भाखड़ा नांगल बाँध हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर ज़िले में सतलुज नदी पर “बाँध भाखड़ा नांगल परियोजना के अंतर्गत निर्मित किया गया है”. 1948 में इस बाँध के निर्माण का कार्य शुरू हुआ और 1962 में यह बनकर तैयार हुआ. 22 अक्टूबर, 1963 वह तारीख थी जिस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस बाँध को राष्ट्र के नाम समर्पित किया.
जब यह बाँध बनकर तैयार हुआ था, तो उस समय ये देश का सबसे ऊंचा बाँध हुआ करता था. फ़िलहाल यह 856 फीट ऊँचे टिहरी बाँध के बाद भारत का दूसरा सबसे ऊँचा बाँध है. भाखड़ा नांगल बाँध की ऊँचाई 740 फीट है. इस बाँध का निर्माण अमेरिकी बाँध निर्माता हार्वे स्लोकेम के निर्देशन में हुआ था.
शिवालिक पहाड़ियों के बीच बना भाखड़ा बाँध 740 फीट ऊँचा और 1700 फीट लंबा है. आधार में इसकी चौड़ाई 625 और ऊपर 30 फीट है. वहीं इससे 13 किलोमीटर दूर नीचे स्थित नांगल बाँध 95 फीट ऊँचा और 1000 फीट लंबा है.
जब भाखड़ा नांगल परियोजना का उदघाटन किया जा रहा था, तो उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था- ‘भाखड़ा नांगल परियोजना में कुछ आश्चर्यजनक है, कुछ विस्मयकारी है, कुछ ऐसा है जिसे देखकर आपके दिल में हिलोरें उठती हैं. भाखड़ा पुनरूत्थित भारत का नवीन मन्दिर है और यह भारत की प्रगति का प्रतीक है.’
इस बाँध का मुख्य उद्देश्य सिंचाई और बिजली उत्पादन है. बाँध पर लगे पनबिजली संयंत्र से 1325 मेगावॉट बिजली का उत्पादन होता है, जिससे पंजाब के अलावा हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में बिजली की आपूर्ति होती है.
यह राजस्थान, पंजाब और हरियाणा की संयुक्त परियोजना है. इसमें राजस्थान की हिस्सेदारी 15.2 प्रतिशत है. इस परियोजना से श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, झुंझनू और चुरू ज़िलों के अलावा 250 से अधिक छोटे बड़े गांव और कस्बों को बिजली प्राप्त होती है.
संक्षिप्त इतिहास
सतलुज नदी पर बाँध के निर्माण का विचार पहली बार सर-लूडस डैने द्वारा 8 नवम्बर, 1908 की टिप्पणी में उत्पन्न हुआ जिसमें पानी रोकने तथा विद्युत निर्माण के लिए बांधों हेतु सुनि और बाडू जॉर्ज द्वारा अनुकूल स्थल बताया. इस प्रस्ताव पर विस्तृत रिपोर्ट मार्च 1910 में प्रस्तुत की गई, ये अलग बता है कि परियोजना की अनुमानित लागत उत्साहवर्धक नहीं थी. अत: परियोजना को स्थगित कर दिया गया.
1919, 1939-42, 1945-46 की परियोजना रिपोर्ट के बाद 1948-51 के दौरान परियोजना का अन्तिम प्रस्ताव लाया गया
1948 में, जब भारतीय क्षेत्र वाले विभाजित पंजाब राज्य की सिंचाई एवं बिजली की मांगे ओर बढ़ी तो बांध की ऊंचाई का प्रश्न, उसका शीर्ष उन्नयन जो बिलासपुर कस्बे को जलमग्न होने से बचाने के लिए केवल ई.एल. 487.68 मीटर (1,600 फुट) पर निश्चित किया गया था, की समीक्षा की गई थी तथा फाउंडेशन रॉक स्थितियों द्वारा यथा निर्धारित अधिकतम सुरक्षित अनुकूल आवश्यक जल शक्ति अध्ययनों तथा आगे फांउडेशन की छानबीन के उपरान्त 1948 में ईएल 512.06 मीटर (1,680 फुट) पर पूर्ण जलाशय स्तर सहित इसकी अनुकूलतम ऊंचाई तक बांध को ऊपर उठाने का निर्णय लिया गया, बाद में इसे आगे ईएल 513.58 मीटर (1,685 फुट) तक ऊपर उठाया गया.
