क्या हम सब फासिज़्म के गोएबल काल मे हैं ?

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झूठ का एक मनोविज्ञान यह भी होता है वह उसे फैलाने वालों को भी मानसिक रूप से विकृत कर देता है। 2012 से ही झूठबोलवा गिरोह का विकास शुरू हुआ और ऑडियो वीडियो टेक्स्ट आदि भेजने की एक बेहद सफल तकनीक व्हाट्सएप्प की सुगमता और उपलब्धता ने सोशल मीडिया के आकाश को मिथ्यावाचन के धुंध से प्रदूषित कर दिया। यह एक नए तरह का स्मॉग है जो इतिहास, धर्म, राजनीति, व्यक्ति कथा से लेकर समाज के विभिन्न अंगों को अपने गिरफ्त में लेता चला गया। हांथ में पड़ा मोबाईल कब झूठ और फरेब के चलते फिरते विश्वकोश में तब्दील हो गया पता ही नहीं चला। अब यह झुठबोलवा काल एक समृद्ध गोएबल काल मे बदल गया है।

जिन लोगों को किसी विषय विशेष में रुचि थी वे तो इस मायावी प्रलाप से बच गए पर अधिकतर लोग जिन्हें न रुचि है और न समय वे इन मिथ्या संदेशों को जाने अनजाने आत्मसात करते गए। न तो उन्होंने इसके लिये कोई सुरक्षात्मक उपकरण का प्रयोग किया और नहीं इसका प्रतिवाद किया। अधिकतर समाज एक ऐसी मनोदशा में पहुंचा दिया गया कि देश के अधिकतर अतीत के नायक खलनायक के रूप में चित्रित हो गए।

यह धुंध हटी। काफी कोशिश के बाद अब लोग समझने लगें है। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या अब भी कम नहीं है जिनके लिये इस झुठबोलवा गिरोह के संदेश ऐतिहासिक सत्य के समान नहीं होते। हद तो तब हो गई जब सोशल मीडिया में फैलाये गए झूठ के आधार पर प्रधानमंत्री ने संसद में गलत बयानी कर दी। सोशल मीडिया के आंकड़ो के आधार पर सरकार ने बजट बना दिया। सोशल मीडिया और व्हाट्सएप्प संदेशों के मायाजाल में उलझ कर गृहमंत्री ने संसद में गलत इतिहास बता दिया। यह तो गनीमत है कि यह अधोगति सब तरफ़ है और संसद में दक्ष और कुशल संसदीय  वक्ता कम ही हैं तो यह सब झूठ चल भी जाते हैं। लेकिन बाद में जब उन झूठों की परतें उघाड़ी जाती हैं तो सच निकल कर सामने आ ही जाता है। मैंने झुठबोलवा गिरोह की इस शैली को गोएबेलिज़्म नाम दिया है।

अब एक उदाहरण पढिये जो केंद्रीय मंत्री  जनरल वीके सिंह से जुड़ा है। जनरल साहब कोई सामान्य सांसद नहीं हैं कि वे किसी की कृपा पर राज्यसभा में नामित हो जांय। वे दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ कर जीत चुके हैं। देश के थल सेनाध्यक्ष रहे हैं। सेना में भी वे बेहतरीन कमांडो रहे हैं। पर जब ऐसे काबिल सांसद और केंद्रीय मंत्री व्हाट्सएप्प के सन्देश के आधार पर मीडिया को इंटरव्यू देते हैं और कुछ ऐसा कहते हैं जो कभी कहा ही नहीं गया हो तो बहुत अफसोस होता है।

