क्या सीएम योगी पहली बार लड़ेंगे विधानसभा चुनाव?

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उत्तर प्रदेश की सत्ता पर पिछले साढ़े 4 सालों से काबिज़ भाजपा पूरी तरह से चुनावी मोड़ में है। वैसे भी भाजपा चुनावों से एक साल पहले से ही चुनावी रणनीति पर कार्य करते हुए बूथ स्तर की तैयारी करती ही है।

लेकिन उत्तर प्रदेश की सत्ता की अहमियत को भाजपा समझती है इसलिए यहां वो कमी छोड़ना नहीं चाहती है,क्योंकि 2024 के आने वाले चुनाव भाजपा के लिए महत्वपूर्ण होने वाले हैं,और यूपी हमेशा से लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना ही जाता है।

अगर संगठन से लेकर बूथ लेवल की तैयारियों के अलावा भी नेतृत्व को लेकर संतुष्ट भाजपा जो योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में इस बार चुनाव लड़ने जा रही है, इस बार एक नया प्रयोग करने जा रही है,जो बीते 15 सालों से उत्तर प्रदेश में हुआ नही है,क्या है ये नया प्रयोग, आइये जानते हैं।

विधानसभा चुनाव लड़ेंगे यूपी के दिग्गज?

आज तक की खबर के मुताबिक़ भारतीय जनता पार्टी के आलाकमान के सूत्रों से निकल कर ये बात सामने आई है कि पार्टी चाहती है इस बार प्रदेश के दिग्गज भी विधानसभा का चुनाव लड़ें और ज़मीनी स्तर पर उतर कर मैदान में और ज़्यादा मेहनत करते हुए कार्यकर्ताओं में और ज़्यादा जोश भरें।

इन दिग्गज नेताओं में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर दोनों उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह जैसे पार्टी के दिग्गज नेता बताएं जा रहे हैं,और अगर ये फैसला अमल में लाया जाता है तो हो सकता है कि रणनीति के तहत चुनाव हार चुके पूर्व सांसद प्रत्याशियों को भी मैदान में उतारा जा सकता है।

कई मीडिया चैनल पर जब ये खबर चली तो मामला हाइलाइट हो ही गया और इसी को ध्यान में रखते हुए भाजपा के अयोध्या से विधायक ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपनी सीट से लड़ने का प्रस्ताव भी दे दिया है।

अयोध्या के वर्तमान विधायक वेद प्रकाश गुप्ता से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा है कि “मुख्यमंत्री अगर अयोध्या से चुनाव लड़ेंगे तो यह हमारे और अयोध्यावासियों के लिए सौभाग्य की बात होगी।’ उन्होंने कहा कि हम यह सीट मुख्यमंत्री के नाम पर छोड़ देंगे। उन्होंने कहा कि संतों-महंतों के लिए यह सौभाग्य की बात है। वैसे भी योगी आदित्यनाथ अयोध्या को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। अयोध्या में हर दिन हो रहे विकास कार्य इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री अयोध्या के विकास को लेकर गंभीर हैं।

क्यों दिग्गजों को चुनाव लड़ाना चाहती है भाजपा?

दरअसल भाजपा इस तरह से एक पंथ दो काज वाली मिसाल को सही साबित कर रही है, इस वक़्त मुख्यमंत्री और दोनों ही उपमुख्यमंत्री एमएलसी हैं और इसके अलावा संगठन के कई बड़े नाम जिनमे प्रदेश अध्यक्ष से लेकर और भी नाम हैं उन्हें विधानसभा के ज़रिए सदन में पहुंचा कर भाजपा एमएलसी में जगह बनाना चाहती है ।

इन बची हुई एमएलसी की सीटों पर उन कार्यकर्ताओं को दावेदार बनाया जाएगा जो लंबे समय से संगठन में हैं और उन्हें पार्टी में बड़ा पद नहीं मिल पाया है और इस तरह से पार्टी को और ज़्यादा मज़बूती भी मिलेगी।

दूसरी बात जब मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री या प्रदेश अध्यक्ष विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे तो कार्यकर्ता भी जोश से भरेगा और ऐसी सीटों पर पार्टी के जीतने की उम्मीदें भी बढ़ जाएंगी, अब ऐसी स्थिति में विपक्षी दलों के लिए सत्ता हासिल करना और मुश्किल हो जाना तय है।

15 सालों से कोई भी विधायक मुख्यमंत्री नहीं बना है।

2007 में मायावती मुख्यमंत्री बन कर सत्ता में आई थीं तब उन्होंने एमएलसी के ज़रिए ही सत्ता तक पहुंचने का काम किया था और 2012 में कन्नौज से सांसद अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया था,बाद में वो इस्तीफा दे कर एमएलसी के लिये चुन लिए गए थे।

वहीं जब भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई तो योगी आदित्यनाथ गोरखपुर लोकसभा से सांसद थे और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य फूलपुर के सांसद थे,और फिर बाद में एमएलसी बनते हुए दोनों ही नेताओं को अपना कार्यभार संभाला था।

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