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"असमिया हिंदू" बनाम "बंगाली हिंदू"

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अपने ही देश के 40 लाख लोगों से नफरत करना सिखा देती है बस 1 लिस्ट। राष्ट्रवाद अब तक हमको उनसे नफरत करना सिखाता था जो हमारे इलेक्टोरल कमीशन के यहां एनरोल नही था। लेकिन अब देश मे साथ रह रहा भी आपकी नफरत का शिकार बन सकता है.
लिस्ट पर शक आना इसलिए स्वाभाविक है क्योकि पूर्व राष्ट्रपति का परिवार का नाम इसमे नही, 20 साल तक देश की सेवा में लगा सैनिक का नाम नही। एयर फोर्स में काम कर चुका नागरिक इसमे नही। उधर आतंकी परेश बरुआ का नाम शामिल है जो भागा हुआ है.
यह NRC थी तो इसलिए कि बिना जाति या धर्म देखे जो गलत तरीके से घुसा है, उसको वापस भेजा जाए लेकिन इसीके समानांतर में भाजपा एक बिल ले आई जो कहता है कि मुस्लिम और ईसाई के अलावा जो बचेगा उसको नागरिकता दे देंगे।
असमी हिन्दूओ के लिए तो यह फिर वही बात हुई जिससे वो परेशान थे ही, इसलिए अब उन्होंने भाजपा का विरोध करना शुरू कर दिया है.
अब असमी हिन्दुओ या बंगाली हिन्दुओ में से किसी एक का घाटे में रहना  तय है। इस बात को लिख लीजिये। आप सोचेंगे कि कुछ लाख 4 लाख बंगाली हिन्दुओ का वोट, असमी हिन्दुओ के वोट पर भारी नही पड़ सकता इसलिए भाजपा कभी भी वो बिल पास नही करेगी.
लेकिन आप गलत है, बंगाली हिन्दुओ को बिल के माध्यम से असम में रहने देने का काम भाजपा ज़रूर करेगी ताकि 2019 में बाकी 28 राज्यो में यह संदेश जाए कि मलेछ्य को भगा दिया और धार्मिक भाई को रख लिया।
नोटबंदी, मेहुल चौकसी, नीरव मोदी, GST और अगस्त महीने में बच्चो की मौत से लेकर काशी के सभी पुरातन मंदिरों की ध्वस्तगी से लुटा पिटा बाहू भाइ वोटर के लिए यह संजीवनी है.
अब यह तो सब जानते है कि असमी हिन्दुओ का वोट, 28 राज्यो के हिन्दुओ के वोट के सामने बहुत छोटा है। असमी भाइयो की तरफ फिर कोई देखेगा भी नही। ठीक यही होगा, नही तो आप लिख लीजिये

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