वीके सिंह ने एक टीवी चैनल पर हो रहे एक इंटरव्यू में पूछे गए एक सवाल के जवाब में जो उत्तर दिया उसका श्रोत ऐसा ही एक भ्रामक और दिलचस्प व्हाट्सएप्प सन्देश था। उनसे लॉक डाउन के बढ़ाने या न बढाने पर एक सवाल किया गया। जनरल साहब ने कहा, विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक प्रोटोकॉल के अनुसार, 21 दिन के बाद 5 दिन की ढील और फिर ज़रूरत होने पर आगे पुनः लगाया जा सकता है। जनरल साहब ने जो कहा वह न तो सरकार का निर्णय है और न ही डब्ल्यूएचओ का कोई प्रोटोकॉल। लेकिन व्हाट्सएप्प पर यही टाइमटेबल विश्व स्वास्थ्य संगठन के नाम से फैला दिया गया। इन सब झूठ से हम सब इतने अधिक प्रोग्राम्ड हो चुके हैं कि सारी सुविधाओं के होते हुए भी हमसब गूगल कर के या डब्ल्यूएचओ की साइट पर जाकर इस तथ्य की पुष्टि नहीं करते है। जो सवाल उठाता है और सच ढूंढ कर लाता है वह तो घोषित नकारात्मक व्यक्ति झुठबोलवा गिरोह द्वारा मान ही लिया जाता है।

व्हाट्सऐप्प डब्ल्यूएचओ के घूम रहे  प्रोटोकोल का यह अंश पढ़े,

” एक दिन के बाद 21 दिन का बंद होता है और फिर पांच दिन की छूट मिलती है और फिर  जरूरत हो तो आगे …।”

यही बात हमारे मंत्री महोदय ने कह दी और संदर्भ विश्व स्वास्थ्य संगठन का कर दिया। जनता में प्रसारित इस सन्देश के आधार पर ही लोग इसी टाइमटेबल को सच मान बैठे थे। मैं औरों की क्या बात कहूँ खुद मैंने ही इसी प्रोटोकॉल के आधार पर अपने कुछ मित्रों को बता दिया कि 14 अप्रैल के बाद 5 दिन की छूट मिलेगी। लेकिन जब ट्विटर पर आल्टनयूज़ की यह खबर पढ़ी तो सच्चाई का पता लगा। यहां तक कि खबरों के अन्वेषी कहे जाने वाले मीडिया चैनलो ने भी इसकी पुष्टि नहीं की।

अब प्रधानमंत्री राहत कोष से जुड़ी एक और झूठी खबर के बारे में देखें। खबर यह फैलाई गयी है कि पीएम केयर्स फंड इसलिए बनाना पड़ा कि पीएम राहत कोष से धन निकालने के लिये कांग्रेस अध्यक्ष की अनुमति ज़रूरी होती  है। जबकि यह सरासर झूठ है। सच यह है कि प्रधानमंत्री राहत कोष से कांग्रेस अध्यक्ष का कोई संबंध नहीं है।

सच तो यह भी है कि, पूरा गिरोह ही फ़र्ज़ी खबरों और पाखंड पर टिका हुआ है। जैसे ही उस पाखंड को ध्वस्त कर दिया जाय तो फैलाई माया का लोप हो जाता है। कोई भी व्यक्ति इस राहत कोष की साइट पर जा सकता है और तुरन्त पूछे जाने वाले सवालों के उत्तर में इस तथ्य की तस्दीक भी कर सकता है। ऐसा करने पर वहाँ लिखा मिला, कि

” इस राहत कोष के प्रमुख प्रधानमंत्री हैं। प्रधानमंत्री के संयुक्त सचिव इस कोष के सचिव होते हैं और इस काम के लिए सचिव को कोई वेतन नहीं मिलता है। सचिव की मदद के लिए एक निदेशक होते हैं। निदेशक को भी इस काम के लिए मदद नहीं मिलता है। इस काम में प्रधानमंत्री के दफ़्तर के बाहर का कोई भी शामिल नहीं है। अधिकारी भी नहीं। राजनीतिक दल भी नहीं। ”

क्या भाजपा सरकार इतनी निकम्मी है कि 1999 से 2004 तक और 2014 से अब तक शासन में रहने के बावजूद झूठबोलवा गिरोह के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष इस कोष प्रबंधन में है तो उस कोष की नियमावली को संशोधित करने की भी न तो यह सरकार हिम्मत जुटा पायी और न ही ऐसा करने की सोच भी सकी ? अव्वल तो कांग्रेस अध्यक्ष उस कोष में कभी रहा ही नहीं है और अगर था भी तो उसे अब तक क्यों रहने दिया गया ?

