं। ये युवा नहीं ब्रेन हैं। इनकी नसों में जहर भरा जा रहा है।
  • मत कहिए मुझसे गेहूं के साथ घुन भी पिसता है। यह घुन नहीं हमारे बच्चे हैं….युवा हैं…आप मत मानिए लेकिन विश्वास है आज भी अधिकांश लोग मानते होंगे। कुछ कहने से डर रहे लेकिन ‘बच्चे सबके सांझा’ होते हैं।

इसलिए दिमाग पर जोर डालिए सोचिए फिर बोलिए…लिखिए…भ्रम या मति भ्रम फैलाइए। अंकल मैं मुस्लिम भी नहीं हूं….लॉ की स्टूडेंट हूं…. यूनिवर्सिटी नहीं मेरा घर तबाह कर दिया है…. मम्मी-पापा हम यूनिवर्सिटी के अंदर हैं हमें कुछ नहीं हो सकता….कहने वाले अपने बच्चों को आप क्या कहेंगे… सुनिए पूरा अनुज्ञा को ……