उत्तर प्रदेश का चुनाव अभी थोड़ा दूर है,लेकिन देश भर में बढ़ रही गर्मी के साथ उत्तर प्रदेश में भी चुनावी गर्मी बढ़ती चली जा रही है,अखिलेश यादव ने आने वाले चुनाव को सपा बनाम भाजपा बनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं,क्योंकि इससे उन्हें फायदा मिलना लाज़मी है।
इसी कोशिश में उन्होंने खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैले हुए राजनीतिक माहौल को कवर करने का प्लान भी तैयार कर लिया है,अंदरखाने ये तैयारी हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री के पोते जयंत चौधरी को अखिलेश यादव उपमुख्यमंत्री पद का दावेदार बना सकते हैं,इसी खबर के बाद से रालोद जॉइन करने वाले नेताओं की गिनती बढ़ती जा रही है।
आइये इस रिपोर्ट में उसी पर गौर करते हैं और देखते हैं कि दिल्ली से लगे “वेस्ट उत्तर प्रदेश” में क्या राजनीतिक हलचल हैं।
रालोद का दामन थाम रहे हैं दिग्गज मुस्लिम नेता।
बागपत के राजनीतिक परिवार और पूर्व मंत्री कोकब हमीद के बेटे अहमद हमीद जो बसपा के टिकट पर बागपत से 2017 का विधानसभा का चुनाव लड़ें थे उन्होंने कुछ महीनों पहले रालोद का दामन दोबारा थाम लिया था और खबर ये है कि रालोद बागपत विधानसभा से उन्हें ही उम्मीदवार बनाने वाली है।
इसी महीने में सपा के पूर्व सांसद और पूर्व महासचिव शाहिद सिद्दीक़ी ने भी अचानक रालोद जॉइन करके आने वाले चुनावों में दावेदारी या बड़ी ज़िम्मेदारी पर दावा ठोंक दिया था,और उनको लेकर जयन्त ने खुद ट्वीट कर जानकारी भी दी थी।
इसके अलावा शामली विधानसभा से बसपा प्रत्याशी रहें और प्रधान महासचिव रहें मो. इस्लाम ने रालोद का दामन थाम लिया था,जो चुनाव भी लड़ सकते हैं,वहीं आज थाना भवन सीट से विधायक रहें 2012 और 2017 में प्रत्याशी रहें राव अब्दुल वारिस ने भी रालोद जॉइन करते हुए सभी को चौंका दिया है,और चर्चा यही है की पार्टी उन्हें फिर से उम्मीदवार बनायेगी।
इसके अलावा मुजफ्फरनगर ज़िलें की मीरापुर विधानसभा सीट से विधायक रहें मौलाना जमील कासमी भी अब रालोद संग हो गए हैं और 2019 में बिजनोर लोकसभा से चुनाव लड़ने का दावा पेश करने वाले जमील कासमी मीरापुर विधानसभा से 2022 में रालोद के प्रत्याशी हो सकते हैं।
इसके अलावा रालोद में पहले से ही शामिल बिजनोर लोकसभा से प्रत्याशी रहें और बिजनोर विधानसभा से विधायक और प्रत्याशी रहें “राणा परिवार” के शाहनवाज राणा को लेकर भी चर्चा गर्म है की वो बिजनोर विधानसभा से रालोद के प्रत्याशी हो सकते हैं,वहीं पूर्व सांसद और विधायक अमीर आलम खान और उनके पुत्र पूर्व नवाज़िश आलम पहले ही से पार्टी में हैं जिनका चुनाव लड़ना भी तय माना जा रहा है।
इसके अलावा मेरठ ज़िलें की दक्षिण सीट ,हस्तिनापुर और सरधना सीट के अलावा सहारनपुर की भी कई विधानसभा
सीटों पर भी कई रालोद जॉइन करने वाले नाम भी सामने आ सकते हैं।
सपा से गठबंधन बताई जा रही है बड़ी वजह
गौरतलब है कि जयंत चौधरी की रालोद का गठबंधन अखिलेश यादव की सपा से मज़बूत नज़र आ रहा है,इस शक्ल में सपा रालोद को जो सीटें देंगीं उन पर पहले से ही तैयारियां शुरू हो गयी है और नेताओं ने अपना पाला बदलना शुरू कर दिया है।
इस मुद्दे पर जब हमने पश्चिमी यूपी की राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार खालिद इक़बाल से बात की तो वो बताते हैं कि “मुस्लिम नेता जिनमें पूर्व विधायक से लेकर सांसद तक शामिल हैं इसलिए रालोद से जुड़ रहे हैं क्योंकि जाट समाज के साथ मिलकर वो भाजपा को सत्ता से हटाना चाहते हैं,हालांकि बड़ा सवाल ये भी है कि क्या जाट समाज भी पूरी तरह इस गठबंधन का हिस्सा बनेगा या नहीं?
क्योंकि रालोद ने ज़मीनी न सही ऊपरी तौर पर चुनावी बिसात बिछानी शुरू कर दी हैं और उसके संपर्क में आ रहे बड़े नेताओं का पार्टी जॉइन करने का मैसेज यही है कि पार्टी कोरोना के घटते ही जल्दी ही ज़मीनी मेहनत शुरू कर देगी जिसके परिणाम भी आगामी चुनावों में देखने को मिल सकते हैं।
क्या जयंत चौधरी के साथ फिर आयेंगे जाट नेता?
लेकिन अब भी कई बड़े सवाल हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एकमात्र जाट समाज के “लाड़ले” जयंत चौधरी की चाहत रखने वाले उनके समाज के लोग क्या भाजपा के खिलाफ और अपने जमे जमाये संजीव बालियान (केंद्रीय मंत्री) और मोहित बेनीवाल (पश्चिमी यूपी भाजपा अध्यक्ष) जैसे चेहरों के खिलाफ जाने का काम करेंगें?
ये सवाल बहुत अहम है क्योंकि स्वर्गीय चौधरी अजीत सिंह भी मुज़फ्फरनगर से संजीव बालियान से और जयंत चौधरी बागपत से सत्यपाल सिंह से तमाम कोशिशों के बावजूद चुनाव हार गए थे और उस चुनाव को अभी 2 ही साल बीते हैं।
बहरहाल अभी लगातार मुस्लिम दिग्गजों का आना तो जयंत चौधरी के लिए खुशी का मौके के साथ साथ बड़ी चुनौती भी है,बाकी अगली स्टोरी में चर्चा को आगे ज़रूर बढ़ाएंगे ।