पंजाब के लोक निर्माण विभाग (पी.डब्लयू.डी.) की सिंचाई शाखा तथा अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी आई.एन.सी. यू.एस.ए. के बीच दिनांक 14 नवम्बर 1948 को किए गए एक समझौते के माध्यम से उच्चतर बांध के लिए संशोधित डिजाइन तथा विनिर्देशन अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी आई.एन.सी. यू.एस.ए.को पुन: सौपे गए.
207.26मी.(680 फुट) ऊंचे सीधे गुरूत्तव बांध के लिए 1951 में, संशोधित परियोजना रिपोर्ट तैयार की गई.
अन्तिम परियोजना प्रस्ताव में निम्नलिखित यूनिटें सम्मिलित थी :-
- भाखडा बांध तथा विद्युत संयंत्र
- नंगल बांध
- नंगल हाईडल चैनल
- नंगल हाईडल चैनल पर गंगूवाल तथा कोटला विद्युत गृह
- रोपड़ हैडवर्क्स का पुननिर्माण
- सरहिन्द नहर का पुननिर्माण
- भाखडा नहरें
- बिस्ट दोआब नहर
- विद्युत ऊर्जा की पारेषण और वितरण प्रणाली
- भाखडा क्षेत्र की मार्केट तथा संचार का विकास
ऊपर वर्णित प्रस्ताव के साथ, भाखड़ा नंगल परियोजना ने एक वास्तविक बहुउद्देशीय परियोजना का रूप लिया. इसके मुख्य लाभों के रूप में सिंचाई तथा विद्युत उत्पादन और आकस्मिक लाभों के रूप में बाढ नियंत्रण, मनोरंजन तथा मत्स्य संस्कृति की सुविधाएं प्राप्त हुई.
भाखड़ा नंगल परियोजना के निर्माण हेतु भाखड़ा नियंत्रण बोर्ड–एक एजेन्सी का गठन हुआ. 1947 में स्वतन्त्रता के बाद पंजाब के दो विख्यात अभियन्ताओं डॉ. ए.एन. खोसला तथा इंजी. कंवर सैन ने भाखड़ा बांध के त्वरित निर्माण की अत्यावश्यकता हेतु निर्माण कार्य, खान एवं विद्युत केन्द्रीय मन्त्री श्री एन.वी. गेडगिल के माध्यम से भारत सरकार पर दबाव डालने के अपने प्रयास जारी रखें.
बाँध निर्माण कौन करेगा, इसके लिए डीबेट रखा गया था
एक डिबेट की गई कि बांध किसे बनाना चाहिए. क्या भारतीय अभियन्ताओं के पास विस्तृत परिणाम तथा तकनीकी जटिलताओं वाले बांध का निर्माण करने के लिए अपेक्षित निपुणता तथा अनुभव है. क्या वे इसे अकेले बना सकेंगे. क्या बांध लोक निर्माण विभाग द्वारा बनाया जा सकता है. ये डॉ. ए.एन. खोसला थे जिन्होंने इस समस्या को पूरी योग्यता तथा अपनी दूरदृष्टि से समझा तथा इस सम्बन्ध में तीन मौलिक नीतियां निर्धारित की.
पहली उन्होंने जोरदार अपील की कि बांध विदेशी विशेषज्ञों के मार्ग-दर्शन में पी.डब्ल्यू.डी. द्वारा बनाया जाना चाहिए. दूसरी नीति थी कि भारत सरकार को ऐसे विस्मयकारी बांध जिसका भारत में अभी तक निर्माण नहीं हुआ है, के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए. तीसरी चूंकि यह मामला अन्तरराज्यीय महत्व के भाग का है और मुख्य रूप से इसका उद्देश्य तीन राज्यों नामत: पंजाब, पैप्सु तथा राजस्थान को जल की पूर्ति करने का है इसके लिए बांध की ऊंचाई लगभग 100 फुट बढ़ाई जानी चाहिए.