जैसे गोएबेलिज़्म के दौर में यहूदी नाज़ीवाद के निशाने पर थे वैसे ही इस झुठबोलवा गिरोह के दौर में मुस्लिम आ गए हैं । यह खबर छत्तीसगढ़ से है और इसे आवेश तिवारी ने भेजा है। इस खबर के अनुसार, छत्तीसगढ़ में चैनल, अखबार और भक्त नेता लगातार चिल्ला  रहे हैं कि तब्लीगी जमात के 52  लोग लापता है,यह सभी मरकज में शामिल होने निजामुद्दीन गए थे।कहा यह भी जा रहा है कि यह लोग घूम घूम कर दूसरों को संक्रमित कर रहे हैं।

अब आवेश के शब्दों में

” हमने इस दावे की जब तफ्तीश की तो चौंकाने वाली हकीकत सामने आई। दरअसल 29 मार्च को जब जमातियों के खिलाफ देशभर में बवाल उठ खड़ा हुआ तो छत्तीसगढ़ पुलिस ने पूरे प्रदेश में जमकर छानबीन शुरू कर दी। उस दौरान पता चला कि राजधानी रायपुर से तकरीबन 180 किलोमीटर दूर कटघोरा नाम की जगह पर 16 जमाती मौजूद हैं। तुरंत जिस मस्जिद में वह 16 लोग रुके हुए हैं उसको सील कर दिया गया।

जब जानकारी ली गई तो पता चला इसमें से केवल एक व्यक्ति मरकज निजामुद्दीन गया था। बाकी 15 लोगों को वह महाराष्ट्र से अपने साथ ले कर के आया था। उसके बाद पुलिस ने जानकारी इकट्ठा कर दी शुरू की कि यह 16 लोग किस से किस से मिले हैं ? और इस तरह से संबंधित 70 लोगों की सूची तैयार की गई। इस संदिग्ध लोगों में से 52 के सैंपल जांच के लिए भेजे गए जिनमें से 12 की जांच रिपोर्ट आ गई है और इसमें से 7 पॉजिटिव पाए गए हैं। कोई भी जमाती भागा नहीं है कहीं छिपा नहीं है यह 52 लोगों के भागने या छुटने की बात पूरी तरह से झूठी है और बदनाम करने की साजिश है। ”

इसी प्रकार प्रयागराज में एक सामान्य सी मारपीट की घटना को दीपक चौरसिया ने तबलीगी जमात से जोड़ कर बता और प्रसारित कर दिया। बाद में प्रयागराज पुलिस ने एक ट्वीट कर के उसका खण्डन किया।

ज़ी न्यूज ने एक खबर चलाई कि

‘दिल्ली में तबलीगी जमात की बैठक का सच देखिए’ , अरुणांचल प्रदेश में कोरोना से संक्रमित 11 जमाती मरीज। जबकि सच यह है कि अरुणाचल प्रदेश में कोविड का एक ही मामला पाया गया है। दूसरे की कोई खबर कहीं नहीं है। अरुणाचल सरकार ने इस झूठी खबर का खंडन भी किया है। ज़ी न्यूज़ ने इस पर माफी भी मांगी है।

अब इधर फैलाये गए कुछ झूठ और उसके तथ्यों को भी देख लें

  • एक विडियो जिसे किरण बेदी ने ट्विटर पर शेयर किया था कि लोग अन्डे फेंक रहे थे क्योंकि उसमें से कोरोना वायरस से संक्रमित चूजे निकल रहे थे।

तथ्य – जो अन्डे हम बाज़ार से ख़रीदते हैं, वे अगर्भित होते हैं अर्थात जिनमें से चूजा कभी निकल ही नहीं सकता है।

  • एक विडियो जिसमें दिखाया जा रहा है कि निजामुद्दीन में मुस्लिम झुण्ड में छींक रहे हैं ताकि कोरोना फैले ।

