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ये पत्रकारिता है या विपक्ष ट्रोलिंग ?

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जज लोया, जोकि भारतीय न्यायव्यवस्था के अंग थे. उनकी मृत्यु  जिस तरह से हुई. उस पर सवाल उठे. ऊँगलियाँ अमित शाह की तरफ थीं. पर आप सोच सकते हैं, की तकलीफ में में कोई और था.
दरअसल भारतीय मीडिया में पत्रकारिता के नाम पर सत्ता, भाजपा और दक्षिणपंथी समूहों के लिए अघोषित प्रवक्ता का कार्य कर रहे पत्रकार और एंकर उस वक़्त खुश हो जाते हैं. जब सुप्रीम कोर्ट जज लोया के मामले में जांच करने से इंकार कर देता है.
वैसे तो ये सिर्फ एक खबर थी, जिसे खबर की तरह दिखाया जा सकता था. पर एक पत्रकार जो हर वक़्त देश को हिन्दू मुस्लिम बहस में डुबोने की कोशिश में लगा रहता है. जिसकी कोशिश मुख्य मुद्दों पर सरकार से सवाल करने की जगह विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा करने की होती है.
जज लोया पर सुप्रीम कोर्ट ने जो टिपण्णी की, उसके बाद रोहित सरदाना के ट्वीट के शब्द देखिये. क्या यह भाषा आपको पहचानी सी नज़र नहीं आ रही. आप सही समझ रहे हैं, यह भाषा बिलकुल भाजपा आईटी सेल की भाषा की तरह ही है.
यह भाषा ऑनलाइन ट्रोलिंग के मापदंडों को पूरा करती भाषा है, ऐसा लग रहा है जैसे कोई भक्त प्रजाति का महामानव ये कमेन्ट कर र रहा है. जो अपने राजनीतिक इष्टदेव के प्रति अपनी आस्था को प्रकट करने का उच्चतम एवं श्रेष्ठ माध्यम है.
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इस स्क्रीनशॉट को देखिये, यही नहीं इन महोदय की भाषा कितनी ज़हरीली है, यह देखने के लिए इनके ट्विट्टर अकाउंट को चेक कीजिए. पल भर के लिए आप अपने दिमाग से ये निकाल दीजिये, की आप की प्रोफ़ाइल देख रहे हैं. आप यकायक ये महसूस करेंगे की आप किसी नफ़रत फ़ैलाने वाले शख्स की प्रोफ़ाईल पर हैं.
खैर आप देखिये और फैसला कीजिए, कि आखिर कोई इंसान कैसे समाज में ज़हर फैला रहा है. जबसे ये महोदय एनकरिंग कर रहे हैं, इनके तब से यही हाल हैं. पहले इस तरह का कचरा ज़ी-न्यूज़ के ज़रिये फैलाया जाता था. पर ज़ी–न्यूज़ की पहचान संघ और भाजपा के अघोषित समर्थक चैनल के रूप में होने लगी. तो महोदय देश को बेवकूफ़ बनाने के लिए आज तक चले आये हैं.