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वो पूछते है हमसे की ग़ालिब कौन है

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पुरानी दिल्ली गली कासिम जान की तंग गलियों से निकलता रास्ता और उसमें लंबी टोपी सर पर लगा कर कमर को झुकाएं चलने वाले मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग खान जिनका तखल्लुस “ग़ालिब” था,और सारी दुनिया इन्हें “मिर्ज़ा ग़ालिब” के नाम से जानती है इनकी पैदाइश 27 दिसंबर के दिन हुई थी।

“वो पूछते है हमसे की ग़ालिब कौन है अब तुम ही बतलाओ की बताएं क्या”

मिर्ज़ा ग़ालिब की शख्सियत और उनकी पहचान को अगर उन्ही के शेर से बताया जाए तो यही शेर उनकी शख्सियत पर और उनके रुबाब भरे लहजे पर बिल्कुल सटीक बैठता है,मिर्ज़ा ग़ालिब की पैदाइश आज ही के दिन हुई,वो 1797 को उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे जहां से वो दिल्ली आ गए।
मिर्ज़ा ग़ालिब की शख्सियत उनकी शायरी ही से बयान होती है जिसमे दर्द है,रुमानियत है मोहब्बत है और बयान है हर एक चीज़ का जो उन्होंने महसूस की और हासिल की,फिर चाहे उनकी औलादो के इन्तेक़ाल की खबर हो या अपने हाल पर हो मिर्ज़ा ग़ालिब ने हर एक मौके पर शायरी की है

“बाज़ीचा ए अतफाल है दुनिए मेरे आगे होता है शबो रोज़ तमाशा मेरे आगे” बाज़ीचा ए अतफाल यानी बच्चों के खेलने का मैदान.

मिर्ज़ा ग़ालिब एक शख्सियत एक पहचान,विरासत और शायरी जो पुरानी दिल्ली की उन गलियों से निकली जहां से बादशाहत से लेकर अंग्रेजों का दौर का गुज़रा और गुज़रतें हुए उसी में मिर्ज़ा ग़ालिब का वक़्त भी गुज़रा,यही से मिर्ज़ा नोशा की शायरी धीरे धीरे बादशाह बहादुर शाह जफर तक पहुंची और वो वहां मुख्य शायर भी बने।
मगर ये भी हक़ीक़त है कि मिर्ज़ा ग़ालिब की अहमियत को मिर्ज़ा ग़ालिब के रहते हुए किसी ने नही समझा,हद तो ये हुई कि मिर्ज़ा ग़ालिब का “दीवान” जो आज उर्दू और फ़ारसी जानने और समझने वालों के लिए बेशकीमती है उस वक़्त छापे जाने से भी मना कर दिया गया था,लेकिन आज भी मिर्ज़ा ग़ालिब की पैदाइश के 220 साल बाद भी दुनिया उन्हें पढ़ती है तो बस उन्ही में डूब जाती है।
आज मिर्ज़ा ग़ालिब हमारे बीच नही है,मगर मिर्ज़ा ग़ालिब अपने लिखे से हमेशा के लिए खुद को पूरी दुनिया के बीच ज़िंदा रख गए और शायरी की दुनिया मे ऐसा नाम कर गए कि अब उर्दू का नाम आये और ग़ालिब का ज़िक्र न हो तो सब कुछ अधूरा ही सा लगता है।
मिर्ज़ा ग़ालिब को याद करना जैसे कुछ सीख लेना है। लेकिन ग़ालिब तो बस एक ही है… 27 दिसंबर को  गूगल भी उन्हें याद कर रहा था, और सारी दुनिया भी क्योंकि…

“है और भी दुनिया मे सुखनवर बहुत अच्छे कहते है कि ग़ालिब का है अंदाज़ ए बयान और”