यूपी में चुनाव होने में अभी क़रीबन 6 महीने का वक़्त है,लेकिन राजनीतिक दलों की तैयारियां बता रही हैं कि चुनाव 6 हफ़्तों बाद ही है,इसकी सबसे बड़ी वजह है कि यूपी का आकार और क्षेत्र बहुत बड़ा है और इसके अलावा उत्तर प्रदेश का रॉल भी देश की राजनीति में बहुत बड़ा है,देश के प्रधानमंत्री खुद बनारस लोकसभा से दूसरी बार सांसद हैं।
इसके अलावा भी उत्तर प्रदेश ने भी बीते 2014,2017 और 2019 के चुनावों में अपना रिजल्ट बहुत ईमानदारी से सुना दिया है जिसमे भाजपा को यूपी वालों ने एक मात्र पसंद बना कर पेश किया है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या फिर से विधानसभा 2022 चुनावों में भाजपा सत्ता में वापिस आएगी?
भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए लगातार सपा भरपूर हमलावर होते हुए भाजपा को घेर रही है वहीं बसपा भी अपनी चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है,लेकिन इन सबके अलावा भी हैदरबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी और तेज़ तर्रार चंद्रशेखर आज़ाद “रावण” भी पूरी कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन अभी खबरें ये है कि हो सकता है कि योगी आदित्यनाथ को दोबारा मुख्यमंत्री बनने से रोकने के लिए ये दोनों साथ आये,क्या ये मुमकिन है? अगर हां तो फिर क्या होगा ये बड़ा सवाल है।
आज़ाद और ओवैसी के साथ आने की वजह
असदुद्दीन ओवैसी बड़े मुस्लिम राजनीतिक चेहरा हैं,वो जहां चुनाव लड़ें हैं रिज़ल्ट उन्हें पॉज़िटिव ही मिला है और इसलिए करीबन 20 फीसदी मुस्लिम वाले राज्य उत्तर प्रदेश से वो उम्मीदे लगाए बैठे हैं।
वहीं चंद्रशेखर मिट्टी के नेता हैं जिनका जन्म संघर्ष से हुआ है,संघर्ष के बल पर अपनी नई पार्टी “आज़ाद समाज पार्टी” का गठन कर उन्होंने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है।
दरअसल इन दोनों दलों की आपस मे चल रही चर्चा या गठबंधन की सबसे बड़ी कोशिश की वजह है उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम वोटों की संख्या,जिसके साथ आने की स्थिति में ये गठबंधन इतिहास दर्ज कर सकता है।
राजनीतिक जानकारों का कहना यहां तक है कि अगर 20 फीसदी के क़रीब आबादी वाला मुस्लिम और 21 फीसदी वाला दलित समाज का वोट साथ आ जाता है तो यूपी की सियासत के इतिहास को बदला जा सकता है,और सत्ता तक पर काबिज हुआ जा सकता है।
ओवैसी और आज़ाद दोनों ही के पास खोने के लिए कुछ नहीं
ये दोनों ही नेता ऐसे हैं जिनके पास खोने के लिए कुछ नही है, क्योंकि दोनों के लिए उत्तर प्रदेश का चुनाव एक तरह से पहला ही चुनाव है और अगर ये गठबंधन होता है और आज़ाद समाज पार्टी और मीम मिलकर चुनाव लड़ती हैं तो परिणाम बहुत बेहतर हो सकते हैं
इनके साथ लड़ने से सपा और बसपा को बहुत बड़ा नुक़सान हो सकता है क्योंकि इन दोनों ही पार्टियों के बेस वोटर को ये गठबंधन टारगेट करता है,अब देखना ये है कि क्या ये गठबंधन होगा? क्या दोनों ही नेता एक बड़ा राजनीतिक उपयोग करेंगे? ये देखने वाली बात होगी।
ये गठबंधन बहुत अहम इसलिए भी हो सकता है क्योंकि एक नए प्रयोग की तरह दोनों ही समाज को साथ लाकर ओवैसी और आज़ाद एक मिसाल पेश कर सकते हैं,और इन दोनों के साथ आने की स्थिति मे इस गठबंधन को नजरअंदाज करना मुश्किल हो जाएगा।
नहीं खोल रहा कोई अपने पत्ते..
ओवैसी और आज़ाद दोनों ही अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं,और न ही ये दोनों किसी भी संभावना को मना भी कर रहे हैं, इसकी वजह यही है कि अभी चुनावों में थोड़ा सा वक़्त है,और ये वक़्त ही नए गठबंधन बनाएगा भी और बिगाड़ेगा भी।
बाकी देखते हैं क्या होता है और क्या हो सकता है।