जनवरी, 2019 में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग यानी NSC के कार्यवाहक अध्यक्ष पीसी मोहनन और आयोग की सदस्य जेवी मीनाक्षी ने अपने पद से इस्ताफा दे दिया था. दोनों के आरोप थे कि सरकार रोजगार के आंकड़े छिपाने की कोशिश कर रही है. पीसी मोहनन वरिष्ठ सांख्यिकीविद और जेवी मीनाक्षी दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स में प्रोफेसर हैं. दोनों को जून, 2017 में तीन साल के लिए एनएससी का सदस्य नियुक्त किया गया था, जिनका कार्यकाल जून, 2020 तक था. मगर इससे पहले ही दोनों सदस्यों ने सरकार को अपने इस्तीफे सौंप दिए.
एनएसएसओ ( NSSO ) केंद्र सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय MOSPI के मातहत काम करता है, जिसका काम देश भर में घर-घर से अलग-अलग सामाजिक-आर्थिक दशा, खेती और उद्योगों के प्रदर्शन आदि से संबंधित सांख्यिकीय आंकड़े इकट्ठा करना होता हैं. NSSO उपभोक्ताओं के खर्च, रोजगार, बेरोजगारी और स्वास्थ्य सेवाओं का भी सर्वे करता है. ये कुछ वैसा ही होता है, जैसे चुनाव के दौर में अलग-अलग एजेंसियां ओपिनियन पोल या एग्जिट पोल करती हैं. NSC एनएससी का काम गणना के लिए नीतियां बनाना, उसकी प्राथमिकताएं और मानक तय करना है. पूरे कामकाज की समीक्षा करना भी इसका काम है.
सरकार इन आंकड़ों को सार्वजनिक करने से बच रही थी. उल्लेखनीय है कि 2016 के बाद सरकार ने बेरोजगारी के आंकड़े देना बंद कर दिया है. आज सरकार यह तक बताने की स्थिति में नहीं है कि वर्ष वार कितने लोगों को नौकरियां मिली और कितने बेरोजगार बढ़े. रोज़गार सरकार की एजेंडा में ही नहीं है.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने इन आंकड़ों को छाप कर सार्वजनिक उजागर कर दिया है। पत्रकार जय मजूमदार ने आंकड़ों के साथ एक लंबी रिपोर्ट भी लिखी है जिसे मैं यहां संक्षेप में प्रस्तुत कर रहा हूँ.
- साल 2011-12 से 2017-18 के बीच 4 करोड़ 70 लाख लोगों की रोटी-रोजी छिन चुकी है.
- 2011-12 में देश में कोई 42 करोड़ लोगों के पास काम था. माने ये वो लोग थे, जिनके पास कोई न कोई रोजगार था. मगर अब ये तादाद घटकर 37 करोड़ 30 लाख ही रह गई है.
- मतलब ये कि साल 2012 से 2018 तक 4 करोड़ 70 लाख लोगों के हाथ से काम छिन चुका है.
- खास बात ये है कि गांवों में मर्दों के मुकाबलेमहिलाओं के हाथ से काम ज्यादा छिना. इसकी एक वजह मनरेगा जैसी योजनाओं का काम ठीक ढंग से न चलना हो सकता है.
- गांवों कुल बेरोजगारों में 68 फीसदी कामकाजी महिलाएं थीं. इसके मुकाबले शहरों में पुरुषों ने ज्यादा (96%) नौकरियां गंवाईं.
- इस वक्त देश में 28 करोड़ 60 लाख पुरुष कोई न कोई काम कर रहे हैं. साल 2011-12 में 30 करोड़ 40 लाख पुरुष रोजगार में लगे हुए थे. मतलब ये कि साल 2011-12 से 2018 तक 1 करोड़ 80 लाख पुरुष कर्मचारी अपनी नौकरी खो चुके हैं. साल 1993-94 के बाद ये पहला मौका है, जब कामकाजी पुरुषों की तादाद कम हुई है.
- देश के 4 करोड़ 70 लाख लोगों की नौकरियां छिन चुकी हैं. ये तादाद अफगानिस्तान, सउदी अरब और नेपाल जैसे देशों की कुल आबादी से भी ज्यादा है. इसे और विस्तार से समझें तो दुनिया के कोई 170 देशों की अबादी इससे कम है, जितने लोग भारत में साल 2012 से 2018 के बीच बेरोजगार हो गए.
इस रिपोर्ट में शहरों और ग्रामीण इलाकों का अलग-अलग डेटा दिया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में बेरोजगारी दर 7.1 प्रतिशत रही है जबकि ग्रामीण इलाकों में 5.8 प्रतिशत बेरोजगारी हुई है.
नाम न बताने की शर्त पर एक विशेषज्ञ ने बताया कि अभी इस डाटा का और अध्ययन किया जाना है, लेकिन यह बात साफ है कि नौकरियों में कमी आई है और रोजगार के नए मौके भी पैदा नहीं हुए हैं.
ग़ौरतलब है कि सत्ता में आने से पहले मोदी सरकार ने हर साल युवाओं को करोड़ो रोजगार देने का वादा किया था. लेकिन 5 साल बाद भी मोदी सरकार अपना यह वादा पूरा करने में नाकाम साबित हुई है.