भारत में कौन फ़ैला रहा है “इस्लामोफोबिया” ?

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इस्लामोफोबिया अर्थात मुस्लिमों और इस्लाम का गैरमुस्लिमों ( जो लोग मुस्लिम नहीं हैं) के दिलोदिमाग में गलत जानकारी के साथ एक बवजह पैदा किए गए डर को कहा जाता है। एक ऐसा डर जिसके कारण सामने वाला व्यक्ति इस्लाम और मुस्लिमों से नफ़रत करने लगता है, सोशल मीडिया के इस दौर में इस्लामोफोबिक कंटेन्ट की सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक में बाढ़ आई हुई है। फ़िलहाल कोरोना के नाम पर फ़र्ज़ी वीडियो और टेक्स्ट ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है। ये जो डर लोगों के दिमाग में भर दिया गया है, इसके कारण ही कई जगह से ऐसे अपराधों की खबर सामने आती है, जिसमें यही नफ़रत हत्या जैसे अपराधों का कारण बनती है।

जब सोशलमीडिया का दौर नहीं था, तब भी इसलामोंफोबिया का आस्तित्व था, पर उस समय इसकी पहुँच सीमित थी और प्रसार की गति बेहद कम थी। पर जबसे घर घर में व्हाट्सअप और फ़ेसबुक का उपयोग होने लगा है, तबसे एक बड़ा तबक़ा व्हाट्सअप फॉरवर्ड और फ़ेसबुक पोस्ट के ज़रिए इस बिगाड़ का शिकार हुआ है। इस जड़ें बहुत गहरी हो चुकी हैं, एक बेवजह का डर लोगों के मस्तिष्क में पैठ बना चुका है। किसी को मुगलों के संबंध में फैलाए जाने वाले फ़र्ज़ी मैसेजेज़ ने प्रभावित किया है, तो किसी को भारत के बंटवारे का बदला भारतीय मुस्लिमों से लेना है। कोई महाराणा प्रताप की हार का बदला लेना चाहता है, तो कोई पानीपत के युद्ध में हुई मराठाओं की हार का बदला लेना चाहता है। और ये सब हो रहा है, व्हाट्सअप और फ़ेसबुक में फैलाए जाने वाले उस इसलामोंफोबिक कंटेन्ट के कारण जो अच्छे – अच्छे दोस्तों और पड़ोसियों के बीच दरार पैदा करने के लिए काफ़ी है।वैसे इस्लामोफोबिया फ़ैलाने में भारतीय मीडिया का रोल सबसे अहम है, पिछले 4-5 वर्ष में शायद ही कोई दिन हो, जब भारतीय मीडिया में इस्लाम या मुसलमानों पर चर्चा न हुई हो। हम जब खंगालते हैं, तो यह बात खुलकर सामने आती है, कि तारेक फतेह जैसे लोगों को सिर्फ और सिर्फ इसलिए टीवी चैनल्स इनवाईट करते हैं, क्योंकि तारेक फतेह जोकि एक नास्तिक हैं, और मुस्लिमों और इस्लाम के खिलाफ खुलकर अपनी राय रखते हैं। आप कैसे भूल सकते हैं भारतीय न्यूज़ चैनल्स द्वारा लव जिहाद के नाम पर खड़ा किया गया वो झूठ। टीवी चैनल्स में दिखाई जाने वाली कास्टवाईज़ वो रेट लिस्ट। एक ऐसा झूठ बहुसंख्यक समुदाय के दिमाग में भारतीय मीडिया ने फिट किया, जिसका कोई आस्तित्व नहीं है।

अब आते हैं पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जैसे झूठे लोगों पर, ये वो लोग हैं जिन्होंने सेमीनार करके, स्टेज से भाषण देकर ऐसी मंगढ़त और झूठी बातों को प्रचारित व प्रसारित किया जो न इस्लाम का हिस्सा थीं और नाही मुस्लिमों के अंदर कोई ऐसी चीज वजूद में आई। इन्होंने ऐसे ऐसे फर्जी बातों को इस्लाम का बताकर हिंदुओं के दिलों में इस्लाम और मुस्लिमों के लिए नफ़रत पैदा करने की कोशिश की, जिसका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं।

अंत में बस इतना कहूँगा, कि व्हाटसअप फॉरवर्ड और फ़ेसबुक पोस्ट से इतर एक वास्तविक दुनिया भी है। कभी आप अपने उस वास्तविक दुनिया के मुस्लिम दोस्त और पड़ोसी से भी बात कर लिया करो। कभी मीडिया और सोशलमीडिया में फैलाई जाने वाली इस नफ़रती सामग्री को अपने मुस्लिम मित्रों से क्रॉस चैक भी कर लिया करिए, हो सकता है आप पढे लिखे हैं और पढ़ने का शौक रखते हैं तो पढ़िए ! और हर उस बात की तहक़ीक़ कीजिए जो आप तक सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया के सोर्स से आ रही है। तभी आप इस्लामोफोबिया से मुक्त हो पाएंगे । हाँ यदि आपका कुछ राजनीतिक उद्देश्य होगा, तो आपके लिए यह बकवास हो सकती है और इस्लामोफोबिया एक आक्सिजन।

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