राजीव गांधी ने क्यों “अमिताभ”  बच्चन को सांप कह दिया था

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Nidhi Arya

गांधी और बच्चन परिवार के बीच में दशकों तक काफी करीबी थे। अभिनेता अमिताभ बच्चन और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की दोस्ती से हर कोई वाकिफ है। अमिताभ को भी राजनीति में भी राजीव गांधी ही लेकर आए थे। हालांकि अब दोनों परिवारों के बीच दूरी काफी बढ़ चुकी है। वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सांसद संतोष भारतीय ने ‘वीपी सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं’ नाम से किताब लिखी है।

अमिताभ और गांधी परिवार के रिश्तो को लेकर इस किताब में कई बड़े दावे किए गए हैं। किताब के मुताबिक दोनों के रिश्ते में दरार आनी तब शुरू हुई जब विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने। एक घटना का उल्लेख करते हुए पुस्तक में दावा किया गया है कि यह तल्खी इतनी बढ़ गई कि एक बार तो राजीव गांधी ने उन्हें सांप तक कह दिया था। 

पाकिस्तान का बहाना बना कर वित्त मंत्री को सौंप दिया था रक्षा मंत्रालय

भारतीय कि इस किताब में 1987 के उस महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम का भी उल्लेख है। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विश्व प्रताप सिंह को वित्त मंत्री के पद से हटा दिया था और रक्षा मंत्रालय का जिम्मा सौंपा था। लेखक ने दावा किया है जबकि राजीव गांधी ने इसके लिए पाकिस्तान से जंग का बहाना बनाया था। उनके मुताबिक उस समय जंग के हालात भी नहीं थे।

पुस्तक के मुताबिक इसकी पृष्ठभूमि अंडमान में तैयार की गई थी। जब राजीव गांधी छुट्टियां मनाने गए थे और उसी दौरान अमिताभ भी बर्मा(वर्तमान म्यांमार) से वहां पहुंचे थे। भारतीय के अनुसार शायद राजीव गांधी समझ नहीं पा रहे थे कि कैसे वीपी सिंह की शैली को बदलें, क्योंकि उन्होंने ही वीपी सिंह को बेखौफ आगे बढ़ने का निर्देश दिया था। 

उधोगपति थे असल कारण 

अधिकांश उद्योगपति राजीव गांधी के पास वीपी सिंह से वित्त मंत्रालय वापस लेने का निवेदन भेजने लगे। अरुण नेहरू भी राजीव गांधी को यही सलाह बार-बार दे रहे थे। सरकार के फैसलों में अरुण नेहरू का दिमाग झलकता था।

जब वीपी सिंह फाइनेंस मिनिस्टर थे, तब वे धीरूभाई अंबाआनी और अमिताभ बच्चन के टैक्स के पीछे पड़े हुए थे। कहा जाता है कि ये लोग बहुत टैक्स बचाते थे। यह भी कहा जाता है कि वीपी सिंह की इसी जिद के चलते उन्हें फाइनेंस मिनिस्टर से हटाकर डिफेंस मिनिस्ट्री में डाल दिया गया था। वहां पर भी वीपी सिंह ने बोफोर्स घोटाले को लेकर बहुत सारे पेपर निकाले थे। इस घोटाले ने राजीव गांधी सरकार की फजीहत भी कर दी थी।

बोफोर्स मामले के बाद से राजीव गांधी सरकार ने इन्हें अपनी कांग्रेस पार्टी से निकाल फेंका था। जिसके बाद से वीपी सिंह ने अपनी अलग पार्टी भी बना ली और 1989 के इलेक्शन न सिर्फ लड़े  बल्कि जीते भी। और इस देश के सबसे उच्च पद पर आसीन हुए।

मंडल सुधारों के कारण जनता में थी नाराजगी 

मंडल सुधारों को भी ले आए जो कई सालों से लटके हुए थे। जिसको लेकर जनता में नाराजगी भी थी और उसी समय बीजेपी के राम मंदिर वाले मुद्दे पर भी प्रतिरोध भी जताया गया था। वीपी सिंह आजाद भारत के आठवें प्रधानमंत्री थे इनका पूरा नाम विश्वनाथ प्रताप सिंह था। परंतु भारतीय राजनीति में उन्हें एक सफल प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखा जाता है।

क्योंकि उनका स्वभाव बेहद जटिल था और उनके कुछ फैसले ऐसे थे, जिनसे देश में तनाव और बेरोजगारी को तो  बढ़ावा मिला ही, साथ ही समाज कई भागों में विभाजन पैदा हो गया था। और इन के कुछ फैसलों से देश के लोगों में भी नाराजगी थी। मंडल सिफारिशों को मान देश में सवर्ण और अन्य पिछड़े वर्ग जैसी दो नहीं समस्याएं पैदा कर दी थी। इनकी प्रधानमंत्री के रूप में छवि बहुत ही कमजोर और दूरदर्शी नहीं माने जाते थे इसी कारणवश राष्ट्रीय मोर्चा सरकार को हर कदम पर असफलता का मुंह देखना पड़ा था।

अमिताभ क्यों आये थे राजनीति मे?

