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भारत के बंटवारे की एक कहानी – “सतरंजे का बंटवारा”

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सतरंजे का एक सिरा सुल्तान खा़न के हाथ में दूसरा सिरा सरदार खा़न के हाथ में था। सुल्तान कह रहा था- “सारा सामान बेच दिये ,एक सतरंजा बचा है , उस पे भी तुम्हारी नज़र गड़ी हुई है“, सतरंजा न हुआ सल्तनत हो गई। सरदार ख़ान चीखा “मैं बड़ा हूँ , जो चाहुँगा करुंगा ।” हाँ हाँ मुझे मालूम है,तुमने पाकिस्तान जाने का फैसला कर लिया है, पर सुनलो तुम जाओ। मैं नहीं जाउंगा। सुल्तान ने कहा सतरंजे को लेकर रस्सा कसी हो रही थी।
सरदार ख़ान भले ऊँचे पूरे थे पर उम्र का घुन आदमी को कब कमज़ोर कर देता है। पता ही नहीं चलता। सुल्तान ने पूरी ताकत लगाकर खीचा, थोड़ी दूर तो सतरंजे के साथ सरदार खा़न खिंचते हुए चले आए फिर पर्र की आवाज के साथ सतरंजा दो टुकड़े हो गया। बड़ा टुकड़ा सरदार ख़ान के हाथ में, और छोटा टुकड़ा सुल्तान के हाथ था। सरदार ख़ान उस बड़े टुकड़े को लपेट कर बीच के कमरे में घुस गया। खाला , खाला की दोनो बेटियाँ , और सरदार ख़ान का बेटा उम्र लगभग गयारह वर्ष भी सरदार ख़ान के पीछे हो लिए। बीच का दरवाजा लगा दिया गया। “खाला कपड़े इसी सतरंजे में बांध लो”, अपन लोग कब निकलेंगे ? खाला ने पूछा “दो बजे रात को ट्रक आएगा”सरदार ख़ान ने जवाब दिया।
खाला सोचने लगी। ये वही घर है , जिसमें मैं नई दुल्हन बन कर आई थी । अब ये कुछ घंटों में छूटने वाला है । इतने साल बीत गये पर कभी इन दीवारों ने इस छत ने इस फर्श ने इन दरवाजों ने इन दरीचों ने उससे बात नहीं की , आज वो सब बातें कर रहे थे। “खाला घर सूना कर के मत जाओ ” “, खाला हम कुछ नहीं कहेंंगे।”” खाला को ऐसा महसूस हुआ दीवारें सिसक रही हैं।मानों कह रही है ।”खाला जब तुमको हमे छोड़कर जाना था तो बारिश के पहले मेरी मरम्मत क्यों की ” लकडी का खम्बा घुन लगने से कमजोर होगया था।
खाला का सब्र का बांध फूट गया जोर जोर से सिसकियाँ भरने लगी।खम्बे से लिपट गई। खाला को देख कर दोनों अबोध बच्चियाँ भी रोने लगीं । सरदार ख़ान बाहर चला गया था। जैसे ही अंदर आया।खाला की मनोदशा देख कर विचलित हो गया। “खाला, ये सब क्या है , दिल मजबूत करो , हम अपने मुल्क में रहेंगे थोड़ी परेशानी तो बरदाश्त करनी पडे़गी ।” सरदार ख़ान “नहीं ये बात नहीं है।” खाला “सुल्तान”,     खाला “मेरे सामने उसकी बात मत करो” सरदार ख़ान को गुस्सा आ गया था । “सुबह से कुछ नहीं खाया है उसने” , खाला ने एक रूखी रोटी बेटी कल्लो को देते हुए,कहा” जा सुल्तान को दे दे”. खाला ने खिडक़ी से देखा सुल्तान उसी अपने हिस्से के सतरंजे में सरहाने ईंट रख कर सोया था।
कल्लो बगल में खड़े हो कर जगाने लगी। “भाई ,भाई ,, “रोटी” सुल्तान उठा, कातर नज़रों से बहन कल्लो को देखा ,एक हाथ से रोटी ली दूसरे हाथ से उसके गले से लग कर फूट फूट कर रोने लगा। उसका क्रन्दन देख कर सब हिल गये ।सरदार ख़ान ने कहा “इसीलिये तो मैं कह रहा हूँ, चल छोड़ चल वर्ना यहाँ अकेला पड़ जाएगा।” रोते रोते ही बोला”, अकेला नहीं हूँ भाई मेरा अल्लाह है मेरे साथ,  “अब्बा,अम्मा इसी मिट्टी में दफन हैं।मैं भी यहीं दफन होना चाहता हूँ।” “हिंदुस्तान की ज़मी मेरी माँ है इसको छोड़ कर कहीं और जाने के बारे में सोच भी नहीं सकता।”
बादल गरजने लगे बूंदा बाँदी होने लगी। सरदार ने आसमान की ओर निगाह उठाई पूरा आसमान बादलों से आच्छादित था , एक सितारा भी नहीं दिख रहा था । मेढकों की टर्र टर्र सन्नाटे को और बढ़ा रही थी। अचानक दो तीन कुत्ते रोने लगे ।वातावरण भयावह हो गया । किसी दुर्घटना की आसन्न आशंका से दोनों लड़कियाँ भयभीत हो गयी थीं।
कल ही पडोस के गाँव में कुछ बलवाइयों ने एक घर से , जवान लड़की को उठा ले गये ।सुबह नदी में उसकी लाश मिली। “अम्मा सुबह नहीं जा सकते”कल्लो ने खाला से कहा। “रास्ते में बलवाई और लुटेरे मिलते है , यही वक्त अच्छा है।” “अम्मा बारिश हो रही है।” “अल्लाह मदद कर”आसमान की ओर सर उठा कर खाला ने कहा।
ट्रक आ गया था। उसमें पहले से ही अन्य औरत मर्द बच्चे बैठे थे। सब पानी में भीग रहे थे। सरदार खान”चलो , चलो कल्लो , रब्बो खाला अरे गटठा कहाँ है।” सब बैठ चुके थे। खाला अभी घर के अंदर ही थी। सरदार खान ने आवाज लगाई “खाला” खाला नहीं आई। तो ट्रक से उतर कर घर के अंदर जाकर देखा। सुल्तान और खाला गले से लग कर धारों आँसू रो रहे थे।
सुल्तान ने अपने हिस्से का सतरंजा खाला को देते हुए कहा “बारिश हो रही है , आप लोग भीग जाओगे ,इसे ओढ़ लेना।” ऐसा कहते हुए सुल्तान बाहर निकल गया। ट्रक रवाना हो चुका था । उस की आवाज के बीच बीच में दूर तक ,कल्लो ,और रब्बो की सिसकियों को सुनता रहा। बारिश तेज हो गई। कुछ पलों में ट्रक आँखों से ओझल हो गया। ( यह कहानी 1947 की एक सच्ची घटना पर आधारित है, पात्रों के नाम काल्पनिक हैं, लेखक—-अशफ़ाक़ ख़ान जबल” )