बाबर जिसने खुद से 8 गुना बड़ी फौज को हराया था

Share

“एम्पायर” (Empire) बाबर के जीवन और उसकी ज़िंदगी पर एक नई वेब सीरीज़ है। जिसे रिलीज़ होने के साथ भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। हाल ये है कि #UninstallHotsar हैशटैग मार्किट में कई दिनों तक छाया रहा था। क्योंकि आरोप लगाया था कि ये बाबर के महिमामंडन के लिए बनाई गई वेब सीरीज़ है। क्यूंकि बाबर एक “लुटेरा” था इसलिए ऐसा किया जाना कबूल नहीं किया जा सकता है।

लेकीन ये भी सच है कि क़रीबन 500 साल पहले अपना महत्व रखने वाला शख़्स आज के राजनीतिक हालात पर खरा उतर सके ये तो मुमकिन नहीं हो सकता है। ऐसा इसलिए की लगभग 5 सदियों का वक़्त बीत जाने के बहुत कुछ ऐसा होता है जो हम उस समय सही मान सकते थे लेकिन अब वो सही नहीं है।

यही नहीं बाबर ( Mughal Emperor Babaur, Babar) की 1526 में हुई जीत से लेकर अब तक मुग़लों का भारत की संस्कृति पर गहरा प्रभाव रहा है। खान पान,रहन सहन से लेकर जंग लड़े जाने के तरीकों तक मे बदलाव लाने का क्रेडिट मुग़ल साम्राज्य ही को दिया जाना चाहिए। जैसे कि किसी और को भी दिया जाता रहा है।

इस स्थिति को इतिहासकार हरबंस मुखिया ने बहुत अच्छे से समझाया है उन्होंने कहा है कि “बाबर का व्यक्तित्व संस्कृति, साहसिक उतार-चढ़ाव और सैन्य प्रतिभा जैसी ख़ूबियों से भरा हुआ था.”

मुखिया कहते हैं कि अगर बाबर भारत न आता तो भारतीय संस्कृति के इंद्रधनुष के रंग फीके रहते. उनके अनुसार भाषा, संगीत, चित्रकला, वास्तुकला, कपड़े और भोजन के मामलों में मुग़ल योगदान को नकारा नहीं जा सकता”

कौन था बाबर?

ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर एक 12 साल का लड़का जिसके पिता की मृत्यु उसकी रियासत छोड़ कर हो गई थी। अब इस फ़रगना रियासत की बागडोर उसके कांधो पर आ गयी थी। लेकिन उसने हार नहीं मानी, यही भरोसा और सीख उसे क़रीबन 30 साल बाद हारते हुए,भटकते हुए दिल्ली ले आयी जहां उसने अपनी से आठ गुना फौज के सिपहसलार इब्राहिम लोधी को जंग में हराया था और मुग़लों का झंडा दिल्ली में लहराया था।

बाबर के बारे में एक और ऐतिहासिक और रोमांचक तथ्य है वो ये है कि बाबर विश्व के सबसे खूंखार और युद्धकला के माहिर चंगेज़ खान का वंशज था और 1398 में दिल्ली से लेकर कई सौ मीलों तक दिल्ली सल्तनत को रौंद कर जाने वाले तैमूर लंग का भी वंशज था।

हालांकि खुद को मुग़लों द्वारा “तैमूरी” ही कहा जाता रहा है लेकिन चंगेज़ खान से उनका रिश्ता ज़रा भी छुपा नहीं है। बल्कि ये एक ऐतिहासिक तथ्य भी है। जिसे झुठलाया जाना मुमकिन नही है।

कैसे जीता दिल्ली को?

काबुल तक अपनी सत्ता को बढाने के बाद अपने बरसों के ख्वाब यानी हिंदुस्तान की तरफ़ रुख करने की बाबर की तैयारी बहुत पुरानी थी लेकिन उसे ये कारनामा करने का कोई भी मौका नहीं मिल पा रहा था। बाबर अपनी आत्मकथा बाबरनामा में लिखता है कि ” मैंने हिंदुस्तान को जीतने के बारे में सोचना कभी भी नहीं छोड़ा”। असल मे इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण ये भी था कि 1398 में दिल्ली सल्तनत को रौंदने वाले तैमूर लंग की जीती हुई रियासतों पर वो अपना हक समझता था और उन्हें जीतने की ख्वाहिश रखता था। इसलिए हिंदुस्तान से उसका लगाव इतना गहरा भी था।

दिल्ली को जीतने की दूसरी बड़ी वजह ये है कि उसका शासन जो काबुल,बदख्शां और कंधार पर था जहाँ से मिलने वाले राजस्व से उसके और उसकी रियासत के खर्च पूरे कर पाना मुमकिन नहीं था। इन्हीं हक़ीक़तों को ध्यान में रखते हुए बाबर ने 1520-21 तक सिंध,भीड़ा और सियालकोट को जीत लिया था जो भारत के रक्षा द्वार थे।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक “ज़हीरुद्दीन बाबर ( Zahiruddin Muhammad Babar) को अच्छी तरह एहसास था कि उसकी फ़ौज दुश्मन के मुक़ाबले पर आठ गुणा कम है. इसलिए उसने एक ऐसी चाल चली जो इब्राहिम लोदी ( Ibrahim Lodhi) के वहम और गुमान में भी नहीं थी.

उसने पानीपत के मैदान में ऑटोमन तुर्कों की युद्ध रणनीति इस्तेमाल करते हुए चमड़े के रस्सों से सात सौ बैलगाड़ियां एक साथ बांध दी. उनके पीछे उसके तोपची और बंदूकबरदार आड़ लिए हुए थे.

उस ज़माने में तोपों का निशाना कुछ ज्यादा अच्छा नहीं हुआ करता था लेकिन जब उन्होंने अंधाधुंध गोलाबारी शुरू की तो कान फाड़ देने वाले धमाकों और बदबूदार धुएं ने इब्राहिम लोदी की फौज को के होशोहवाश उड़ा दिए और इससे घरबराकर जिसको जिधर मौका मिला, उधर सेना भाग गई”

इस तरह बदल गया भारत का इतिहास…

20 अप्रैल 1526 को बाबर ने अपने से 8 गुणा बड़ी और ताकतवर फौज को हराते हुए दिल्ली की गद्दी पर कब्ज़ा जमा लिया था। जहां दिल्ली से लेकर आगरा तक का बड़ा और उपजाऊ क्षेत्र उसके कब्जे में आ गया था। बाबर ने अपने ख़्वाब को पूरा कर लिया था जो उसने बचपन मे देखा था।

इतिहासकार 1526 में लड़े गए पानीपत के पहले युद्ध को भारत के इतिहास का निर्णायक युद्ध कहते हैं। क्यूंकि क़रीबन 350 सालों से चला आ रहा दिल्ली सल्तनत का शासन अब समाप्त हो चुका था और बाबर ने मुग़ल साम्राज्य की स्थापना करते हुए “बादशाह” की उपाधि धारण की थी।