बॉलीवुड के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन अपने करियर की पीक पर राजनीति में आए थे। पूर्व पीएम राजीव गांधी के कहने पर इलाहाबाद से चुनाव लड़े और जीते भी थे, लेकिन राजनीति में आते ही सुपरस्टार अमिताभ की छवि पर दाग के छींटे पड़ने लगी थे। कभी कांग्रेस के तत्कालीन रक्षा मंत्री वीपी सिंह कांग्रेस से अलग होते ही राजीव गांधी समेत अमिताभ बच्चन और उनके भाई अजिताभ बच्चन पर बोफोर्स सौदे में हुए घोटाले में खींचा था।

वीपी सिंह ने कहा था कि यदि वह पीएम बन गए तो 24 घंटे के अंदर अमिताभ बच्चन को जेल के अंदर भेज देंगे। असल में वी पी सिंह अमिताभ बच्चन की गांधी परिवार से करीबी रास नहीं आई थी और राजीव के दोस्त होने के नाते अमिताभ बच्चन भी इस मामले में फंस गए थे।

स्वीडिश रेडियो पर स्वीडन की एबी बोफोर्स कंपनी से हॉविटजर् तोपों की खरीद के सौदे में भारतीय बिचौलियों को 64 करोड़ रुपए की दलाली देने का आरोप लगाया गया था इस मामले को लेकर बीपी सिंह सड़कों पर उतर आए थे।

वीपी सिंह ने राजीव गांधी के साथ ही फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन को भी इस मामले में लपेटा था। तब अमिताभ बच्चन ने अपनी लोकसभा सीट से इस्तीफा दिया और दूसरी और अजिताभ बच्चन जांच में निर्दोष सिद्ध हुए और उन्होंने उस स्वीडिश अखबार के विरुद्ध मानहानि का मुकदमा दायर करके उसे पहले दिन ही घुटने टिकवा दिए थे।

इस संदर्भ में “दा आरकेबी शो ” में राजीव बजाज से बात करते हुए अमिताभ बच्चन ने कहा था की बी पी सिंह ने 6 साल तक उनके मुंह और परिवार पर कालिख पोती थी।अमिताभ बच्चन ने कहा है कि उन्हें और उनके परिवार को देशद्रोही कहा था वीपी सिंह उस समय यूपी सरकार की ओर से लड़ रहे थे और कहा था कि पीएम बनते ही वे 24 घंटे के अंदर उन्हें जेल पहुंचा देंगे। अमिताभ बच्चन ने कहा था कि वह लंदन, स्वीडन और स्विट्जरलैंड कोर्ट में लड़े थे और सिंगल हैंड सरकार को हराया था कहां थे तब वीपी सिंह।

अमिताभ बच्चन ने पूछा था कि अब वह लोग कहां हैं जो उन पर आरोप लगा रहे थे हमने बहुत कुछ सहा था और कोर्ट में जीत के बाद साफ हो गया था कि इन सब के पीछे कौन था। अमिताभ ने कहा कि भले ही यह सब क्लियर हो गया हो और वह निर्दोष साबित हुए लेकिन वह 6 -7 साल का क्या जो उन्होंने झेला था। अमिताभ ने कहा कि राजनीति में जाना उनका एक इमोशनल कदम था लेकिन पॉलिटिक्स में आने के बाद पता चला कि वह राजनीति से परे हैं यह उनका एक गलत फैसला था।

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव के अनुरोध पर बच्चन ने राजनीति में प्रवेश किया था और इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया था उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा से। उस चुनाव को कवर करने वाली वरिष्ठ पत्रकार कुमकुम चड्डा बताती हैं कि ,उस चुनाव में बच्चन अपना रोल नहीं बदल पाए, वह आखिर तक यही समझते रहे कि वह फिल्मी स्टार हैं। उन्होंने सर्किट हाउस में बंद कमरे में से चुनाव लड़ा। उनके चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी उनके छोटे भाई अजिताभ के हाथों में थी उनका रोल होता था लोगों को भगाना।

उनको चुनाव की बारीकियों और गहमागहमी की बिल्कुल भी समझ नहीं थी। शुरू में वह शर्तिया चुनाव हार रहे थे। उनके पक्ष में हवा तब बदली जब जया चुनाव प्रचार में कूदी। उन्होंने भाभी, देवर और मुंह दिखाई वाले जुमले बोलकर फिजा अमिताभ के पक्ष में कर दी। मेरा तब भी मानना था और अब भी मानना है कि अगर जया चुनाव प्रचार में नहीं कुदी होती तो अमिताभ के लिए चुनाव जीतना टेढ़ी खीर होता। लेकिन अमिताभ और राजीव की दोस्ती बहुत दिनों तक नहीं चल पाई और 1987 में अमिताभ ने इलाहाबाद की अपनी लोकसभा सीट से इस्तीफा देने का फैसला कर लिया था।

कुमकुम चड्डा बताती है कि उनके पास ऐसा कोई भी ठोस सबूत नहीं है कि जिससे वह साबित कर सके कि बच्चन और गांधी परिवार के बीच में दोस्ती क्यों खत्म हुई। लेकिन लोगों का कहना है कि अमिताभ को यह बात बुरी लगी जब वह बोफोर्स घोटाले में नाम आने पर राजीव ने उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा।