युवा दिवस विशेष: मानसिक बोझ से खुद को कैसे मुक्त रखें युवा

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आज राष्ट्रीय युवा दिवस है। इस दिन शुभकामनाएं देने के बजाय जो सबसे आवश्यक बात मैं आपको करना चाहती हूँ और जो आप सभी को जानना चाहिए वो है:

भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है आत्महत्या के लिए। और इन आत्महत्याओं में सबसे बड़ा आंकड़ा इस देश के युवा सांझा करते हैं 15 से 39 आयु वर्ग के लोग।

आत्महत्या कारण सामाजिक, सांस्कृतिक, पारिवारिक उत्पीड़न के हैं। अवसरों, रोज़गार की नितांत कमी के हैं, स्वतंत्रता की कमी के हैं, अभिव्यक्ति के कमी के हैं। इन कारणों के लिए हम,आप, हमारा समाज, संस्कृति, परिवार, सरकारें, सभी जिम्मेदार हैं।

इस राष्ट्रीय युवा दिवस पर भारतीय युवाओं के लिए कुछ बातें कहूँगी:

  1. आपके उत्थान के लिए वृद्ध नहीं आयेंगें। ना समझेंगे। आपको अपना उत्थान स्वयं करना होगा। जो वृद्ध और बड़ी आयु वर्ग के हैं उनके संघर्ष, परिस्थितियाँ, मानसिक गुलामी, व्यावहारिक समस्याएं अलग थीं। समय तेजी से बदलता रहा है। वहाँ से उद्धरण ना लें, ना ही मानक। अपनी शिक्षा से, विकसित मानस और विवेक से नये मानक, नयी भूमिकाएं, नये विचार, नये नेतृत्व, नये हल निकालिये। भूतकाल के मरहम आज के घावों पर काम नहीं करेंगें। बेड़ियों को तोड़िये। और तोड़ने पर कदापि लज्जित मत होईये। अपना विवेक और इच्छाशक्ति सुदृढ बनाईये। आत्मविश्वास रखिये।
  2. अपनी व्यावहारिक समस्याएं रेखांकित करिये। अपने समाज, परिवार, धर्म और जाति से बाहर निकल कर दृष्टा बनकर देखिए स्वयं को। अपनी और अपने भविष्य की व्यावहारिक आवश्यकताओं को पहचानिए। और पहचानने के बाद उसे साधिये। इतिहास और भूतकाल में विशेषकर युवाओं के लिए कुछ नहीं रखा। वहाँ से जितनी जल्द हो सके निकलने और निकलकर तेज़ दौड़ भविष्य की तरफ लगाने में ही आपकी भलाई है।
  3. किसी किस्म के सामाजिक आर्थिक दिखावे में मत पड़िये। आपके लिए ऐसे दिखावों का कोई भविष्य में लाभ नहीं। समय बदल रहा है तेजी से। इन दिखावों का स्टेटस सेट करने का मतलब तब तक था जब लोग अपने गाँव घर तक रह जाते थे। आज जब आप अपने शहर कस्बे से बाहर आते हैं तो आपने कितना कब किसके सामने दिखावा किया व्यर्थ हो जाता है। आपको कोई वैसे नहीं देखता ना ही किसी को फर्क पड़ेगा। इस तरह के दिखावे और उनसे पनपे सामाजिक संबंधों में लाभ भौगोलिक सीमाओं तक ही सीमित हैं।
  4. पहले का समय अलग था। अब अकेलेपन की भीड़ है। अपने शहर कस्बे गाँव से एक बार निकलने वाला हर इंसान, हर परिवार अकेला है चाहें वो कितनी भी आत्म प्रवंचना में रहे। सत्य यह है कि कुछ गिने चुने लोगों से आत्मीय और स्थिर संबंध रहते हैं। अगर आप व्यवसाय या आर्थिक स्वतंत्रता के लिए कहीं नहीं निकले हैं तो भी अपने खुद के घर गाँव में भी आपके संघर्ष, आपकी समस्याएं दूसरे लोग नहीं समझ पायेंगें। अगर समझने का प्रयास भी किया तो अनुभव नहीं कर पायेंगें। जलते यथार्थ को दूर से पानी की फुहार देंगे। ऐसे में आपके लिए बहुत आवश्यक है कि नियति के एकाकीपन को सम्मानीय स्वीकृति दीजिए और उसी प्रकार की योजना और मित्र बनायें। एकाकीपन बौद्धिक विकास से पनपी त्रासदी है।