अत: परियोजना की प्रगति का निरीक्षण तथा मॉनीटर करने के लिए भाखड़ा नियन्त्रण बोर्ड, एक एजेन्सी का गठन किया गया. इस संगठन में केन्द्रीय सरकार, पंजाब सरकार, पैप्सु तथा राजस्थान सरकार के प्रतिनिधि सम्मिलित थे
- पंजाब का राज्यपाल…………….अध्यक्ष
- सचिव, वित मंत्रालय, भारत सरकार………….उपाध्यक्ष
- अध्यक्ष, केन्द्रीय जल एवं विद्युत आयोग भारत सरकार…….सदस्य
- विभिन्न राज्य सरकारों के सचिव-सिंचाई एवं विद्युत इन्चार्ज तथा वित्त सदस्य भी।
- सभी मुख्य अभियन्ता-निर्माण प्रभारी…….सदस्य
- संयुक्त सचिव, वित मंत्रालय, भारत सरकार……..सदस्य
- तत्पश्चात 1952 में डॉ. ए.एन. खोसला की अध्यक्षता में बोर्ड ऑफ कान्सयूलेंटस की स्थापना भी की गई।
1951-1963 के दौरान भाखड़ा नंगल परियोजना का निर्माण चरण
प्रारम्भिक वर्षो में भाखड़ा पर परियोजना ले आऊट एवं निर्माण की कार्य स्थितियां भयावह थी. रेल हैड, जो नंगल से लगभग 60 कि.मी. दूर रोपड़ (पंजाब) तक जाती थी, का 1946 में नंगल तक विस्तार किया गया. स्वतन्त्रता से पूर्व नंगल से रोपड़ तक शायद ही कोई ऐसी सड़क थी जिसका 1947 में नंगल तक विस्तार प्रारम्भ किया गया हो. आवश्यक संरचना 1948 के पश्चात ही धीरे-धीरे होनी प्रारम्भ हुई. 1951 में नंगल में 50 बिस्तर वाला केवल एक अस्पताल बनाया गया, जो अपनी प्रकार का पहला अस्पताल था.
बाँध से पहले भाखड़ा नहर बनाने का फ़ैसला लिया गया
भारतीय योजनाकारों और अभियन्ताओं द्वारा दो मुख्य महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए. पहला निर्णय, भाखड़ा बांध की अपेक्षा पहले भाखड़ा नहर प्रणाली निर्मित करने का था तथा दूसरा निर्णय विदेशी विशेषज्ञों की सहायता से विभागीय रूप में बांध का निर्माण करना था. यद्यपि यू.एस.बी आर भाखड़ा बांध का डिजाइन सलाहकार था फिर भी इसका क्रियान्वयन सिंचाई विभाग के भारतीय अभियन्ताओं के हाथ में आया. अप्रैल, 1952 के पश्चात् जब मि. एम. हारवे स्लोकम अमेरिका से निर्माण तकनीशियनों तथा अभियन्ताओं की अपनी टीम के साथ आए तो इसका पूर्ण रूप से सक्रिय निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ.
बाँध से पहले नहर निर्माण का कार्य साहसिक था और फायदेमंद साबित हुआ
बांध से पहले भाखड़ा नहर प्रणाली को बनाने का निर्णय पूर्णतया: साहसिक, काल्पनिक तथा नि:सन्देह लाभकारी था. यह नदी घाटी परियोजना के लिए ऐतिहासक घटना रहेगी. इस कदम का मुख्य श्रेय ई. कंवर सैन, केन्द्रीय जल एवं विद्युत आयोग के सदस्य को जाता है. यह निर्णय लिया गया कि नहर प्रणाली को शीघ्र पूरा करने के लिए पर्याप्त निधि जुटाने के प्रयास किए जाएं, ताकि किसानों को यथाशीघ्र बारहमासी जल की सप्लाई उपलब्ध हो सके. ऐसी नीति के तत्काल अनुमोदन एवं त्वरित क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप भाखड़ा नहर प्रणाली का कार्य शीघ्र पूरा हुआ जिसका उद्दघाटन 7 जुलाई, 1954 को प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू द्वारा किया गया.
भाखड़ा निर्माण के दौरान पंडित नेहरु ने 10 बार परियोजना का दौरा किया था
पण्डित नेहरू को भाखड़ा पर अत्यधिक गर्व था. उन्होने इसके निर्माण के दौरान परियोजना का 10 बार दौरा किया. नए भारत के निर्माण के प्रति उत्साह एवं उमंग से भरपूर सभी अभियन्ताओं तथा तकनीशियनों ने लगभग 10 वर्षो तक दिन-रात अधिक प्रयास करके भाखड़ा बांध बनाने में झौंक दिए. पण्डित नेहरू ने 22 अक्तूबर, 1963 को बांध राष्ट्र को समर्पित किया.