विंग कमांडर अभिनंदन की सुरक्षित वापसी तक सभी राजनीतिक तमाशे बंद हों

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सीमा पर तनाव है, लगता है कहीं चुनाव है यह राहत इंदौरी के एक शेर का भावार्थ है। पर यह आज सही साबित हो रहा है। कल पीएम ने खेल इंडिया एप्प ( Khel India App ) का उद्घाटन किया और आज  28 फरवरी को वे दुनिया की सबसे बड़ी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ( World’s Biggest Video Conferencing )का दावा करने वाले एक तमाशे का उद्घाटन करने जा रहे हैं।
अगर सामान्य युद्ध के बजाय केवल तनातनी होती तो ऐसे आयोजन में कोई आपत्ति नहीं होती। क्योंकि पाक से तो कश्मीर (Kshmir ) मामले में सदैव तनातनी रहती ही है। पर आज स्थिति सामान्य नहीं है। 14 फरवरी को पुलवामा हमले ( Pulwama Attack ) के बाद 26 फरवरी को हमारी वायुसेना ( Indian Air force ) ने बालकोट (Balakot ) में बमबारी की। न्यूज़ चैनलों की मानें तो लगभग 300 से 400 लोग मारे गए हैं और जैश का सारा ट्रेनिंग सेंटर ध्वस्त कर दिया गया है। हम उत्सवजीवी भारतीय जश्न में डूब गए। पर उस नुकसान की, 300 के मारे जाने की संख्या की उत्पत्ति कहां से हुई, यह जाने बगैर हमने दुंदुभिवादन शुरू कर दिया।
पाकिस्तान में भी इसकी प्रतिक्रिया हुयी। पहले तो उसने यह कहा कि टारगेट से एक किलोमीटर दूर भारतीय वायुसेना ने बमबारी की और नुकसान पर वह चुप रहा। पर अमेरिकी न्यूज़ एजेंसी रायटर और बीबीसी ने खुलासा किया कि एक आदमी घायल हुआ है, और बमबारी हुयी है। फिर उसने भारतीय और पाकिस्तानी दोनों सरकारों का जो कथन है उसे उद्धरित कर दिया।  कितने आदमी मारे गये हैं, यह बात अभी भी 300 बताई जा रही है। पर यह संख्या किसी अधिकृत सोर्स द्वारा बतायी नहीं गयी है। इस तरह के ऑपरेशन में नुकसान और मृतकों का आकलन मुश्किल से ही हो पाता है।
आज 27 फरवरी को पाकिस्तानी ने दावा किया कि उसने एक पायलट विंग कमांडर अभिनंदन वर्धन ( Wing commander Abhinandan Varthan ) को पकड़ लिया है और हमारा एक विमान नष्ट कर दिया है। दोपहर तक तो इस खबर पर संशय बना रहा पर बाद में हमारी सरकार ने भी इसे मान लिया कि यह बात सही है। फिर तो पाक मीडिया ने अभिनंदन से जुड़ी फोटोग्राफ और वीडियो क्लिप्स दिखाने शुरू कर दिये। अब यह कन्फर्म है कि हमारा एक अफसर पाक के कब्जे में हैं। अभिनंदन एक फौजी के पुत्र हैं। उनके पिता, एयर मार्शल एस वर्तमान, 2014 में सेवा निवृत्त होने के पूर्व,  ईस्टर्न एयर कमांड के एयर ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ रह चुके है।
शुरू में अभिनंदन को लेकर जो विडियो और फोटोग्राफ आये थे वे बेहद आक्रोशित करने वाले थे। पर अभी एक खबर लाहौर के अखबार द डान ( Down News Lahore) के हवाले से शेयर हुयी है जिसमे अभिनंदन ठीक दिख रहे हैं, पर यह वीडियो कितना विश्वसनीय है यह अभी कहना मुश्किल है। हमारी सरकार का विदेश मंत्रालय निश्चित ही अभिनंदन को सुरक्षित वापस लाने और उन्हें यातना न दिये जाने के लिये कूटनीतिक रूप से भी प्रयासरत होगा। अतः इस प्रकरण पर अभी कुछ कहना उचित नहीं होगा। बस सरकार से यह अनुरोध और अपेक्षा की जाय कि वह अभिनंदन को सुरक्षित स्वदेश वापस ले आये।
