इस्लामोफोबिया अर्थात मुस्लिमों और इस्लाम का गैरमुस्लिमों ( जो लोग मुस्लिम नहीं हैं) के दिलोदिमाग में गलत जानकारी के साथ एक बवजह पैदा किए गए डर को कहा जाता है। एक ऐसा डर जिसके कारण सामने वाला व्यक्ति इस्लाम और मुस्लिमों से नफ़रत करने लगता है, सोशल मीडिया के इस दौर में इस्लामोफोबिक कंटेन्ट की सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक में बाढ़ आई हुई है। फ़िलहाल कोरोना के नाम पर फ़र्ज़ी वीडियो और टेक्स्ट ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है। ये जो डर लोगों के दिमाग में भर दिया गया है, इसके कारण ही कई जगह से ऐसे अपराधों की खबर सामने आती है, जिसमें यही नफ़रत हत्या जैसे अपराधों का कारण बनती है।
अब आते हैं पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ जैसे झूठे लोगों पर, ये वो लोग हैं जिन्होंने सेमीनार करके, स्टेज से भाषण देकर ऐसी मंगढ़त और झूठी बातों को प्रचारित व प्रसारित किया जो न इस्लाम का हिस्सा थीं और नाही मुस्लिमों के अंदर कोई ऐसी चीज वजूद में आई। इन्होंने ऐसे ऐसे फर्जी बातों को इस्लाम का बताकर हिंदुओं के दिलों में इस्लाम और मुस्लिमों के लिए नफ़रत पैदा करने की कोशिश की, जिसका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं।
अंत में बस इतना कहूँगा, कि व्हाटसअप फॉरवर्ड और फ़ेसबुक पोस्ट से इतर एक वास्तविक दुनिया भी है। कभी आप अपने उस वास्तविक दुनिया के मुस्लिम दोस्त और पड़ोसी से भी बात कर लिया करो। कभी मीडिया और सोशलमीडिया में फैलाई जाने वाली इस नफ़रती सामग्री को अपने मुस्लिम मित्रों से क्रॉस चैक भी कर लिया करिए, हो सकता है आप पढे लिखे हैं और पढ़ने का शौक रखते हैं तो पढ़िए ! और हर उस बात की तहक़ीक़ कीजिए जो आप तक सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया के सोर्स से आ रही है। तभी आप इस्लामोफोबिया से मुक्त हो पाएंगे । हाँ यदि आपका कुछ राजनीतिक उद्देश्य होगा, तो आपके लिए यह बकवास हो सकती है और इस्लामोफोबिया एक आक्सिजन।