  5. आंकड़ों और तथ्यों पर लड़ें। कहानियों और भावनाओं पर नहीं। दिखावे और कौन क्या कहेगा में मत जाइये। अपने व्यक्तिगत निर्णय, व्यावसायिक निर्णय अपने मानसिक स्वास्थ्य और आर्थिक स्वतंत्रता को उद्देश्य बना कर करिये।
  6. रोज़गारपरक शिक्षा पर ध्यान दें। स्टेटस सेट करने या समाज के कहे अनुसार पदों, व्यवसाय, कामों को ऊँचे नीचे में मत आंकिये। आपका जीवन है। रोटी आपको जुटानी है।
  7. सरकारों और राजनीतिक दलों के रूमानी प्रेम पाश और सम्मोहन से बाहर निकलिये। बाहर निकल कर उन्हें केवल सेवा और तंत्र की एक यांत्रिक इकाई की तरह देखना शुरू करिये। हो सके तो शिक्षित, बौद्धिक रूप से विकसित, संयमित, आधुनिक और विकासशील विचारों का युवा नेतृत्व चुनें।
  8. अपनी दिनचर्या देखिये। आपका सबसे अधिक समय कहाँ व्यर्थ हो रहा है? इंटरनेट में? रिश्तेदारी में? आपकी दिनचर्या और रोज़ की आदतें आपका कल बनाती हैं। इस समय पूरा युवा भारत देश इंटरनेट और मुफ्त या सस्ते सोशल मीडिआ की लत में बेसुध हो कर सही मुद्दों और समस्याओं को भूलना चाहता है। ताकि उन्हें एंग्ज़ायटी कम रहे। सत्य और कठिन प्रश्नों से दूर स्वयं को बेहोश रखने का ये एक साधन है। आज अगर एक दिन को भी इंटरनेट बंद हो जाये पूरे देश में, तो मैं दावे के साथ कह सकती हूँ सारे युवा नशे से जाग जायेंगें और तुरंत पथरीली जमीन पर गिर पड़ेंगें जहाँ नंगे प्रश्न होंगें बिन लाग लपेट के। सोचिए आपका ये बेसुध रहना किसके काम आ रहा है। आपके तो नहीं। जिनके पास रोटी के पैसे नहीं वो भी नेट का रिचार्ज रखते हैं।
  9. करोड़ों में से एक सफलता की कहानी जैसा कि किसी के सिविल सर्विस में सफल हो जाने पर सामने आती है। उस पर गर्व मत करिये। बल्कि उल्टा यह व्यवस्था और देश के लिए लज्जित होने की बात है कि बाकी हजारों लाखों हारे, दशकों से प्रयास करते योग्य, मेहनती युवाओं को योग्य अवसर और संसाधन नहीं मिलें हैं। उन युवाओं को जिन्होनें पैदा होते ही अपने सर मोटी मोटी किताबों में डाल दिये थे। जो केवल सांख्यिकीय अवसरों और दुर्भाग्य के शिकार हैं। जिन पर सामाजिक, पारिवारिक अपेक्षाओं का अवास्तविक, अन्यायपूर्ण दबाव रहा हमेशा। ये आपको समझना है कि इससे निकलने का क्या रस्ता है। अपनी सफलता और असफलता, प्रसन्नता, मानसिक शांति की परिभाषा सिर्फ और सिर्फ आपको लिखनी है। बचपन से लेकर आजतक किये गये तगड़े मनोवैज्ञानिक कंडिशनिंग के हिसाब से मत गढ़िये ये परिभाषायें, ना ही गढ़िये अपनी ज़िंदगी।

खुद को बचाईये। मकड़जाल से, चूहा दौड़ से, गिरते मानसिक स्वास्थ्य से, उत्पीड़न से, ढकोसलों से, अंधविश्वासों से, रूढ़ीवादिता से, अवैज्ञानिक सोच से, छूटते रोज़गार से, खुद के लिए अवास्तविक अपेक्षाओं से, समय की बरबादी के साधनों, प्रयोजनों से।

खुल कर साँस लीजिए। आँखें खुली रखिये। तिल तिल मरिये मत।ज़िंदा दिख रहे हैं तो असल में ज़िंदा रहिये। बहुत ताकतवर हैं आप। आप कुछ भी कर सकते हैं। अपना उत्थान खुद करिये।

-साक्षी सिंह ‘साखी की पाती’