अभिनंदन का पाकिस्तान की सेना के कब्जे में होना हमारे लिये बेहद चिंताजनक खबर है। अब हमें अधिक परिपक्वता दिखाना होगा और यह परिपक्वता कूटनीतिक मोर्चे पर भी दिखानी होगी और सैन्य ऑपरेशन में भी। इस घटना के बाद पाकिस्तान की तरफ से दो प्रतिक्रियायें आयी हैं। पहली है पाकिस्तान के पीएम इमरान खान  (Imran khan) का शांति और बातचीत की पेशकश और दूसरी उनका यह वीडियो जारी करके सबको बतलाना कि अभिनंदन स्वस्थ और सुरक्षित हैं। इमरान खान के बयान पर, भारत की कोई प्रतिक्रिया अभी नहीं आयी है।
लेकिन अभिनंदन की पाक सेना द्वारा गिरफ्तारी की घटना से पाकिस्तान की सौदेबाज़ी करने की स्थिति कूटनीतिक मोर्चे पर थोड़ी मज़बूत पायदान पर है। वह अभिनंदन को छोड़ने के एवज में हो सकता है भारत से बातचीत की पेशकश मांगे या कुलभूषण जाधव के बारे में कोई नयी बात रख दे। यह केवल एक अनुमान है। आगे क्या होता है यह अभी नहीं कहा जा सकता है। अब यह हमारे कूटनीतिक कौशल पर निर्भर है कि कैसे हम इस नयी समस्या से पार पाते हैं। आज ही सभी विरोधी दलों ने एक स्वर से अभिनंदन को सुरक्षित वापस लाने के लिये सरकार से मांग की है। इस मुद्दे पर सभी सरकार के साथ हैं कि वह अभिनंदन को सुरक्षित लाने के उपाय करे।
इन सब गहमागहमी के बीच कल सत्तारूढ़ दल का एक और तमाशा होने जा रहा है। यह तमाशा है दुनिया की सबसे बडी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का। बीजेपी के ट्विटर हैंडल पर यह दावा किया गया है कि यह विश्वविजयी, अश्वमेधीय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का शुभारंभ प्रधानमंत्री जी कल करेंगे। आपत्ति न तो इस राजनीतिक आयोजन पर है और न ही इसके कल के उद्घाटन पर, बल्कि आपत्ति है देश की संकटपूर्ण स्थिति, सीमा पर तनाव, औऱ हमारे एक अफसर को पाकिस्तान के कब्जे में होने के बावजूद प्रधानमंत्री का इस आयोजन का शुभारंभ करना। अगर किन्ही कारणों से यह राजनीतिक उद्घाटन टलना संभव न हो तो, यह उद्घाटन पार्टी के अध्यक्ष भी कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री के समक्ष इस समय सबसे बड़ी चुनौती है कि वे इस अशनि संकेत से देश को उचित नेतृत्व प्रदान कर के बाहर निकालें। उरी घटना के बाद जब पहली सर्जिकल स्ट्राइक हुयी थी तो पाकिस्तान, सोते से पकड़ा गया था और इस बार भी यही हुआ । यह सैन्य कुशलता और चपलता प्रशंसनीय है।  लेकिन इस ठगे से महसूस करने की बडी प्रतिक्रिया पाकिस्तान में हो सकती है। पाकिस्तान में भी वहां की जनता का पाक सरकार पर भी कुछ न कुछ करने का मनोवैज्ञानिक दबाव भी होगा और उससे बड़ा दबाव वहां के आतंकी संगठनों और सेना का भी होगा। यह दबाव पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और वहां के सैन्य प्रवक्ता मेजर जनरल गफूर के 26 तारीख के बाद आये कुछ बयानों में देखा जा सकता है।
पाकिस्तान में सत्ता राजनीतिक तंत्र के पास नहीं बल्कि सेना के पास है। वहां की सेना हमारी सेना की तरह प्रोफेशनल सेना नही बल्कि एक कारोबारी सेना की तरह है। वह राजनीतिक सत्ता को हर समय पलटने की जुगत में रहती है। पाक सेना ने 1948, 1965, 1971 और करगिल की हार भूली नहीं है और वह यह भी जानती है कि प्रत्यक्ष युध्द में वह जीत नहीं सकती है इसीलिए वह प्रछन्न युद्ध चलाती रहती है। उसके संसाधन ज़रूर इस प्रच्छन्न युद्ध मे लगते हैं पर उसकी जनशक्ति का बहुत कम नुकसान इस पोशीदा युद्ध मे होती है। जैश, तालिबान, जमात उद दावा आदि सारे आतंकी संगठन पाक सेना की अवैध संतान हैं और धर्मिक कट्टरता पर पलते हुए मिथ्या जिहाद की लालच में वे पाकिस्तान का अघोषित एजेंडा पूरा करने में लगे रहते हैं।
