महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन से सरकार क्यों परेशान है ?

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महंगाई पर हुए प्रदर्शन को कपड़ो से पहचानने और उसे राम मंदिर शिलान्यास से जोड़ कर देखना, अपनी अक्षमता का प्रदर्शन और असल मुद्दो से मुंह चुराना है। अमित शाह जी का यह बयान, कि, काले कपड़े पहन कर, 5 अगस्त को धरना प्रदर्शन करना, राम मंदिर निर्माण का विरोध है, सरकार की बौखलाहट का भी संकेत है।

राम मंदिर का पहला शिलान्यास, नवंबर, 9, 1989, को, जिसकी तिथि, शुक्लपक्ष की एकादशी थी को, एक दलित युवक, कामेश्वर के हाथों से, एक ईट रख कर, कांग्रेस पार्टी के कार्यकाल मे हुआ था, तब प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। उस समय, उस अवसर पर, अशोक सिंघल, महंत नृत्य गोपाल दास, विनय कटियार, डॉ वेदांती, विजया राजे सिंधिया, मुख्तार अब्बास नकवी आदि थे। मैं भी उस समय, वहीं, ड्यूटी पर था। यह शिलान्यास, विवादित ढांचे से दूर, थोड़ा हट कर हुआ था।

राम मंदिर का दूसरा शिलान्यास, जब अदालत द्वारा इस विवाद का समाधान कर दिया गया तब, 5 अगस्त को किया गया, जिसमे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तथा अन्य महानुभाव उपस्थित थे। उसी के बाद मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुयी, जो अब भी जारी है।

राम मंदिर का शिलान्यास, एक शास्त्रीय कर्मकांड है, जिसका मुहूर्त सनातन शास्त्रीय पद्धति से निकाला जाता है जो विक्रम संवत की तिथियों के आधार पर तय किया जाता है। अगस्त 5, 2020 को पंचांग के अनुसार, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की द्वितीया थी।

हिन्दू पंचांग के अनुसार आज वह तिथि नहीँ है, जिस तिथि को, अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास हुआ था। आज तिथि है, श्रावण मास के शुक्लपक्ष की अष्ठमी तिथि। अंग्रेजी तारीख, 5 अगस्त। राम मंदिर के शिलान्यास की तिथि, भाद्रपद के कृष्णपक्ष की द्वितीया ही, शास्त्र सम्मत मानी जायेगी, न कि, 5 अगस्त। यह अलग बात है अंग्रेजी कैलेंडर ही प्रचलन में है न कि, पंचांग की तिथियां।

5 अगस्त के महत्व का बीजेपी इसलिए उल्लेख करती है क्योंकि, इसी तिथि को, उसने अनुच्छेद 370 को संशोधित और नागरिकता संशोधन कानून पारित करने के फैसले किये थे। राम मंदिर का शिलान्यास भी 5 अगस्त को ही, इसीलिए उन्होंने तय किया था। जिसके मुहूर्त को लेकर धर्माचार्यों में भी आपस में मतभेद था। यहीं यह भी उल्लेखनीय है कि, अनुच्छेद 370 और नागरिकता संशोधन कानून, राजनीतिक फैसले थे जबकि राम मंदिर का शिलान्यास, धार्मिक कर्मकांड।

राजनीतिक फैसलों और राजकीय कागज़ों में ईस्वी सन और शक संवत, जो भारत का राष्ट्रीय संवत है, का उल्लेख होता है, जबकि, धार्मिक, कार्यक्रमो, अनुष्ठान, मुहूर्त आदि में विक्रम संवत का। अब यदि बीजेपी और अमित शाह जी, राम मंदिर शिलान्यास को भी राजनीतिक कार्य मान रहे हैं तो भी, इसका मुहूर्त ईस्वी सन से नहीं तय होगा, क्योंकि ईस्वी सन से कोई धार्मिक और शास्त्रीय प्रयोजन नहीं किया जाता है।

धर्म और राजनीति के घालमेल से जब सत्ता निर्देशित होने लग जाय, तब धर्म तो विवादित होता ही है, राज्य भी अपने उद्देश्य, लोककल्याण से विमुख होने लगता है। 5 अगस्त को, काले कपड़े में हुए प्रदर्शन पर, बीजेपी का तंज हास्यास्पद और धर्मशास्त्र के प्रति उनकी अज्ञानता का द्योतक है।

महंगाई और बेरोजगारी से लोग, पीड़ित हैं, मूर्खतापूर्ण ढंग से लगाई जाने वाली जीएसटी से, व्यापार बुरी तरह प्रभावित है, और जब उस पर विपक्ष, सवाल उठाता हुआ सड़कों पर उतरता है तो, कपड़ों से पहचानने का हुनर रखने वाले लोग, उन मुद्दों के समाधान के बजाय, अनावश्यक बहानेबाज़ी करने लगते हैं।

(विजय शंकर सिंह)