क्या अब जनहित याचिकाओं को कमज़ोर किया जायेगा ?

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अर्णब गोस्वामी के केस के माध्यम से निजी आज़ादी की मुखरता से बात करने वाली सुप्रीम कोर्ट अब संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत दायर होने वाली याचिकाओं से लगता है असहज महसूस होने लगी है। सीजेआई एसए बोबडे ने कहा है कि वे अब अनुच्छेद 32 के अंतर्गत दायर याचिकाओं को हतोत्साहित करने की कोशिश करेंगे।

जस्टिस कृष्ण अय्यर, जस्टिस एनएच भगवती जैसे जजो ने, जनहित याचिकाओं की परंपरा शुरू कर के सुप्रीम कोर्ट को जनता के लिये सुलभ बनाया और जनहित याचिकाओं ने जन अधिकारों की नयी इबारत लिखी, पर अब यही अनुच्छेद जो जनता को अपने मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिये सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका दायर करने का संवैधानिक अधिकार देती है, आज सुप्रीम कोर्ट के लिये असहज बन गया है। क्यों ?

 

अनुच्छेद 32 क्या है ?

अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचारों का अधिकार): यह एक मौलिक अधिकार है, जो भारत के प्रत्येक नागरिक को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त अन्य मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करने का अधिकार देता है। इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में न्यायालय की शरण ले सकता है।

डॉ. अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद बताते हुए कहा था कि इसके बिना संविधान अर्थहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय है। सर्वोच्च न्यायालय के पास किसी भी मौलिक अधिकार के प्रवर्तन के लिये निदेश, आदेश या रिट जारी करने का अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) रिट, परमादेश (Mandamus) रिट, प्रतिषेध (Prohibition) रिट, उत्प्रेषण (Certiorari) रिट और अधिकार पृच्छा (Qua Warranto) रिट जारी की जा सकती है।

यह सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार है। इसके तहत एक पीड़ित नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है। हालाँकि यह सर्वोच्च न्यायालय का विशेषाधिकार नहीं है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों को भी मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये रिट जारी करने का अधिकार दिया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई निर्णयों में कहा है कि जहाँ अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के माध्यम से राहत प्रदान की जा सकती है, वहाँ पीड़ित पक्ष को सर्वप्रथम उच्च न्यायालय के समक्ष ही जाना चाहिये।

वर्ष 1997 में चंद्र कुमार बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि रिट जारी करने को लेकर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय दोनों के अधिकार क्षेत्र संविधान के मूल ढाँचे का एक हिस्सा हैं।

( विजय शंकर सिंह )