तथ्य – वो सूफ़ी प्रथा के ‘ज़िक्र’ की प्रैक्टिस कर रहे थे जिसमें अल्लाह का नाम लगातार कई बार लूप में बोला जाता है ।

  • एक विडियो जिसमें मुस्लिमों को प्लेट और चम्मच चाटते हुए दिखाया गया है और उनकी मंशा कोरोना वायरस फैलाने की बताई गयी।

तथ्य – ये एक पुरानी विडियो है जिसमें बोहरा समुदाय के मुस्लिम अपनी उस मान्यता का अनुकरण कर रहे थे जिसमें भोजन का एक दाना भी बर्बाद करना मना होता है ।

  • एक विडियो जिसमें सैकड़ों इटालियन कोरोना महामारी के दौर में एक साथ प्रार्थना करते दिख रहे हैं।

तथ्य – असल में ये विडियो पेरू का है और कोरोना महामारी शुरू होने के काफ़ी पहले का है।

  • एक विडियो जिसमें एक नंगा आदमी अपने सिर और हाथों से खिड़कियों के शीशे तोड़ रहा है और हॉस्पिटल स्टाफ से बद्तमीज़ी भी कर रहा है! इसे जिसे तब्लीगी जमात का बताया गया।

तथ्य – एक पाकिस्तान के एक मेंटल हॉस्पिटल का विडियो है जिसमें दिमाग़ी तौर पर परेशान एक व्यक्ति ऐसा कर रहा है ।

  • राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी का एक विडियो जिसमें उन्हें पुलिस सिक्यूरिटी चेक कर रोका जा रहा है क्योंकि वो कोरोना लॉकडाउन को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

तथ्य – यह विडियो दिसंबर 2019 का है जिसमें ये दोनों सीएए के ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट में मारे गए लोगों के परिवारों से मिलने जा रहे थे ।

  • एक विडियो जिसमें एक समुद्र तट पर कुछ लाशें पड़ी हैं और कहा जा रहा है कि कुछ देश अपने कोरोना रोगियों की लाशों को समुद्र के किनारे फेंक रहे हैं. और आगे सलाह दी जा रही है कि लोग समुद्री जीव न खायें ।

तथ्य – ये विडियो 2014 का है जब कुछ अफ़्रीकी प्रवासी मारे गए थे जब वो यूरोप में समुद्री मार्ग से जा रहे थे।

  • एक व्हाट्सऐप मेसेज जिसमें दावा किया गया कि नीम्बू और खाने वाले सोडा के मिक्सचर से कोरोना वायरस तुरंत मर जाता है ।

तथ्य – अभी तक ऐसा कोई भी वैज्ञानिक शोध नहीं आया है जो ये दावा करता हो।

  • एक विडियो जिसमें कहा जा रहा है कि 5 जी टेक्नोलॉजी लोगों को बीमार बना रही है, उनका इम्यून सिस्टम बर्बाद कर रही है इसलिए चीन के लोग कोरोना के महामारी में 5 जी टावर तोड़ रहे हैं ।

तथ्य – ये एक पुरानी विडियो है हांगकांग की जिसे कोरोना से जोड़ कर सनसनी फैलाने की कोशिश की जा रही है।

  • एक व्हाट्सऐप फॉरवर्ड जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लॉकडाउन के लिए प्रोटोकॉल जारी किया था।

तथ्य – विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ख़ुद इस ख़बर को आधारहीन बताया है।

अफ़वाहों से बचें! ये आपको सांप्रदायिक ज़ोम्बी बना रही हैं! न्यूज़ चैनलों पर भी आँख मूदकर भरोसा न कर लें, फेक न्यूज़ फ़ैलाने मे इनका भी बहुत अधिक हांथ है। हम एक फासिज़्म के आहट लेते हुए दौर से गुजर रहे हैं। गोएबेलिज़्म फासिज़्म का एक अनिवार्य तत्त्व है। कोई भी सन्देश बिना पुष्टि के न तो फॉरवर्ड करे और न ही किसी के साथ सोशल मीडिया पर शेयर करें।

( विजय शंकर सिंह )