शोले के “रहीम चाचा” हो गए थे पाई-पाई को मोहताज 

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“इतना सन्नाटा क्यों है भाई” इस डायलॉग को सुनते ही एक ऐसे कलाकार का चेहरा हमारे सामने आता है। जिनके अभिनय के करोड़ों दीवाने थे। जी हां, हम बात कर रहे है ऐ.के हंगल की। ऐ.के हंगल को उनके बेहतरीन किरदार के लिए आज भी याद किया जाता है। उनका जन्म 1 फरवरी 1914 में एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। ऐ.के हंगल का जन्म पाकिस्तान में हुआ था। उनका बचपन पेशावर में बीता। साल 1947 में अंग्रेजो से मिली आजादी के बाद भारत  और पाकिस्तान में बंटवारा हुआ। और इस बंटवारे में हंगल भी पाकिस्तान से भारत आ गए।

सन्यास लेने की उम्र में फिल्मों की एंट्री

हंगल बचपन से ही अभिनय करने के शौकीन थे। बताया जाता है कि वह 18 साल की उम्र से ही रंगमंच के साथ जुड़ गए थे। और लगभग 20 की उम्र में उन्होंने पहला नाटक किया था। उन्होंने साल 1966 में सिनेमा जगत में एंट्री कर ली थी। आमतौर पर लोग जिस उम्र में काम से संन्यास लेते हैं।  लगभग उसी उम्र में हंगल ने फिल्म में काम करना शुरू किया था।उन्होंने लोगों के बीच अपनी एक खास पहचान बनाई। 

पहली फिल्म थी “तेरी कसम”

ऐ.के हंगल को सबसे पहले फिल्म में काम करने का मौका साल 1966 में आई फिल्म “तेरी कसम” में मिला। फिल्मों में हंगल ने हर तरह का किरदार निभाया। उन्होंने चाचा, दोस्त, पिता, दादा, काका के साथ नौकर का भी किरदार निभाया। लेकिन, फिल्म “शोले” में रहीम चाचा के किरदार ने दर्शकों के मन में उनकी अलग ही पहचान बना दी। 

आजादी के लिए उनकी लड़ाई

ऐ.के हंगल का पूरा नाम अवतार किशन हंगल था। आमतौर पर लोग इन्हें रामू काका, शंभू काका, नाना, नेता जैसी छोटी भूमिकाओं के लिए पहचानते थे। पर यह बात बहुत ही कम लोग जानते हैं कि हंगल आजादी की लड़ाई में पूरी तरह सक्रिय थे। हालांकि उनके परिवार के ज्यादातर सदस्य ब्रिटिश गवर्नमेंट के अंदर अच्छे पद पर काम कर रहे थे। बावजूद इसके हंगल साल 1926 से 1947 तक देश की आजादी  लिए लड़ते रहे। जिसकी वजह से उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। बता दें कि करांची में 3 साल तक जेल में रहने की वजह से उन्हें करांची छोड़ना पड़ा। हंगल करांची छोड़ने के बाद मुंबई आ गए। वहां उन्होंने कुछ दिन टेलरिंग का काम किया। बाद में उनकी एंट्री सिनेमा जगत में हुई। जिसके बाद उन्होंने 70 से 90 के दशक में लगातार एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्में की। उन्होंने अभिमान, परिचय, अवतार, कोरा कागज, आंधी, सत्यम शिवम् सुंदरम और लगान जैसी तमाम फिल्मों में काम किया।

ज़िन्दगी के आखिरी पल

पद्मभूषण से सम्मानित इस महान कलाकार के अंतिम दिन बेहद ही कठिन रहे। उन्होंने जीवन में कभी बैंक बैलेंस और शारीरिक आराम के बारे में नहीं सोचा। और अंत में पैसों की तंगी से जूझते हुए इस महान कलाकार ने साल 2012 में अपना दम तोड़ दिया। बताया जाता है कि उनके पास पैसों की इतनी कमी थी कि वह अपना इलाज और दवाओं का खर्च भी नहीं उठा पा रहे थे।