इसके विपरीत हमारी सेना और केंद्रीय पुलिस बलों का एक अच्छा खासा डिप्लॉयमेंट इन मजहबी और जिहादी आतंकियों से निपटने में तैनात है। कश्मीर में हमारे सुरक्षा बलों के संसाधनों के साथ साथ जनशक्ति भी गंवानी पड़ती है। यह सिलसिला 1987 से चल रहा है। पर इधर यह बढा है। पठानकोट, उरी और पुलवामा हमले सीधे तौर पर हमारी सेना और पुलिस बल पर हुये हमले थे । इन सब परिस्थितियों को देखते हुए सरकार को अपने कदम उठाने हैं और प्रभावी कार्यवाही करना है।
युद्ध उन्माद से नहीं लड़ा जाता है. युद्धों में कोई नहीं जीतता है। जो हारता है वह मर जाता है और जो जीतता है वह सबकुछ हार जाता है। जीतते हैं, हथियारों के सौदागर, बड़े बड़े सत्ता से जुड़े ठेकेदार, युद्ध और युद्धोन्माद के उफान पर सवार राजनेता, और मरते हैं सीमा पर तैनात जवान और फौज के जांबाज अफसर, और कुछ हद तक उजड़ता है देश और नुकसान उठाती है, देश की जनता और बाधित होती है गति समृद्धि की। महाभारत के महायुद्ध से लेकर आज तक हुये युद्धों के बाद अगर क्या खोया क्या पाया की समीक्षा की जाय तो यही निष्कर्ष निकलेगा।
पर जब युद्ध और युद्ध से अधिक युद्धोन्माद ठाठें मार रहा हो, तो यह बात बारूदों के शोर में न सुनायी देगी और न ही समझ मे आएगी। युद्ध केवल आखिरी विकल्प है। यह किसी भी समस्या का समाधान नहीं है बल्कि यह एक समस्या है । एक जटिल समस्या। युद्ध के विरुद्ध खड़े होना क्लीवता नहीं है। ड्रॉइंग रूम और शयन कक्षों में बैठ कर चाय की चुस्कियों के बीच स्मार्ट फोन्स की कीबोर्ड से युयुत्सु भाव उपजाना, कट्टरता फैलाना और युद्धोन्माद का एक छद्म वितान तान कर आराम से अफवाहें फैलना, क्लीवता है। कायरता है।
मीडिया चाहे भारत की हो या पाकिस्तान की दोनों ही में जो यह प्रोपेगैंडा युद्ध हो रहा है उसे न देखिये और देखिये भी तो जब तक सरकार के प्रवक्ता का कोई अधिकृत बयान न आ जाय तब तक उस पर न तो विश्वास कीजिए और न ही अफवाह फैलाइये। यह अफवाहबाज़ ऐसा कर के देश का नुकसान ही करेंगे।
सरकार, और सेना के पास सभी जरूरी सूचनाएं हैं और वे किसी भी आसन्न स्थिति से निपटने के लिये सक्षम और प्रशिक्षित हैं। युद्धोन्माद फैला कर उन पर कोई मनोवैज्ञानिक दबाव न बनाएं। राजनेता न चाहते हुये भी ऐसे मनोवैज्ञानिक दबाव में आ भी जाते हैं। युद्ध अगर लड़ा भी जाता है तो वह उन्माद, घृणा और पागलपन से नहीं बल्कि धैर्य, साहस, रणनीति और कौशल से। यह एक कला और विज्ञान भी है। कला और विज्ञान का लक्ष्य मनोबल से तो पाया जा सकता है पर उन्माद और भड़काऊ पागलपन से नहीं।
युद्ध एक विकल्प है। पर तभी जब और कोई विकल्प शेष न रह जाय तब। युद्ध आतंकवाद को नष्ट नहीं कर सकता। वह उसे तात्कालिक तौर पर दबा तो देता है पर साथ ही अनेक समस्याएं भी उत्पन्न कर देता है। जो युद्ध लड़ते नहीं हैं वे युद्ध का जश्न मनाते हैं, और जो युद्ध लड़ते हैं वे इसका जश्न नहीं मनाते हैं। क्योंकि उन्हें इसकी विभीषिका का अंदाज़ा है।

© विजय शंकर सिंह